सुलतानगंज शहर से तीन किलोमीटर पश्चिम सुलतानगंज-मुंगेर मुख्य पथ (एनएच–80) किनारे स्थित जहांगीरा हर दीपावली पर आध्यात्मिक नगरी में बदल जाता है. यहां के काली मंदिर में मां काली के जागृत रूप की ऐसी मान्यता है कि महानगरों में बसे गांव के लोग भी इस दिन घर लौटना नहीं भूलते. 1880 में स्थापित यह मंदिर आज भी उसी श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है, जैसा इसे स्थापित करने वाले रोशन लाल के समय था. कहा जाता है कि एक रात उन्हें इसी स्थान पर मां काली के साक्षात दर्शन हुए थे. उसी अलौकिक अनुभव के बाद उन्होंने मसोमात चमेली देवी की भूमि पर शक्तिपिंड की स्थापना की और तब से यह स्थल आस्था का अक्षय दीप बन गया. हर कार्तिक अमावस्या को यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है. कोई अपनी मनोकामना पूरी होने पर बलि देता है, तो कोई प्रसाद और दीप अर्पित करता है. कहते हैं, इस रात मां काली विकराल रूप धारण कर महाकाल की तरह अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. लोगों का विश्वास है कि मां के स्मरण मात्र से ही जीवन के दुख-दर्द समाप्त हो जाते हैं. इन दिनों काली पूजा की तैयारियां पूरे जोश में हैं. मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं, मंदिर परिसर में सजावट और रोशनी का कार्य तेजी से हो रहा है.
काली पूजा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्मिलन का अवसर
जहांगीरा के लोगों के लिए काली पूजा सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्मिलन का अवसर भी है. गांव से बाहर रहने वाले लोग चाहे कितनी भी दूर क्यों न हों, दीपावली से पहले घर लौट ही आते हैं. पूरा इलाका एक परिवार की तरह जुट जाता है. कोई पूजा की तैयारी में, तो कोई भंडारा, सुरक्षा और सफाई में. ग्रामीणों का कहना है कि मां काली के इस दरबार में सच्चे मन से मांगी गई मुराद कभी खाली नहीं जाती.
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