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14 सितंबर को जीवित्पुत्रिका व्रत, 15 को सुबह में पारण : आचार्य नारायण

इसके बाद 14 सितंबर यानी रविवार को अष्टमी तिथि चंद्रव्यापनी होने के कारण जीवित्पुत्रिका व्रत का मुख्य दिन रहेगा

औरंगाबाद सदर. हिन्दू धर्म में आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का विशेष महत्व है. इस दिन माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की कामना के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं, जिसे आमतौर पर जितिया व्रत भी कहा जाता है. आचार्य नारायण जी ने बताया कि इस वर्ष जितिया व्रत की शुरुआत 13 सितंबर को नहाय-खाय से होगी. इसके बाद 14 सितंबर यानी रविवार को अष्टमी तिथि चंद्रव्यापनी होने के कारण जीवित्पुत्रिका व्रत का मुख्य दिन रहेगा. शास्त्रों के अनुसार प्रदोष काल में इस व्रत का पूजन सर्वश्रेष्ठ माना गया है. सभी प्रमुख पंचांगों की गणना से भी यही निष्कर्ष निकलता है कि 14 सितंबर को ही जीवित्पुत्रिका का व्रत रखना श्रेयस्कर है. व्रत का पारण 15 सितंबर की सुबह 6:27 बजे के बाद किया जायेगा.

व्रत की पूजा विधि

सुबह स्नान कर सूर्यदेव की आराधना करें. घर के मंदिर में चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर थाली रखें और सूर्यनारायण की मूर्ति स्थापित करें. उन्हें दूध से स्नान कराकर दीपक, धूप अर्पित करें. इसके साथ ही मिट्टी या गोबर से सियार और चील की मूर्ति तथा कुशा से बने जीमूतवाहन की प्रतिमा की पूजा करें. उन्हें धूप, दीप, फूल और चावल चढ़ाएं.

व्रत का महत्व और लाभ

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत से संतान की आयु दीर्घ होती है और जीवन सुखमय बनता है. माताएं इस दिन निर्जला उपवास रखकर अपने पुत्र-पुत्रियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं. यह व्रत मातृ प्रेम, त्याग और संजीवनी शक्ति का प्रतीक माना जाता है.

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