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अब मंदारहिल डॉट इन पर उपलब्ध हैं मंदार के दर्शनीय प्राचीन स्थल

बौंसी : मंदार के बारे में अब इंटरनेट की दुनिया से भी जानकारी ली जा सकती है. इसके लिए ‘मंदार हिल डॉट इन’ के नाम से एक वेबसाइट तैयार किया गया है. वेबसाईट पर मंदार पर्वत, भगवान मधुसूदन और यहां के आसपास के तीर्थों तथा पर्यटन स्थलों के बारे में जानकारी मिलेगी. मंदार विकास परिषद […]

बौंसी : मंदार के बारे में अब इंटरनेट की दुनिया से भी जानकारी ली जा सकती है. इसके लिए ‘मंदार हिल डॉट इन’ के नाम से एक वेबसाइट तैयार किया गया है. वेबसाईट पर मंदार पर्वत, भगवान मधुसूदन और यहां के आसपास के तीर्थों तथा पर्यटन स्थलों के बारे में जानकारी मिलेगी. मंदार विकास परिषद के संयोजक उदय शंकर झा ‘चंचल’ ने बताया कि सदियों से मंदार क्षेत्र को दरकिनार रखा गया.

अथर्ववेद में कहा गया है –
गंधारिभ्यो मूजवद्भ्योऽङ्गेभ्यो मगधे भ्यः अर्थात, हे रोग! तुम गांधार, अंग और मगध जैसे देशों में चले जाओ
बुद्ध के काल से भी दुष्प्रचार हावी रहा। ‘बौधायन धर्मसूत्र’ में कहा गया है –
“अंग बंग कलिंगेषु सौराष्ट्र मगधेषु च। तीर्थ यात्रां बिना गच्छन् पुनः संस्कारमर्हति ॥“
अर्थात, अंग, बंग, कलिंग, सौराष्ट्र और मगध इलाके में जाने पर पुनः संस्कार कराना पड़ता है. वजह यही रही कि लोग इस क्षेत्र में नहीं आने लगे, लोगों के नहीं आने से यह क्षेत्र वीरान रहा और सघन जंगल उग गये. इसे ‘जंगलतरी’ क्षेत्र कहा गया जिसका नक्शा 18वीं सदी में एक अंग्रेज जेम्स रेनेल ने इसी नाम से तैयार किया था. श्री चंचल ने कहा कि पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन का यह क्षेत्र अब आबाद है. यहां के लोग जागरूक हो गये हैं. लोगों में इतिहास और पुरातत्व की समझ भी बहाल हुई है और अपनी ऐतिहासिक संपत्ति को बचाने के लिए आगे आये हैं.
यहां के समग्र इतिहास पर भी काम चल रहा है, जो शीघ्र ही प्रकाशित होगी. लंबी लड़ाई के बाद इस क्षेत्र को पर्यटन की योजनाएं मिली हैं जिस पर काम चल रहा है. इस लड़ाई में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई है. यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आ रहे हैं. इससे यहां के लोगों को रोजगार मिला है. उम्मीद है कि यह और आगे बढ़ेगा. उन्होंने बताया कि 19वीं सदी में यहां तीन दर्जन से अधिक ब्रिटिश इतिहासकार आये और इसके बारे में प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लिखा.
इनमें फ्रांसिस बुकनन हेमिल्टन, मेजर विलियम फ्रेंकलिन, रॉबर्ट मोंटगोमरी मार्टिन, सर एलेक्ज़ेंडर कनिंघम, जोसेफ डी बेगलर, डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू हंबले, जॉन फ़ेथफूल फ्लीट, कैप्टन विलियम शेरविल, डब्ल्यूडब्ल्यू हंटर, ब्लोचमैन जैसे लोग थे. इन अंग्रेजों के अलावे राजेन्द्रलाला मित्रा, रास बिहारी बोस, भंडारकर जैसे भारतीय इतिहासकारों ने भी इस क्षेत्र के इतिहास को अपने अनुभव और विश्लेषण के आधार पर जनमानस के बीच रखा.
यहां के लोगों की अज्ञानता ने मंदार पर्वत को बहुत क्षति पहुंचाई. विशाल वालिशा नगर के अवशेषों को उठाकर लोग दूर-दूर तक ले गये. किसी ने इसका प्रयोग कुआं बनाने में किया तो किसी ने कपड़े धोने के लिए पोखरों में पाट के रूप में प्रयोग किया. कहीं किसी ने यहां के अवशेषों से विशाल मंदिर तैयार कर लिये. हालिया कुछ दशकों पहले तक यहां की अमूल्य पत्थरों को ठेकेदारों ने भी पुलों और कल्वर्ट के निर्माण में प्रयोग किया. यह सब अज्ञानता की वजह से हुआ. अगर ऐसा न होता तो जिन विशाल नगरीय सभ्यता के पत्थरों को अंग्रेज और भारतीय इतिहासकारों ने मीलों दूर तक बिखरा हुआ देखा था वे 52 बाजार और 53 गलियों तथा 88 तालाबों वाले ‘वालिशा नगर’ के ही अवशेष थे.
यहां के 88 तालाब उन्नत कतरनी धान की खेती के लिए थे. यहां के चावल भगवान बुद्ध को बहुत पसंद थे. उपरोक्त सभी तथ्यों से शेष दुनिया को अवगत कराने के लिए ही इस वेबसाइट की जरूरत थी, जिसे कोलकाता के वेब डिजाइनर सागर कुमार ने तैयार किया है. इसकी सहायता से अब ग्लोब के किसी भी कोने से यहां आया जा सकता है. इस वेबसाइट के मार्फत लाइव ई-पूजा की सुविधा भी दी जायेगी, जिससे श्रद्धालुगण घर बैठे भी पूजा का आनंद ले सकते हैं. इस वेबसाइट में ठहरने-खाने की उचित संस्थाएं तथा आने-जाने की सुविधा भी दी जायेगी, जिससे पर्यटकों को दिक्कत न हो.

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