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दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री तोमर की फर्जी डिग्री मामले में पटना हाइकोर्ट का विवि को कड़ा निर्देश

पटना: तिलका मांझी विश्वविद्यालय, भागलपुर द्वारा दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की एलएलबी की डिग्री को तथाकथित रूप से फर्जी करार दिये जाने के विश्वविद्यालय के निर्णय को चुनौति देने वाली याचिका पर पटना हाइकोर्ट ने विश्वविद्यालय को मूल रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 10 दिन […]

पटना: तिलका मांझी विश्वविद्यालय, भागलपुर द्वारा दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की एलएलबी की डिग्री को तथाकथित रूप से फर्जी करार दिये जाने के विश्वविद्यालय के निर्णय को चुनौति देने वाली याचिका पर पटना हाइकोर्ट ने विश्वविद्यालय को मूल रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 10 दिन बाद होगी. जस्टिस चक्रधारी शरण सिंह की एकलपीठ ने जितेंद्र सिंह तोमर की याचिका पर गुरुवार को सुनवाई की. गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल सरकार में कानून मंत्री रहे तोमर को पिछले साल दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. तोमर पर आरोप था कि उनकी एलएलबी कि डिग्री जाली है.

मामलेको लेकर तोमर को मंत्री पद से तबइस्तीफा देना पड़ा था, जब 2015 में यह मामला मीडिया की हेडलाइन बना. तोमर फिलहाल में जमानत पर बाहर हैं. यूनिवर्सिटी सिंडीकेट ने परीक्षा बोर्ड के निर्णय को स्वीकार करते हुए आप विधायक और दिल्ली के पूर्व मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की एलएलबी की डिग्री रद्द कर दी गयी थी. इसके लिए सीनेट की हुई बैठक में इस पर मुहर लगाते हुए अधिसूचना भी जारी कर दी गयी. तोमर पर आरोप था कि उन्होंने गलत माइग्रेशन प्रमाणपत्र के आधार पर टीएमबीयू में दाखिला लिया था. पूर्व में टीएमबीयू के सिंडिकेट, अनुशासन समिति ने डिग्री रद्द करने की अनुशंसा की थी.

विश्वविद्यालय ने मामले में दोषी कर्मचारियों पर भी कार्रवाई करने की अनुशंसा भी की थी. मामले में पूर्व मंत्री तोमर की कथित एलएलबी की डिग्री के सिलसिले में उनके खिलाफ थाना तातारपुर में तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलसचिव मोहन मिश्र ने प्राथमिकी दर्ज करने का आवेदन दिया था. हालांकि तोमर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने में विश्वविद्यालय ने काफी देरी की थी. जबकि उनकी एलएलबी डिग्री रद्द करने का फैसला सीनेट ने काफी पहले ही ले लिया था. तोमर के पटना हाइकोर्ट में इसके खिलाफ दायर याचिका के बाद विवि प्रशासन हरकत में आया था.

मामले में दिल्ली पुलिस ने बहुत पहले ही साकेत कोर्ट में इस मामले में आरोप पत्र दायर कर दिया था. जिसमें तोमर के अलावे तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय और मुंगेर की विश्वनाथ सिंह आफ लीगल स्टडीज के 17 अधिकारी और कर्मचारी आरोपी बनाए गए थे. इनमें 15 अधिकारियों और कर्मचारियों को पूर्व प्रतिकुलपति डा. अवधेश कुमार राय की अध्यक्षता में बनी आंतरिक जांच समिति ने कसूरवार ठहराया था. और पुलिस की कागजी पड़ताल और पूछताछ में भी इनका दोष सामने आया था.

इसके अलावे दो अन्य पर जिनमें मुंगेर के वीएनएस ऑफ लीगल स्टडीज के सेंटर सुपरिटेंडेंट अनिल कुमार सिंह और कॉलेज के मालिक आनंद विजय पर भी चार्जशीट में आरोप तय किया गया था। वहीं अन्य कर्मचारियों में कॉलेज के उस वक्त के प्राचार्य सुरेंद्र प्रसाद सिंह, वहां के लेक्चरार जनार्दन प्रसाद यादव, हेड क्लर्क कृष्णानंद, विश्वविद्यालय के पूर्व परीक्षा नियंत्रक राजेंद्र प्रसाद सिंह, राजीव रंजन पोद्दार, इम्तहान महकमा से जुड़े बड़े नारायण सिंह, रजी अहमद, सदानंद राय,अनुरुद्ध दास, निरंजन कुमार, दिनेश श्रीवास्तव, शंभुनाथ सिंहा, भूदेव प्रसाद सिंह, एचके पांडे और राम वतार शर्मा. दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र हजारों पन्ने में थे. जिसमें तोमर ने इंटर से लेकर कानून की डिग्री हासिल करने के तमाम रिकार्ड और विश्वविद्यालयों के 1994 से 1998 सत्र के टेबुलेशन रजिस्टर , अवध विश्वविद्यालय फैजवाद का स्नातक विज्ञान का और बुंदेलखंड झांसी का माइग्रेशन रिकार्ड रजिस्टर बगैरह जैसे जरुरी कागजात आरोप पत्र के साथ लगाए.

तोमर ने ये सभी डिग्री फर्जी तरीके से हासिल कर मुंगेर की लीगल स्टडीज में दाखिला लेते वक्त प्रस्तुत किया था. जांच में भी सभी फर्जी साबित हुई थी. इतना ही नहीं उन्हें गिरफ्तार कर जब फैजवाद और मुंगेर ले जाकर पूछताछ की गयी कि वे किस कमरे में बैठ कर इम्तहान दिए थे. तो उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था. और वे बगले झाँकने लगे थे. भागलपुर विश्वविद्यालय की लिखवाई भागलपुर में भारतीय दंड विधान की दफा 419 , 420 , 467 , 468 , 471 , और 120 बी के तहत फरेव , धोखाधड़ी , साजिश जैसी संगीन अपराध करने को लेकर प्राथमिकी संख्या 153/17दज किया गया था.

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