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अधूरी रह गयी अंतिम समय में डॉ झा की भागलपुर आने की ख्वाहिश

भागलपुर : तीन दशक से यह सभी जानते थे कि सर्जरी में इनका वाक्य अंतिम हुआ करता था. बीमारी को पल भर में पहचाने की महारत इनमें थी. सामान्य डॉक्टर जिस सर्जरी को करने में तीन घंटे का समय लगाते थे उसे डॉ झा एक घंटे में कर बाहर निकल जाते थे. बच्चादानी के सर्जरी […]

भागलपुर : तीन दशक से यह सभी जानते थे कि सर्जरी में इनका वाक्य अंतिम हुआ करता था. बीमारी को पल भर में पहचाने की महारत इनमें थी. सामान्य डॉक्टर जिस सर्जरी को करने में तीन घंटे का समय लगाते थे उसे डॉ झा एक घंटे में कर बाहर निकल जाते थे.

बच्चादानी के सर्जरी में इनको अच्छा खासा अनुभव था. निधन से पहले तक इनसे वरीय चिकित्सक बिहार में नहीं था. मैनचेस्टर के जिस हॉस्पिटल में उन्होंने नौकरी की. वहां का अनुशासन उन्हें बहुत पसंद था. शहर आने के बाद इन्होंने यहां अनुशासन कायम किया.
ड्रेस को लेकर हमेशा सतर्क करने वाले डॉ झा ऑपरेशन के दौरान भी टाई पहनते थे. इनका मानना था कि इससे आत्मविश्वास बढ़ता है. हमेशा अंग्रेजी में बात करने वाले डॉ झा कक्षा में भी अनुशासन का पालन कराते थे. वार्ड में राउंड पर जाते थे, तो सिर्फ मरीज से बात करते थे.
तीन दिन पहले ही उन्होंने शहर के कई चिकित्सक से फोन पर बात की थी. जिसमें कहा था कि शहर में एक अति आधुनिक अस्पताल बहुत जरूरी है. सभी इसके लिए सामूहिक प्रयास करें. जिससे मरीज को बेहतर इलाज मिल सके. बीमार होने के बाद भी उन्होंने फोन पर अपने परिवार वालों से कहा था, हमें भागलपुर जाना है. ले चलो.
यहां बेहतर कार्य और करना है. हमारा रिश्ता भागलपुर से 45 साल से भी ज्यादा पुराना है. कुछ और करना है शहर के लिए. इनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं हुई. डॉ अर्चना झा ने बताया कि इनके निधन से चिकित्सा जगत में शोक व्याप्त है. इस क्षति को कभी पूरा नहीं किया जा सकता है. हमेशा उनकी कमी खलती रहेगी.
तीन दिन पहले ही सिलीगुड़ी से फोन पर बातचीत के दौरान जतायी थी भागलपुर आने की इच्छा
शहर में अपनी निगरानी में खुलवाना चाहते थे एक आधुनिक अस्पताल
इंजीनियरिंग से मेडिकल में एेसे अाए
अाइएससी के बाद डॉ झा ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग किया. कुछ दिन काम करने के बाद उन्होंने फिजिक्स अाॅनर्स करने के लिए पटना साइंस काॅलेज में नामांकन लिया. 1956 में मेडिसिन से ग्रेजुएट हुए. अाॅब्स गाइनी की डिग्री पीएमसीएच से प्राप्त किया.

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