शब्द-कीर्तन में झूमे श्रद्धालु, बैसाखी को नववर्ष के रूप में मनाते हैं सिख, पंजाबी व सिंधी. मुख्य बाजार स्थित गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा में बैसाखी गुरु पर्व रविवार को खालसा के स्थापना दिवस के रूप में मनाया गया. इस अवसर पर खालसा मेरो रूप है खास, खालसे में हो करो निवास… उक्त शबद-कीर्तन गुरुद्वारा ग्रंथी सरदार जसपाल सिंह व संजय सिंह ने गुरुद्वारा में गाया.
फिर गुरुद्वारा ग्रंथी जसपाल सिंह ने भजन गाया, तो माहौल भक्तिमय हो गया. बैसाखी उत्सव के बारे में अध्यक्ष ताजेंद्र सिंह सचदेवा ने कहा कि 1699 में गुरु गोविंद सिंह ने बैसाखी के दिन देश की एकता, अखंडता और धर्म निरपेक्षता के लिए पंच प्यारे को अमृत पिला कर जीवित किया. इसे तभी से साजना दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं. यह 326वां साजना दिवस है. बैसाखी को सिख नववर्ष के रूप में भी मनाते हैं. मीडिया प्रभारी सरदार हर्षप्रीत सिंह ने कहा कि गुरु गोविंद सिंह ने जयकारा का नारा दिया वाहे गुरु का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह. इस दिन सिख समुदाय के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज ने 1699 में आनंदपुर साहिब में समाज के सभी वर्गों को एकत्रित करके दीक्षा देखकर अमृत छका कर खालसा पंथ की स्थापना की.गुरुद्वारा परिसर में 48 घंटे का अखंड पाठ संपन्न
गुरुद्वारा परिसर में सुबह 10:30 बजे पिछले 48 घंटे से चल रहे अनवरत अखंड पाठ का समापन हुआ. इसके पश्चात रांची से पधारे रागी जत्था भाई दलजीत सिंह ने गुरु की जीवनी पर प्रकाश डाला. संरक्षक खेमचंद बच्यानी ने खालसा दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला.पंगत में बैठ छका लंगर
विभिन्न समुदाय से आये लोगों ने भाईचारा बनाने के लिए एक साथ पंगत में बैठ कर लंगर छका. आयोजन में गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के सचिव बलबीर सिंह, कोषाध्यक्ष सरदार मंजीत सिंह, उपाध्यक्ष सरदार हरविंदर सिंह भंडारी, कमेटी सदस्य अजीत सिंह, उपसचिव रमेश सूरी, हरजीत सिंह, ओमप्रकाश बचियानी, शंकर बचियानी, अनु सोढ़ी आदि का विशेष योगदान रहा. रात्रि में निशान साहब के समीप गुरुद्वारा परिसर में दीपोत्सव मनाया गया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है