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फाइलों ने सोख लिया काबर का पानी
उद्धारक की जरूरत : विश्व प्रसिद्ध इस झील में आते थे कई देशों के पक्षी बेगूसराय का काबर झील 15 हजार, 780 एकड़ में फैला है. विदित हो कि इसका स्थान पूरे विश्व में प्रसिद्ध माना जाता है. एक समय था जब विश्व के कई देशों से पक्षी यहां आकर आराम फरमाते थे, लेकिन सरकार […]
उद्धारक की जरूरत : विश्व प्रसिद्ध इस झील में आते थे कई देशों के पक्षी
बेगूसराय का काबर झील 15 हजार, 780 एकड़ में फैला है. विदित हो कि इसका स्थान पूरे विश्व में प्रसिद्ध माना जाता है. एक समय था जब विश्व के कई देशों से पक्षी यहां आकर आराम फरमाते थे, लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण यह अपने अस्तित्व को खोते जा रहा है. समस्याओं से ग्रसित इस झील परिक्षेत्र में एक तरफ जहां जंगल उजाड़ हो चुके हैं, वहीं वन्य प्राणी व पशु-पक्षी धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं.
बेगूसराय/छौड़ाही : बेगूसराय का काबर झील पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. वर्षो पूर्व यहां कई देशों के मेहमान पक्षी आकर कई माह तक रहते थे, जिससे झील की सुंदरता देखते बनती थी. दूर-दूर से लोग इन मेहमान पक्षियों को देखने के लिए आते थे. लेकिन, शासन और प्रशासन की उपेक्षा के चलते यहां पानी संकट गहराने लगा है, जिससे झील का अस्तित्व आज खतरे में है. कई बार इस दिशा में ध्यान आकृष्ट कराने के बाद भी विश्व प्रसिद्ध काबर झील आज अपनी उपेक्षा का दंश ङोल रहा है.
गहराने लगा है झील में पानी का संकट : विश्व प्रसिद्ध काबर झील में पानी का संकट गहराने लगा है. समस्याओं से ग्रसित इस झील परिक्षेत्र में एक तरफ जहां जंगल उजाड़ हो चुके हैं, वहीं वन्य प्राणी व पशु-पक्षी भी धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं. इससे काबर झील पक्षी विहार अपनी प्राकृतिक सौंदर्य खोती चली जा रही है.
साल दर साल आनेवाले मेहमान प्रवासी पक्षियों के कलरव अब मेहमान परिंदे भी मुंह मोड़ने लगे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण काबर में पानी की कमी होना बताया जा रहा है. काबर झील का इलाका धीरे-धीरे सूखने लगा है. जिस काबर में कभी सालों भर पानी लगा रहता था. आज वहां सरसों की बंपर पैदावार हो रही है. साल 2014-15 में भी सैकड़ों एकड़ में यहां सरसों की खेती हुई है.
काबर जलनिकासी योजना पर लगा ग्रहण : काबर में पानी के आमद-रफत को बरकरार रखने के लिए कुछ साल पहले आधा दर्जन प्रखंडों से छौड़ाही के रास्ते दो नहरों का निर्माण कर बेकार जमे पानी को काबर झील तक पहुंचाने की एक योजना को सरकार द्वारा मंजूरी दी गयी थी. परंतु आठ साल बाद भी यह योजना फाइलों में दम तोड़ रही है. जानकारी के मुताबिक, तत्कालीन राजद नेता डॉ राधाकृष्ण सिंह ने वर्ष 2006 में राज्यपाल से मुलाकात कर जलजमाव वाले क्षेत्र से जल निकासी की योजना की तरफ ध्यान दिलाया था. डॉ सिंह ने जलजमाव वाले क्षेत्र से जल निकासी की व्यवस्था पर बेकार पानी को काबर झील में नहर के रास्ते गिराने का प्रस्ताव दिया था.
राज्यपाल ने तत्कालीन राज्य सरकार को प्रस्ताव भेज कर इस महत्वाकांक्षी योजना की मंजूरी को लिखा था. जानकारों के मुताबिक, साल 2007-2008 में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की योजना की मंजूरी के लिए प्रस्ताव भेजा था. योजना को मंजूरी भी मिल गयी. योजना के मुताबिक पहले नहर के माध्यम से गढ़पुरा, बखरी, समस्तीपुर जिले के रोसड़ा व हसनपुर प्रखंड के उत्तरी क्षेत्र से पानी को छौड़ाही के चंद्रभागा नदी (अब लुप्तप्राय) बखड्डा के रास्ते एवं दूसरी नहर के माध्यम से खोदाबंदपुर व चेरियाबरियारपुर प्रखंड के मध्य स्थित लड़बैया चौर के रास्ते जलजमाव वाले खेतों से पानी को काबर झील तक पहुंचाने की योजना थी.
अगर इस महत्वाकांक्षी योजना पर अमल हुआ होता, तो आज काबर झील सूखे की समस्या से ग्रसित नहीं होता.
योजना में फंस गया पेंच : योजना की मंजूरी के बाद सव्रेक्षण कार्य शुरू हुआ. परंतु सव्रेक्षण का कार्य पूरा होते-होते इस महत्वाकांक्षी योजना पर ग्रहण लगना शुरू हो गया. जानकारी के मुताबिक, जमीन मालिकों ने जमीन देने से इनकार कर दिया. वन विभाग ने भी नियम-कायदे को आड़े लाकर कोर-कसर पूरा कर दिया.
अब यह सिफारिश राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास जाएगी. उम्मीद की जाती है कि वह अध्यादेश को पांच अप्रैल से पहले फिर जारी करेंगे। पूर्ववर्ती अध्यादेश पांच अप्रैल को निष्प्रभावी हो जाएगा.
सूत्रों ने बताया कि यह नया अध्यादेश होगा जिसमें उन सभी नौ संशोधनों को शामिल किया जाएगा जो लोकसभा में लाए गए थे। उन्होंने कहा कि अध्यादेश पहले से ही लंबित विधेयक से अलग नहीं हो सकता.
भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार :संशोधन: विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है. दिसंबर में जारी अध्यादेश के स्थान पर इस विधेयक को लाया गया था.
अध्यादेश के प्रभावी बने रहने के लिए इसे पांच अप्रैल तक संसद की मंजूरी मिल जानी चाहिए थी। लेकिन राज्यसभा में सरकार के पास पर्याप्त संख्या नहीं है और यह विधेयक उस सदन में पारित नहीं हो सका है.
सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्ष ने इस विधेयक का व्यापक विरोध किया है. अध्यादेश के विरोध को दरकिनार करते हुए संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति ने शुक्रवार को राज्यसभा के मौजूदा सत्र का सत्रवसान करने का फैसला किया था ताकि अध्यादेश को फिर से जारी करने का रास्ता साफ हो सके.
राष्ट्रपति ने शनिवार को सदन का सत्रवसान कर दिया था. संविधान के अनुसार कोई अध्यादेश जारी करने के लिए संसद के कम से कम एक सदन का सत्रवसान जरुरी है. संसद का बजट सत्र 23 फरवरी को शुरु हुआ था और अभी एक महीने का अवकाश है. यह अध्यादेश जारी होने पर मोदी सरकार द्वारा जारी किया जाने वाला 11वां अध्यादेश होगा.
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