यहां पांच देवताओं का निवास, जिनकी प्रतिमाएं गुफा में हैं मौजूद
संजीव पाठक, बौंसी.समुद्र मंथन का प्रतीक मंदार आज भी अपने गर्भ में कई ऐसी चीजों को समेटे हुए हैं, जिसका रहस्य अब तक अनसुलझा हुआ है. मंदार पर्वत जहां 14 रत्नों की प्राप्ति के लिए जाना जाता है. वहीं पर्वत पर विराजमान विभिन्न देवी देवताओं के आशीर्वाद से कई राजा महाराजाओं को विजय प्राप्त हुई है. महाभारत के महान धनुर्धर अर्जुन को भी विजय प्राप्त हुई थी. भारत के महान सूर्यवंशी सम्राट समुद्रगुप्त ने चौथी शताब्दी में आसपास के राजाओं पर जो विजय प्राप्त की थी उसकी मनौती भी मंदार पर्वत के मध्य स्थित नरसिंह भगवान से मांगी गयी थी. ऐसे कई उदाहरण हैं, जो धीरे-धीरे अब इतिहासकारों के द्वारा सामने लाये जा रहे हैं. इतिहासकार बताते हैं कि यह प्रमाणित तथ्य है. मंदार पर्वत पर सीताकुंड के पास एक प्राकृतिक गुफा में भगवान नरसिंह की प्रतिमा है. यहां पूजा एवं दर्शन करने प्रतिवर्ष हजारों लोग आते हैं. यहां पांच देवताओं का निवास है, जिनकी प्रतिमाएं इस गुफा में देखी जा सकती हैं.
इतिहास के मर्मज्ञ उदयेश रवि ने दी जानकारी
उक्त आशय की जानकारी स्थानीय इतिहास के मर्मज्ञ उदयेश रवि ने दी. वे कहते हैं कि मंदार पर्वत के भगवान नरसिंह की प्रतिमा की स्थापना कब हुई यह तो अज्ञात है, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य यह बताते हैं कि ‘गुप्त’ टाइटिल वाले राजा द्वारा दर्जनों विद्रोही राजाओं पर विजय प्राप्त करने के बाद इस गुफा मंदिर को चौथी शताब्दी में एक ब्राह्मण को राजा ने दान दे दिया था. इस गुफा में आज भी शिलालेख के रूप में यह अंकित है. कुल आठ पंक्तियों के इस शिलालेख को सन 1963 में भाषा विशेषज्ञ दिनेश चंद्र सरकार ने पढ़ा था. महान समुद्रगुप्त ने भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण विष्णु दत्त को मनौती पूरी होने पर यह गुफा मंदिर सौंपा था. इससे समझ सकते हैं कि राजा समुद्रगुप्त की सबसे कठिन विजय में मंदार के भगवान नरसिंह का कितना योगदान रहा. इनसे मांगी गयी मनौती थी, जिसे राजा ने अलग-अलग कई युद्धों को जीतने के उपरांत पूरा किया. इसका प्रमाण इसके ‘मंगल जीतम् भागवत’ से आरंभ होना है. इसका अर्थ है कि भागवत यानी विष्णु के रूप इन भगवान नरसिंह की मंगल कृपा से विजय मिली. राजा ने इस देवालय को अपने खासमखास रहे जिन विशिष्ट ब्राह्मण को महादान दिया वे विष्णु शर्मा के पुत्र विष्णु दत्त थे. संभवतः ये वही विष्णु थे जिनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘पंचतंत्र’ है. बाद में वे आंध्र के एक साम्राज्य में चले गये.
सन 1964 में गुफा के समीप उकेरे गये इस शिलालेख को इतिहासकार डीसी सरकार ने पढ़ा था. उन्होंने यह भी बताया था कि ये पंच महापातकों से मुक्ति के लिए मंदार पर स्थापित हैं. इनकी प्रतिमा दो हजार वर्षों से अधिक पुरानी है. इसकी भाषा संस्कृत एवं लिपि प्रोटो ब्राह्मा है.इतिहासकार रवि ने बताया कि गुप्त वंश के राजा विष्णु के उपासक थे और उनका राजचिह्न गरुड़ था. इन राजाओं को सूर्यवंशी कहा गया है. इस देवालय गुहा के प्रवेश द्वार के ऊपर में सूर्य का चिह्न बना है. इन्होंने बताया कि इस नरसिंह गुफा में ऐतिहासिक साक्ष्य के दो शिलालेख हैं. एक शिलालेख में ‘श्रीविराजोगुहा’ लिखा है जो इस गुफा का नाम है. गुहा संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ गुफा है. यहां विराजो का मतलब उसमें विराजित देवता से है जिसके अधिपति स्वयं नरसिंह हैं. दूसरा शिलालेख 8 पंक्तियों का है. इसमें लिखा गया है कि यह प्रशस्ति भाद्रपद मास की द्वितीया तिथि को 30वें वर्ष में लिखी जा रही है. यहां 30वां वर्ष गुप्त राजाओं के शासनकाल का है. आठ पंक्तियों के इस शिलालेख पर आज के नौसिखिस बहुत बखेड़ा खड़ा करते हैं. कुछ लोग बिना अध्ययन किए ही इसे अंगिका लिपि बता देते हैं तो कुछ लोग इसे नरसिंह भगवान की स्तुति कह देते हैं. वस्तुतः यह वो शिलालेख है जिसमें देवकर्म के साथ दान प्रशस्ति भी है. इन नरसिंह भगवान की पूजा पंच महापातकों से मुक्ति के लिए किए जाने का विधान है.
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