– इंटरनेशनल टी डे पर खासऋषव मिश्रा कृष्णा, भागलपुरचाय एक बहाना है… कुछ देर ठहरने का, जिंदगी की भागदौड़ से पल भर की राहत का. ये उस खामोश समझदारी की तरह है, जो बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह जाती है. जब दो लोग एक साथ चाय पीते हैं, तो वो सिर्फ स्वाद नहीं बांटते, बल्कि अपनी थकान, अपनी बातें और कभी-कभी अपनी खामोशियों को भी बांटतें हैं. चाय रिश्तों में गर्माहट के साथ मिठास भर देती है. कभी चिट्ठियों में भी चाय के फसाने और तराने हुए करते थे, आज चाय रील्स में ट्रैंड कर रहा है. एक चाय ही तो है जो हर उम्र वर्ग के बीच लोकप्रिय है. आज चाय हमारी परंपरा बच चुकी है, सुबह की शुरूआत से लेकर शाम ढ़लने तक के सफर में कोई रहे न रहे एक हमसफर चाय जरूर होती है.
आजादी के बाद चाय व्यापार की मुख्यधारा से जुड़ा
वैसे तो चाय के आने के साथ भागलपुर के लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया था, लेकिन आजादी के बाद चाय यहां के व्यवसाय के मुख्यधारा के साथ हुआ. 1950–60 का दौर में रेलवे स्टेशन, कोर्ट-कचहरी और बाजार क्षेत्रों में चाय दुकानों का चलन शुरू हुआ था. 1970 से 80 का दशक में भागलपुर में शैक्षणिक और वाणिज्यिक गतिविधियों के बढ़ने का था. साहित्यक किताबों में टी स्टॉल का जिक्र दिखने लगा था. टीएनबी कॉलेज, मारवाड़ी पाठशाला और विश्वविद्यालय के पास चाय दुकानें छात्रों, अध्यापकों और कर्मचारियों का मिलन स्थल बनने लगीं. उसी समय से यहां चाय की दुकानों ने टी स्टॉल का रूप लिया. 1990 से 2000 का समय चाय के व्यवसाय के लिए स्वर्णिम काल माना जाता है. इस समय बड़ी संख्या में दुकानें खुलीं और चाय आम प्रचलन में शामिल हो गया. बड़े खिलाड़ी चाय के व्यवसाय में आये. वर्तमान में चाय कैफे और ब्रांडेड टी स्टॉल जैसे “चायोस” और “चाय सुट्टा बार” जैसी कंपनियों के ब्रांच भागलपुर में देखे जा सकते हैं. यहां 15 रुपये से लेकर 150 रुपये तक की चाय उपलब्ध है. ऐसे ब्रांडेड टी स्टॉल युवा पीढ़ी में काफी लोकप्रिय है.
भागलपुर शहर में होता है रोजाना पांच से दस लाख का कारोबार
भागलपुर शहर में पांच सौ अधिक टी स्टॉल हैं. एक टी स्टॉल पर अमूमन सौ से 200 कप चाय की बिक्री होती है. इस हिसाब से मौजूदा समय में चाय का कारोबार रोजाना पांच से दस लाख रुपये का है. ठंड के समय में चाय की बिक्री काफी बढ़ जाती है जबकि गर्मी के दिनों के चाय की बिक्री में मंदी आती है. दूसरी तरफ चाय के सामग्रियों मुख्य रूप से चायपत्ती, दूध, चीनी के रोजाना का कारोबार 75 से एक करोड़ रुपये तक का बताया जाता है. मालूम हो कि शहर में जितनी चाय एक दिन में सभी दुकानों में बिकती है, उससे पांच गुना अधिक लोग अपने घरों में चाय पीते हैं. जिले में पांच हजार से अधिक की आबादी की निर्भरता चाय के रोजगार पर है.
मिट्टी के बर्तन में बनी चाय की बढ़ रही है डिमांड
इन दिनों शहर में एक तरफ मिट्टी के बर्तन में बनी चाय की डिमांड बढ़ी है. सैंडिस कंपाउंड के पास, कृषि कार्यालय के सामने और शहर के अन्य जगहों पर ऐसी दुकान चलन में है. यहां रोजाना लोगों को चाय की चुस्की लेते देखे जाता है. दूसरी तरफ शहर में तंदूरी चाय भी लोगों के आकर्षण में है. कोतवाली में चार पुस्तों से चाय की दुकान चला रहे अभिषेक ने बताया कि चाय का दौर कभी समाप्त नहीं होगा. यह एवरग्रीन है. जीरोमाइल के चाय दुकानदार सुमन सौरभ, बरारी चौक के चाय दुकानदार सौरभ, तिलकामांझी के चाय दुकानदार अमन कुमार, हटिया रोड तिलकामांझी के दुकानदार चंदन कुमार ने बताया कि वर्तमान में एक कप चाय का मूल्य दस रुपये है. इस धंधे से रोजी रोटी तो चल जाती है लेकिन मेहनत बहुत है. इधर, चाय लवर सुरेश जी और उनकी पत्नी तुलिका ने कहा कि चाय के हमारे जीवन का अहम हिस्सा है. घर में भी चाय बनाने की व्यवस्था है लेकिन शाम में वे लोग चाय पीने टी स्टॉल पर जरूर जाते हैं.
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