-कोई जमीन का उठा चुका है बायना, तो कोई मकान गिरवी रखने की कर रहा तैयारी ब्रजेश, भागलपुर चुनाव की घोषणा के साथ ही सियासी सरगर्मी चरम पर पहुंच गयी है. राजनीतिज्ञ टिकट की दौड़ में जी-जान लगाए हुए हैं. आर्थिक स्थिति मजबूत करने के इरादे से टिकट के कई दावेदार जमीन-जायदाद तक बेचने की तैयारी में है. इस बार दल बदलने का मौका न मिलने से दबाव और बढ़ गया है, जिसके चलते हर कोई अपने नाम को टिकट सूची में शामिल कराने की हरसंभव कोशिश कर रहा है. कुछ को तो यहां तक दावा करते सुना जा रहा है कि टिकट के लिए प्राथमिकता सूची में पहले नंबर पर है. वहीं, गठबंधनों में सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनने से अंदरखाने तनाव भी बढ़ा है. कई क्षेत्रों में एक ही सीट पर दो-चार नेताओं की दावेदारी ने पार्टी नेतृत्व को भी असमंजस में डाल दिया है. कुछ नेता टिकट पाने को लेकर इतने आश्वस्त हैं कि उन्होंने पहले ही संपत्ति बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. एक दावेदार ने दावा किया है कि उनका नाम सूची के शीर्ष पर है, इसलिए उन्होंने जमीन का बायना तक उठा लिया है. उनका कहना है कि एक टुकड़ा जमीन बेच देने से चुनाव का सारा खर्च निकल जायेगा. दूसरी ओर एक अन्य नेता ने मकान बेचने के लिए महाजन से बात तक कर ली है. उनका तर्क है कि जैसे ही पार्टी से नाम की घोषणा होगी, वैसा ही तत्काल चुनावी खर्च के लिए पैसा हाथ में होना चाहिए. ऐसे दावेदार अब लगातार पटना का चक्कर लगा रहे हैं और शीर्ष नेताओं से संपर्क बनाये रखने में जुटे हैं. कुल मिलाकर इस बार टिकट की राजनीति में समर्पण, सौदेबाजी और जोड़-तोड़ का अनोखा संगम देखने को मिल रहा है, जहां टिकट के लिए नेता अपनी पूरी पूंजी दांव पर लगाने को तैयार हैं. पहले साथ उठना-बैठना हो रहा था, अब बातचीत पर भी आफत टिकट की होड़ में अब नेताओं के बीच की दरारें भी खुलकर सामने आने लगी हैं. कई दलों में यह स्थिति बन गयी है कि जो नेता अब तक एक साथ बैठते थे, रणनीति बनाते और मंच साझा करते थे, वही अब टिकट के लिए आमने-सामने खड़े हैं. अपनी ही पार्टी में यह जानने के बाद कि साथ उठने-बैठने वाला साथी भी टिकट का दावेदार बन गया है, कई नेताओं के बीच रिश्ते बिगड़ गये हैं. बातचीत बंद हो चुकी है और एक-दूसरे से दूरी बना ली गयी है. यह हालात सिर्फ एक-दो जगह नहीं, बल्कि राजद सहित कई प्रमुख दलों में देखने को मिल रहे हैं. स्थानीय स्तर पर ऐसे नेता अब अलग-अलग गुट बनाकर पार्टी के भीतर ही शक्ति प्रदर्शन में जुटे हैं. टिकट के लिए आपसी प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गयी है कि पुराने साथी अब प्रतिद्वंद्वी बन चुके हैं और राजनीतिक माहौल पूरी तरह गर्म हो गया है. दिन-रात भगवान को सुमरने में लगे नेताजी कई दावेदार अब राजनीतिक गलियारों से ज्यादा मंदिरों और पूजा स्थलों में दिखायी दे रहे हैं. एक नेताजी तो इन दिनों दिन-रात भगवान को सुमरने में जुटे हैं. पूजा-पाठ में शामिल होना उनकी दिनचर्या बन गयी है. उनका कहना है कि मेहनत तो कर ही ली है, अब फैसला भगवान के हाथ में है. पार्टी में टिकट को लेकर मचे घमासान और अंदरूनी खींचतान के बीच नेताजी पूरी आस्था से ईश्वर की कृपा पाने की कोशिश कर रहे हैं. समर्थक भी उनके साथ पूजा में शामिल होकर टिकट मिलने की मनोकामना मांग रहे हैं. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब हालात अनिश्चित हो, तो नेता आस्था का सहारा लेकर मनोबल बनाये रखने की कोशिश करते हैं. हमको टिकट नहीं मिले तो उनको भी नहीं मिलना चाहिए चुनावी टिकट की राजनीति अब कड़वाहट के दौर में पहुंच गयी है.पार्टी के भीतर कई नेता यह सोचने लगे हैं कि बायचांस हमको टिकट नहीं मिले तो उनको भी नहीं मिलना चाहिए. उनको मिल गया, तो पार्टी सीट गवां देंगे. यानी, हालात ऐसे हैं कि टिकट वितरण से पहले ही एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिशें शुरू हो गयी हैं. यह स्थिति देखी जा रही है. टिकट की इस जंग में अब सियासी प्रतिद्वंद्विता दिख रही है.
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