मनेर: छह माह पहले (21 अक्तूबर, 2012) की वह रात थी. हर तरफ खुशनुमा माहौल था. रोशनी छाई हुई थी, क्योंकि तीन दिन बाद दशहरा जो था. हमने छत पर सोने की सोची. अकसर जब मौसम अच्छा होता था, हम छत पर सो जाते थे. उस दिन भी सो गये. जब मैं और मेरी छोटी बहन सोनम गहरी नींद में थे, तभी अचानक किसी ने मेरा हाथ पकड़ा और किसी ने पैर.
मैं कुछ समझ पाती, उसके पहले ही उन्होंने मुझ पर कटोरे में भर कर लाया तेजाब उड़ेल दिया. मैं जोर से चीखी. चिल्लाई. सोनम बगल में सो रही थी. उसके हाथ पर भी तेजाब गिरा. हम दोनों चीखे. वे लड़के भाग गये. दौड़ते-दौड़ते पिताजी और मां आये. उन्होंने मुझ पर पानी डालना शुरू किया. पहले तो मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक हुआ क्या है.
बस मैं दर्द और जलन से चीख रही थी. मुझे लगा शायद मेरे ऊपर उबला पानी या खौलता तेल डाल दिया गया है. उस वक्त मुझे और कुछ नजर नहीं आ रहा था, सिवाय मेरे चेहरे से निकल रह धुएं के. यह आप बीती है 19 साल की चंचल व 16 साल की सोनम की. वे मनेर में अपने पिता शैलेश पासवान व मां सुनैना के साथ रहती हैं. पिछले साल 21 अक्तूबर की रात जब वे दोनों छत पर सो रही थीं, तब यह घटना घटी.
कंप्यूटर इंजीनियर बनने का सपना देखनेवाली चंचल की जिंदगी एक रात में बदल गयी. कुछ कर दिखाने का जज्बा और जुनून लिये चंचल अपने घर से चार मील दूर कंप्यूटर क्लास जाया करती थी. रास्ते में उसे चार लड़के छेड़ा करते थे. उनमें से एक लड़का बार-बार कहता ‘हमसे शादी कर लो या हमारे साथ भाग चलो.’ चंचल उसे जवाब देती ‘तुम हमारी जाति के नहीं हो. कैसे कर ले तुमसे शादी.’ लेकिन लड़का एक न सुनता. कभी अश्लील बातें करता, गालियां देता, तो कभी हाथ पकड़ लेता. वह बड़ी मेहनत से हाथ छुड़ाती और भाग जाती. एक बार तो उसने उसका दुपट्टा खींच कर सड़क पर फेंक दिया, डरी-सहमी चंचल कुछ न कर पायी. बस जल्दी से घर आ गयी.
वे उसे रास्ते में रोक कर धमकी देते, ‘तुम्हें अपने खूबसूरत चेहरे पर बहुत घमंड हैं न. हम तुम्हारा घमंड-वमंड सब निकाल देंगे.’ चंचल अपने पिता को यह बात घर आ कर बताती. कहती कि पुलिस में शिकायत करो. लेकिन मजदूरी कर के अपने परिवार का पेट पाल रहे पिता कहते ‘बेटा, हम मजदूरी कर के कमाने-खानेवाले लोग हैं. काहे को इनके लफड़े में पड़ना.’
आखिरकार 21 अक्तूबर की रात उन लड़कों ने अपनी बात सही कर के दिखा दी. सो रही चंचल के हाथ-पैर पकड़ लिये ताकि वह बचाव भी न कर सकें और उस पर कटोरा भर कर तेजाब फेंक दिया. चंचल का 90 प्रतिशत चेहरा तेजाब से गल गया. इसके साथ ही उसकी बहन की जिंदगी भी बरबाद हो गयी है. सोनम, जिसे बचपन से ही कम दिखता है, उसके हाथों पर तेजाब गिरा. अब उसका एक हाथ वह हिला नहीं सकती. दोनों बहनें अब घर पर ही रहती हैं.
पहले कैसी थी जिंदगी
एक साल पहले तक चंचल और सोनम आम लड़की की तरह जिंदगी जी रहे थीं. उनकी आंखों में ढेर सारे सपने थे. खूब पढ़ने-लिखने और पढ़े-लिखे लड़के से शादी कर घर बसाने के. वह भी सुबह उठ कर, चेहरा धो कर खुद को आइने में देखती थी और काजल, बिंदी, पाउडर लगा कर खुद के चेहरे पर नाज किया करती थी. वह भी क्रीम खरीदा करती.
उबटन लगाती, ताकि चेहरे पर मुंहासे न हो जायें. आज उसी चेहरे को वह आइने में देख फफक-फफक कर रो पड़ती है. हताश हो जाती है. वह बताती है कि अब तो बच्चे मुझे देख कर भूत-भूत चिल्लाते हैं. घबरा जाते हैं. इसलिए मैं घर के बाहर नहीं निकलती. लोग मेरी शकल नहीं देखना चाहते, इसलिए मैं दुपट्टे से चेहरा ढक कर रखती हूं. कोई मुझसे मिलने नहीं आता. यहां तक कि मेरी सहेलियां भी नहीं. बीच में आयी थी, तो मैं अस्पताल गयी हुई थी. मां ने बताया कि मेरी तरह सहेलियों ने भी खाना-पीना छोड़ रखा है. सब तनाव से सूखे जा रही है. वे भी बहुत डरी-सहमी रहती हैं.
आखिर क्या कसूर था मेरी बेटी का
चंचल की मां सुनैना कहती है, मेरी बेटी चंचल बहुत गुणी है. पूरे मोहल्ले में इसके जितना अच्छा पढ़नेवाली लड़की नहीं है. यह बैग ले कर जाती थी. यही बात लोगों को रास नहीं आयी. मेरी बेटी को सजने-संवरने का भी शौक था. तैयार होती थी, तो खूब प्यारी लगती थी. चंचल को खाना बनाना, सिलाई-कढ़ाई सब कुछ आता था. शादी-ब्याह के टाइम तो लोग इसे मेहंदी लगाने के लिए बुलाते थे, इतनी अच्छी मेहंदी लगाती थी मेरी बेटी.
यह भी किसी शादी में बढ़िया तैयार हो कर जाती थी. क्लास में सेकेंड आती थी. कंप्यूटर क्लास जाती थी ताकि कंप्यूटर इंजीनियर बने और अपने पिताजी का घर चलाने में हाथ बंटाये. चंचल घर में छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर हमारी मदद करती थी. हम सोच रहे थे कि हमारा बेटा नहीं है, तो क्या हुआ. हम अपनी बेटी को खूब पढ़ायेंगे. खुद नमक-रोटी खायेंगे, लेकिन इसको आगे पढ़ायेंगे. फिर इसकी शादी अच्छे घर में ही करेंगे. लेकिन हमारा, हमारी बेटी का सारा सपना टूट गया. आखिर क्या कसूर था मेरी चंचल का? यही कि उसने उस लड़के के साथ शादी करने से मना किया. भाग जाने से मना किया?
तब से अब तक चैन से नहीं सो पायी हूं
चंचल बताती है, जिन चार लड़कों (अनिल, घनश्याम, बादल और राज) ने मेरे साथ यह किया, वे रसूखदार हैं. जब वे मुझे छेड़ते थे और मैं उनको शिकायत करने की धमकी देती थी, तो वे मुझसे कहा करते थे कि तुम दलित हो. तुम हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती. हम तो छूट ही जायेंगे. आज भी उनकी यह बात मेरे कानों में गूंजती है. उस रात से ले कर अब तक मैं एक भी रात चैन से नहीं सोयी. हर रात को डर लगता है कि अभी कोई आयेगा और दोबारा मुझ पर तेजाब फेंकेगा. कभी झपकी लग भी जाती है, तो मैं घबरा कर उठ जाती हूं. ऐसा लगता है कि वे जेल से छूट गये हैं और मुझसे बदला लेने आ गये हैं. हर रात मेरी डर-डर कर बीतती है. उस दिन के बाद से दिन के वक्त भी छत पर जाने से डर लगता है.
कभी-कभी लगता है कि इससे तो अच्छा होता कि मर गयी होती. इतना दर्द, जलन, तकलीफ तो न सहनी पड़ती. न मैं बोल पा रही हूं.. न ठीक से खाना खा पा रही हूं. खुल कर हंसना तो दूर की बात, मुस्कुरा भी तो नहीं सकती. जब भी टीवी में मुंहासे की क्रीम, गोरी होने की क्रीम, साबुन का विज्ञापन देखती हूं या कोई सुंदर लड़की देखती हूं तो खूब रोना आता है मुझे.
अब मैं बस उन लड़कों को सजा दिलाना चाहती हूं, जिन्होंने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. मैं चाहती हूं कि लोग मेरी और मेरे जैसी लड़कियों के दर्द को समझे. मेरे साथ खड़े रहे और मुझे न्याय दिलाएं. और ऐसे लड़कों के खिलाफ कोई एक्शन ले ताकि फिर किसी लड़की का चेहरा मेरी तरह खराब न हो. मैं चाहती हूं कि सरकार हमारी मदद करे.
(नोट : इस घटना में आरोपित राजकुमार व बादल फिलहाल जेल में हैं. मुख्य आरोपित अनिल कुमार को नाबालिग होने के कारण बाल सुधार गृह, पटनासिटी में रखा गया है.)