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Bhagalpur News. कसौटी पत्थर का उपयोग कर उकेरी गयी है भगवान विष्णु की आकृति

गुवारीडीह में मिली भगवान विष्णु की प्रतिमा.

गुवारीडीह में मिली 13 सौ वर्ष पुरानी प्रतिमा ऋषव मिश्रा कृष्णा, भागलपुर

बिहपुर प्रखंड के जयरामपुर पंचायत के पुरातात्विक स्थल गुवारीडीह में मिली भगवान विष्णु की 1300 वर्ष पुरानी प्रतिमा उकेरने के लिए कसौटी पत्थर का उपयोग किया गया है. जल्द ही मूर्ति के संदर्भ में और भी नई जानकारी सामने आनी है. प्रतिमा मिलने के बाद पुरातात्विक स्थल फिर से चर्चा में है. गुवारीडीह टीला और अब तक मिले पुरावशेषों को संरक्षित करने की मांग फिर से उठने लगी है. जयरामपुर के ग्रामीण अविनाश कुमार उर्फ गंगी दा ने बताया कि वर्तमान में टीला कटाव प्रभावित है, जिससे पुरावशेष कोसी कछार में बह रहे हैं, किसी जानकार ग्रामीण की नजर पड़ती है तो वे उसे ले आते हैं लेकिन अक्सर पुरावशेष या तो नदी में बह जाते हैं या कोई अपने पास ही रख लेता है.

मोनी कुमारी कर रही है प्रतिमा पर शोध

मालूम हो कि प्रतिमा टीएमबीयू के इतिहास विभाग की शोधार्थी मोनी कुमारी के पास है. मोनी ने बताया कि उपेंद्र सिंह की पुस्तक प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास के अनुसार काले ग्रेनाइट या कसौटी पत्थर का उपयोग गुप्त काल, पाल काल तथा परमार काल के समय में होता था. मोनी ने बताया कि प्रतिमा पर शोध जारी है. शोध कार्य पूर्ण होने के बाद वह इसे जाहिर करेगी.

गुवारीडीह में रही है मिश्रित संस्कृति : डॉ. दिनेश गुप्ता

टीएमबीयू प्राचीन, भरतीय इतिहास विभाग, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ दिनेश गुप्ता बताते हैं कि प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि यह प्रतिमा पत्थर की बनी है. शैल्यगत विशेषता के आधार पर यह पाल कालीन प्रतीत होता है. यह आठवीं – नौंवी शताब्दी में इस प्रतिमा का निर्माण हुआ होगा. चूकि प्रतिमा खंडित है, इसलिए सभी आवरण को बताना मुश्किल है. यह पूरा क्षेत्र पालकालीन कला का बड़ा केंद्र रहा है. गुवारीडीह से प्रतिमा निकलने का अर्थ यह है कि यहां वैष्णव संप्रदाय का प्रभाव रहा होगा. यहां भगवान विष्णु की पूजा की जाती होगी. गुवारीडीह पुरास्थल का जब मैंने सर्वे किया था. अनुमान है कि गुवारीडीह ताम्र पाषाण काल से लेकर कुशाण काल तक में नगर रहा होगा. वहां से कुशाण काल की पक्की ईंटे भी प्राप्त हुईं हैं. पुरास्थल 20 से 25 फीट नीचे है. ऊपर गाद जमा हो गया है. अब तक मिले अवशेषों से गुवारीडीह में मिश्रित संस्कृति का पता चलता है.

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