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Begusarai News : अमृत तत्व ही भारतीय संस्कृति की पहचान : चिदात्मन

कार्तिक कल्पवास महोत्सव के अंतर्गत सर्वमंगला सिद्धाश्रम के ज्ञान मंच से महर्षि चिदात्मन वेद विज्ञान अनुसंधान न्यास के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ रविवार को हुआ.

बीहट. कार्तिक कल्पवास महोत्सव के अंतर्गत सर्वमंगला सिद्धाश्रम के ज्ञान मंच से महर्षि चिदात्मन वेद विज्ञान अनुसंधान न्यास के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ रविवार को हुआ. कार्यक्रम का उद्घाटन सर्वमंगला के अधिष्ठाता स्वामी चिदात्मन जी महाराज के सान्निध्य में ज्ञानदीप प्रज्वलित कर किया गया. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व प्राचार्य प्रो. उमेश प्रसाद सिंह ने कहा कि सिमरिया धाम अमृत भारत का केंद्र बिंदु है, जहां से संपूर्ण देश में अमृत धारा प्रवाहित होती है. यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि परम पूज्य महर्षि चिदात्मन जी महाराज के प्रयासों से इस आदि कुंभस्थली को वैश्विक पहचान मिली है. संगोष्ठी के प्रथम दिवस पर विशिष्ट अतिथि डॉ नागेंद्र कुमार शर्मा (पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय) ने कहा कि सिमरिया धाम से आरंभ हुआ अमृत संस्कृति का पुनः प्रवाह विश्व को फिर से प्रकाशित करेगा और भारत को उसके परम वैभव तक पहुंचायेगा. वहीं पूर्व प्राचार्य डॉ अरुण कुमार झा ने कहा कि अमृत तत्व पर चल रहा यह चिंतन-विमर्श आध्यात्मिक अनुसंधान का विशिष्ट स्वरूप तैयार करेगा. उन्होंने आशा व्यक्त की कि एक दिन यह स्थान विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता प्राप्त करेगा. पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ जनार्दन चौधरी ने कहा कि अमृत तत्व भारतीय संस्कृति के शाश्वत सत्य का प्रतीक है, जिसने स्वयं अमरत्व को धारण कर संपूर्ण सृष्टि को अमरता का संदेश दिया है. पटना से आये विद्वान धनंजय श्रोत्रिय ने कहा कि गंगा तट पर अवस्थित सिमरिया धाम साहित्य, दर्शन और संस्कृति का संगम स्थल है. यहीं से महर्षि चिदात्मन जी की अमृतवाणी जन-जन तक पहुंचती रही है. संगोष्ठी के संयोजक श्याम किशोर सहाय ने कहा कि यदि भारतीय संस्कृति को किसी एक विशेषण में परिभाषित करना हो तो वह अमृत तत्व होगा. यह वही संस्कृति है जिसने जीवन में अमृत तत्व को प्रतिष्ठित किया है. वेदों और उपनिषदों में हमें अमृतस्य पुत्र* कहे जाने का यही अर्थ है. कार्यक्रम का संचालन डॉ घनश्याम झा (न्यास अध्यक्ष) ने किया, जबकि विषय प्रवेश प्रो. अवधेश झा (उपनिदेशक) ने कराया. न्यास के प्रधान न्यासी रविंद्र ब्रह्मचारी और संयोजक श्याम किशोर सहाय ने सभी अतिथियों को मिथिला की परंपरा अनुसार अंगवस्त्र और पाग से सम्मानित किया. धन्यवाद ज्ञापन न्यास के निदेशक डॉ विजय कुमार झा ने किया. इस अवसर पर प्रो. पीके झा, नीलमणि, प्रभात झा, रामप्रीत कुमार, राजेश कुमार, अभिजीत, अभिनंदन झा, अपराजिता झा, रंजना कुमारी, स्वीटी देवी, दिव्या देवी, हंस झा, कृष्ण झा, आद्या सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु, शोधार्थी और भक्तजन उपस्थित रहे.

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