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भागलपुर रेंज के युवाओं को सफलता के अनोखे गुरुमंत्र दे रहे हैं DIG विकास वैभव

भागलपुर : बिहार के वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी और भागलपुर रेंज के डीआईजी विकास वैभव ने जहां इलाके में स्मार्ट पुलिसिंग के जरिये आम लोगों के दिलों में जगह बना ली है, वहीं दूसरी ओर अपने विचारों से युवाओं के अंदर जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने का गुण विकसित करने में लगे हैं. भागलपुर […]

भागलपुर : बिहार के वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी और भागलपुर रेंज के डीआईजी विकास वैभव ने जहां इलाके में स्मार्ट पुलिसिंग के जरिये आम लोगों के दिलों में जगह बना ली है, वहीं दूसरी ओर अपने विचारों से युवाओं के अंदर जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने का गुण विकसित करने में लगे हैं. भागलपुर जिले के हजारों युवा विकास वैभव से प्रतियोगिता परीक्षाओं से लेकर जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने का गुरुमंत्र ले रहे हैं. उनसे हाल में एक युवक ने पूछा कि वह विकास वैभव बनना चाहता है, कोई उपाय बताये. उसके बाद उन्होंने जो जवाब दिया, उसे सुनकर युवाओं ने काफी कुछ सीखा. उन्होंने कहा कि तुम्हें सफल बनने के लिए कोई और बनने का प्रयास नहीं करना है और अगर सही में श्रेष्ठ बनना चाहते हो तो तुम स्वयं जैसे ही बनने का प्रयास करो और अपने अंदर समाहित बृहत्ता को प्राप्त करो, चूंकि तुम स्वयं ही श्रेष्ठतम हो. अन्यों के कृत्य तुम्हें प्रभावित कर प्रेरित भले ही कर सकते हैं और विषमताओं में मार्गदर्शी भी हो सकते हैं, परंतु तुम्हारी यात्रा भिन्न है और निश्चित ही तुम इस विश्व जगत में एक अलग अपना संदेश लेकर स्वयं आए हो.

दार्शनिक अंदाज में दिखे डीआईजी

युवाओं के बीच पूरी तरह दार्शनिक अंदाज में उन्हें सफलता के मंत्र देने वाले विकास वैभव लगातार उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. उन्होंने युवाओं को मंत्र देते हुए कहा कि ईश्वर ने हर व्यक्ति के डीएनए को विशेष बनाया है जो सबसे अलग है और समाज में अपनाभिन्न योगदान समर्पित करने हेतु निमित्त है. कई बार दूसरों के अनुसरण के कारण हम अपने अंतः मूल्यों से दिग्भ्रमित हो जाते हैं और विशेषकर ऐसा तब होता है जब हमारी अपनी मूल क्षमताओं से विश्वास डिग जाता है, जो सर्वथा गलत है. ईश्वर की वह असीम शक्ति तो सभी के अंदर समाहित है जो सदैव सही मार्गदर्शन करने को तत्पर है. कहीं और न देखकर यदि हम गहन आत्मचिंतन करेंगे तो उपनिषदों में वर्णित महावाक्य अहम् ब्रह्मास्मि तथा तत्त्वमसि के तात्पर्य को आत्मसात् करते हुए सभी के लिए स्वयं मार्गदर्शक बन जायेंगे. उपनिषद का एक श्लोक जिसे कुछ युवाओं ने अवश्य सुना होगा. ऊ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते. पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वसिष्यते. यह बताती है कि पूर्ण को खंडित करने पर भी हर खंड पूर्ण ही रहता है और पुनः पूर्ण में ही विलीन हो जाता है, अर्थात् हर आत्मा जो परमात्मा कार्य ही अंशरूप है उसमें उसके सभी गुण समाहित हैं.

युवाओं के बीच पॉपुलर हो रहे हैं वैभव

उन्होंने युवाओं को धार्मिक और दार्शनिक संदर्भों और अनुभवों का हवाला देते हुए बताया कि यदि हम मानव समाज के इतिहास को देखेंगे तो पायेंगे कि जो सामाजिक विषमताएं हमें आज विचलित करती है, वे हर काल में रही हैं. सत्य और असत्य के बीच संघर्ष जहां निरंतर चलते हुए संसार का प्राकृतिक नियम सा बन गया है, वहीं उपनिषद में वर्णित और वर्तमान भारत का राष्ट्रीय संदेश सत्यमेव जयते उसी संघर्ष की निश्चित परिणति को अंकित करता है. अपने आसपास देखने पर हम अवश्य पायेंगे कि कतिपय स्वार्थो से ग्रसित होकर अनेकानेक मनुष्य एक दोहरे जीवन को जीते हैं. एक तरफ जहां सभी दूसरों में और व्यवस्था से आदर्श की अपेक्षा करते हैं, वहीं अपने आचरण और व्यवहार से धर्म तथा समाज के आदर्शों को धृष्टता पूर्वक पूर्णत: कलंकित करते हैं. उन्होंने कहा कि जहां भ्रष्टाचार के संदर्भ में आचार्य चाणक्य की कही गयी बातें आज भी प्रासंगिक हैं वहीं सभा को संबोधित करते मैंने आगे कहा कि यदि वास्तव में सामाजिक परिवर्तन देखने की इच्छा रखते हो, तो जो परिवर्तन दूसरों में और व्यवस्था में देखना चाहते हो, उसे स्वयं उदाहरण बनकर साक्षात करना होगा. जिस आदर्श की कल्पना कर रहे हो, उसे स्थापित करने के लिए जब स्वयं निमित्त बनने का संकल्प लेकर अडिग रहोगे, तभी समाज में परिवर्तन संभव है.

दहेज प्रथा और मानव जीवन पर भी मंत्र

उन्होंने कहा कि जैसे यदि तुम दहेज प्रथा को समाप्त देखना चाहते हो तो यदि पुरुष हो तो संकल्प लेना होगा कि दहेज नहीं लोगे और यदि स्त्री हो, तो दहेज मांगने वाले से विवाह न करने का संकल्प लेना होगा. परिवर्तन का आरंभ स्वयं को परिवर्तित करने से ही होगा. यदि अंधेरे कक्ष में सभी तमस को कोसते रहें तो प्रकाश होगा क्या? प्रकाश करने के लिए तो माचिस की एक तीली भी सक्षम है,लेकिन उसे जलाना होगा. केवल व्यवस्था को बुरा कहने या उसके क्लेशों पर मंथन करने से सुधार कभी नहीं होगा. उन्होंने कहा कि हमें सदा यह अवश्य स्मरण रखना है कि पूरे समाज की दशा और दिशा को तो शायद अकेले एक व्यक्ति नहीं बदल सकता, परन्तु खुद अपने आचरण से ऐसा आदर्श तो स्थापित कर ही सकता है जिससे अन्य भी प्रेरित हों, छोटे प्रयासों से भी बड़ा परिवर्तन संभव है, बस सकारात्मक प्रयास करते रहना आवश्यक है. विकास वैभव का यह अलग रूप युवाओं को काफी भा रहा है.

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