बीहट. बीहट स्थित विश्वनाथ मंदिर में सोमवार की देर रात 94वें श्रीजानकी महोत्सव का भव्य आयोजन हुआ, जिसमें सनातन धर्म के महानायक मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम और जगतजननी माता जानकी के अद्वितीय विवाह का दिव्य दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए. बीहटवासी इस बेमिसाल महोत्सव को देखने और सुनने के लिए उमड़े और मंदिर प्रांगण भक्तिभाव से गूंज उठा. महोत्सव के शुभ अवसर पर बैंड-बाजे के साथ मंदिर के अवध द्वार से भगवान श्रीराम की भव्य बारात निकाली गयी, जिसे बीहट बाजार और नगर भ्रमण के दौरान ग्रामीणों ने पुष्पवृष्टि और आरती से स्वागत किया. रविवार की शाम मंदिर आंगन में दूल्हे श्रीराम को आरसी मौरी पहनाकर विवाह की पूर्व तैयारी पूरी की गयी थी. श्रद्धालु एहन ससुरारी दुल्हा कहुं कतो पैबे तथा आज पुरल मनोरथ मोर जैसे पारंपरिक गीत गाकर उत्सव का आनंद उठा रहे थे. अवध नगरिया से ऐले बरतिया आदि मंगल गीतों के माध्यम से मंदिर का वातावरण भक्तिभाव से सराबोर था. विवाह के अवसर पर रंग-बिरंगी आतिशबाजी ने माहौल को और भी भव्य बना दिया. रात्रि में वैदिक विधि-विधान के अनुसार विवाह संपन्न कराया गया, जिसमें पीठासीन आचार्य राजकिशोर शरण जी ने जनक के रूप में कन्या दान की रस्म निभायी. महत्वपूर्ण यह है कि महोत्सव में दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने कहा कि अध्यात्मिक गुरु की कृपा से इस अलौकिक विवाह का दर्शन मिलना परम सौभाग्य की बात है. उन्होंने बताया कि मिथिला ने श्रीराम को दामाद रूप में स्वीकार कर समस्त समाज के लिए पाहून बनाया है. पीठासीन आचार्य राजकिशोर शरणजी ने कहा कि सिय-रनिवास का जानकी महोत्सव वैष्णव माधुर्य भक्ति का उच्चतम एवं अनिवर्चनीय रस प्रस्तुत करता है. इस भव्य आयोजन ने बीहटवासियों और श्रद्धालुओं के हृदय में भक्तिमय आनंद भर दिया.
जानकी द्वार पर पहुंचते ही बारात का हुआ स्वागत
नगर भ्रमण के उपरांत जानकी द्वार पर पहुंचते ही बारात में शामिल लोगों का स्वागत किया गया. विवाह मंडप के बाहर दूल्हा बने भगवान श्रीराम की आरती उतारी गयी. उसके बाद द्वार पूजा किया गया. इस दौरान दूल्हे सरकार से सखियों की हंसी-ठिठौली देख लोग काफी आनंदित हो रहे थे. उसके बाद आदर के साथ ले जाकर उन्हें विवाह मंडप के आसन पर विराजमान कराया गया. फिर मां जानकी को भी विवाह मंडप में लाया गया. इसके बाद नाखून काटने से लेकर कन्यादान की रस्में बारी-बारी से पूरी की गयी. फिर सिया ने रघुवर और रघुवर ने सिया को वरमाला पहनायी. विवाह मंडप पर विवाह की सारी रस्में वैदिक मंत्रोच्चार एवं मिथिला के पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ संपन्न हुई. पीठासीन आचार्य राजकिशोर शरण जी महाराज ने जनक के रूप में कन्या दान का विधान पूरा किया.इस दिव्य दृश्य को देखकर पूरा मंदिर प्रांगण श्रीराम एवं माता जानकी की जयकारे से गूंज उठा. महिलाओं के द्वारा गाये जा रहे मंगल गीत सुन लोग रात भर आनंदित होते रहे, वहीं अलौकिक छटा देखकर देखनेवाले धन्य हो गये. वहीं चार दिवसीय श्रीरामजानकी विवाह महोत्सव के तीसरे दिन आज रामकलेवा में दूल्हा श्रीराम को उनके चारों भाइयों के साथ 56 प्रकार के व्यंजनों का ज्योनार कराया जायेगा. बुधवार की रात में चौथारी के विधान के साथ ही श्रीरामजानकी विवाह महोत्सव संपन्न हो जायेगा.
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