अक्षय नवमी पर महिलाओं ने सुनी कथा प्रतिनिधि, ओबरा. प्रखंड मुख्यालय समेत विभिन्न क्षेत्रों में अक्षय नवमी का त्योहार धूमधाम से मनाया गया. आंवले के वृक्ष की पूजा की गयी. खासकर, महिलाओं ने पूजा-अर्चना के बाद वृक्ष के समीप भगवान की कथा सुनी. वैसे सुबह से ही महिलाओं ने आंवला वृक्ष के नीचे पहुंचकर कुष्मांड की पूजा अर्चना की. तत्पश्चात पेड़ के नीचे बैठकर प्रसाद ग्रहण किया. वैसे त्योहार को लेकर श्रद्धालुओं के बीच उत्साह नजर आया. सुबह से घरों में पकवान बनाये जाने लगे हैं. इधर, रफीगंज प्रखंड के उच्च विद्यालय लुकगढ़ परिसर में आंवले के वृक्ष के नीचे भी काफी संख्या में लोगों ने पूजा-अर्चना की. पंडित अरुण तिवारी ने बताया कि प्राचीन धार्मिक मान्यता है कि आंवला नवमी सिद्ध मुहूर्त है. आज के दिन किया दान, जप और तप जाया नहीं जाता है. इनका कभी क्षय नहीं होता है. रफीगंज प्रखंड क्षेत्र की विभिन्न जगहों पर अक्षय नवमी को लेकर आंवला वृक्ष के पास पूजा-अर्चना कर महिलाओं ने कथा सुनी. बलिराम मिश्र, रंजीत मिश्र ने कहा कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व हैं. इस दिन भगवान विष्णु और शिव दोनों वास करते हैं. आंवला नवमी से जुड़ी माता लक्ष्मी की भी कथा है. एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आयी. रास्ते में उनकी इच्छा हुई कि वो भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एकसाथ करें. वो विचार करने लगीं कि किस तरह विष्णु और शिव की पूजा की जा सकती है. तभी उन्हें आभास हुआ कि तुलसी और बेल के गुण एक साथ आंवले में पाये जाते हैं. तुलसी श्री हरि विष्णु को अत्यंत प्रिय है और बेल भगवान भोलेनाथ को, इसीलिए उन्होंने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर आंवले के वृक्ष की पूजा की. उस दिन कार्तिक मास की नवमी तिथि थी. मां लक्ष्मी की पूजा से प्रसन्न होकर श्री विष्णु और शिव प्रकट हुए. लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन कराया. इसके बाद स्वयं भोजन किया. तभी से आंवला वृक्ष की पूजन की यह परंपरा चली आ रही है. सुमन देवी, मनोरमा देवी, प्रीति देवी, सुनैना देवी, नीलम देवी आदि महिलाओं ने कहा कि वे वर्षों से परंपरा को तत्परता से निभा रही है.
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