दीपक राव, भागलपुर : रात के 11:35 बजे यहां शिविर में राहत तो न थी… हां, दिल में हरदम एक घबराहट जरूर थी, कि कहीं कुछ बुरा न हो जाये. पहले से ही बाढ़ में घरबार उजड़ जाने की चिंता थी और अब अपनाें की सलामती की. डर और खौफ यह कि कहीं अपने बच्चे और परिवार में किसी तबीयत न बिगड़ जाये, या कोई किसी हादसे की भेंट न चढ़े.
दुश्वारियां यह कि गांव की तरह न तो यहां रिश्ते-नातेदार ही थे और न ही जान-पहचान वाले. शाम ढलते ही यह डर दिल में घर कर जाता है कि कहीं कोई बच्चा गुम न हो जाये या जो कुछ माल-मवेशी साथ हैं, वह चोरी न हो जाये. अब उनकी हिफाजत के लिए पूरा परिवार बारी-बारी रतजगा कर रहा.
खौफ का आलम यह है कि …बस एक आहट से चौंक कर आंखें खुल जाती हैं. बाढ़ की पीड़ा झेल कर यहां मोहन महतो अपने परिवार के साथ आसरा लिए थे और अब टीएनबी कॉलेजिएट ही बन गया था उनका अस्थायी ठिकाना.
