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दूसरे राज्य की मछली बढ़ा रही थाली की शोभा

मत्स्य पालन किसान उदासीन, लोकल मछली का नहीं बढ़ रहा उत्पादन बांका : जिले में मतस्य पालन के लिए सरकार ने कई योजनाएं चला रखी है. इसको लेकर शहर सहित विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में मत्सय पालन के लिए किसानों को प्रशिक्षण व जागरूक की जा रही है. किसानों के निजी जमीन पर तालाब की खुदाई […]

मत्स्य पालन किसान उदासीन, लोकल मछली का नहीं बढ़ रहा उत्पादन

बांका : जिले में मतस्य पालन के लिए सरकार ने कई योजनाएं चला रखी है. इसको लेकर शहर सहित विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में मत्सय पालन के लिए किसानों को प्रशिक्षण व जागरूक की जा रही है. किसानों के निजी जमीन पर तालाब की खुदाई के लिए सरकार द्वारा अनुदान की राशि दी जा रही है. जिससे किसान मत्स्य पालन कर आत्मनिर्भर हो सके. बावजूद इसके जिले भर में मत्सय पालन की ओर किसान जागरूक नहीं हो पा रहे हैं. इस कार्य में उदासीनता से क्षेत्र के लोगों को लोकल मछली नसीब नहीं होता है. लोगों को बाजार में बिकने वाले बर्फ वाली मछली को खाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
शादी विवाह व पार्टियों में बर्फ वाली मछली का हो रहा उपयोग: शादी विवाह का शुभ मुहूर्त की शुरूआत हो चुकी है. चारों ओर रंगीन रोशनी व शहनाई की गूंज सुनाई देने लगी है. लेकिन इन सब गूंज के बीच शादी व पार्टी में चलने वाली लजीज भोजन में से मांसाहारियों के बीच थाली से लोकल मछली गायब हो रहे है. मांसाहारी भोजन के लिए शहर वासियों को दूसरे राज्य की मछलियां का सेवन करना पड़ा रहा है. मालूम हो कि जिले में आयोजित होने वाली किसी तरह के पाटियों में अधिकांश लोग मछली व मांस का भोजन पसंद करते है. प्राय: पार्टियों में वर-वधु पक्ष के लोगों द्वारा मांसाहारी भोजन में मांस व मछली परोसते है.
इस तरह के भोजन में लोगों को भले ही स्वाद मिल जाय लेकिन इस तरह की मछलियों के ग्रहण से आये दिन लोगों को कई परेशानियां हो रही है. स्थानीय लोग कि माने तो अब लोगों ने दूसरे राज्य मछली खाने से परहेज करने लगे हैं. क्योंकि जो भी मछली मार्केट में बिक रहे हैं वो मछली कई दिनों का बासी रहता है. कभी-कभी दूसरे राज्य से यहां तक उस मछली को आने में करीब पांच से सात दिन का वक्त भी लग जाता है. लेकिन बर्फ में रहने के कारण लोगों को कुछ पता नहीं चलता है.
मछली बेचने वाले लोग वासी मछली को ताजा करने के लिए कई तरह के हथकंडा अपना रहे हैं. जैसे ही बर्फ वाली मछली को विक्रेता सबसे पहले पानी में उसे साफ कर लेते है. उसके बाद मछली के खून को मछली के उपर पर छिड़क देते हैं. इसके साथ लोकल तालाब से कुछ घास को लेकर मछली में लपेट देते हैं. जो कि ग्राहक को लगे की यह मछली ताजा व लोकल है.
कई सरकारी तालाब अतिक्रमणकारी के कब्जे में
कहने को तो जिले भर में करीब 840 सरकारी तालाब है. लेकिन अधिकांश तालाबों की कई सालों से साफ-सफाई नहीं होने से उसका अस्तित्व खत्म होने के कगार पर पहुंच चुका है. तालाबों की भराई होने से अधिक समय तक पानी नहीं रह पाता है. वहीं कई सरकारी तालाबों को स्थानीय लोग अपने कब्जे में ले रखा है. जिस कारण जिले में मछली पालन सही तरीके से नहीं हो पा रहा है.
कई तालाब गरमी आने के साथ ही सूख जाती है. जबकि मत्स्य विभाग द्वारा मत्स्यपालन के लिए कई तरह के योजना चला कर आम लोगों को इसका लाभ देने में जुटे हुए है. इस संबंध में मछुवारा समिति के सचिव पंकज कुमार मंडल ने बताया कि जिले भर के प्राय: सभी तालाबों की स्थिति दयनीय है.
बोले मत्स्य पदाधिकारी
जिले में करीब 840 सरकारी तालाब हैं. कुछ तालाब में गाद जमा हो गया है. इस कारण मछली पालन सही तरह से नहीं हो पा रहा है. इसके साथ दर्जनों तालाब को स्थानीय लोगों ने अपने कब्जे में लेकर अतिक्रमित कर लिया है. जल्द ही अभियान चला कर सभी तालाबों की साफ-सफाई के उन्हें साथ ही अतिक्रमित तालाब को मुक्त करा लिया जायेगा.
संजय किस्कू, जिला मत्सय पदाधिकारी

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