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आस्था व विश्वास का प्रतीक है शक्तिपीठ गजनाधाम
मां के दर्शन मात्र से ही होती हैं सभी मनोकामनाएं पूरी शक्तिरूप में विराजमान हैं मां गजनेश्वरी नवीनगर : नवरात्रि को ले नवीनगर शहर से दक्षिण करबार नदी तट पर अवस्थित गजनाधाम मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए हर रोज सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. आस्था और विश्वास का प्रतीक शक्तिपीठ गजनाधाम प्रखंड […]
मां के दर्शन मात्र से ही होती हैं सभी मनोकामनाएं पूरी
शक्तिरूप में विराजमान हैं मां गजनेश्वरी
नवीनगर : नवरात्रि को ले नवीनगर शहर से दक्षिण करबार नदी तट पर अवस्थित गजनाधाम मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए हर रोज सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. आस्था और विश्वास का प्रतीक शक्तिपीठ गजनाधाम प्रखंड मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर बिहार-झारखंड की सीमा पर अवस्थित है. अति प्राचीन धार्मिक व पौराणिक मान्यताओं से ओतप्रोत गजनाधाम शक्तिपीठ मंदिर है.
जहां किसी प्रकार की कोई प्रतिमा नहीं है. मंदिर परिसर में एक चबूतरे पर शक्ति स्वरूपा मां की पूजा होती है. बताया जाता है कि देव-असुर संग्राम के समय असुरों की सेना से देवताओं की सेना घिर गयी थी, तब देवताओं की आराधना पर देवी शक्ति ने सेना के साथ असुरों का संहार किया था और फिर विश्राम के लिए पुलस्त्य ऋषि के आश्रम पर पहुंची थीं, जहां पानी की कमी को दूर करने के लिये गजाजन का रूप धारण कर अपनी सूंढ से जमीन को खोद जल प्रवाहित किया था. इसी तरह की एक और घटना से संबंधित पौराणिक कथा है कि जब ब्रह्मा द्वारा सृष्टि निर्माण कार्य कराया जा रहा था उस यज्ञ में गजासुर नामक राक्षस के नेतृत्व में असुरों ने बाधा डाली, तब ब्रह्मा ने सृष्टि रक्षार्थ आदि शक्ति को पुकारा और गौरी रूपी दुर्गा हाथी पर सवार हो प्रकट हुईं और गजासुर का संहार किया.
युद्ध के दौरान दुर्गारूपी गौरा तथा इनकी सवारी हाथी और गजासुर इनकी तीनों की गर्जना का उप नाम गजनाधाम कहलाया. मृदुल पुराण के अनुसार गजगौरी शरीर के मैल से उत्पन्न 10 भुज्जी गणेश को ब्रह्मा ने हाथी के साथ सभी अस्त्रों से सुसज्जित कर पूजा-अर्चना के साथ सृष्टि की रचना आरंभ की थी तथा इन्हीं दसभुजी गणेश द्वारा नरांतक व देवांतक नामक असुर का संहार किया. जिससे यह गजानन की धरती गजनाधाम कहलायी. साक्षात प्रकृति के रत्नगर्भा में अवस्थित अति प्राचीन शक्तिपीठ गजनाधाम का सौंदर्यीकरण में चंद्रगढ़ देवी मंदिर के पुजारी जगन्नाथ सिंह द्वारा कराया गया था. इस तरह कई मान्यताओं से ओतप्रोत इस धाम की आश्चर्यजनक विशेषताएं हैं, यहां जो पुड़ी का प्रसाद बना कर चढ़ाया जाता है. कहा जाता है कि यहां मात्र ढाई सौ ग्राम शुद्ध घी में ढाई सेर आटे की पुड़ियां बड़े आराम छन जातीं हैं वह भी मिट्टी की कच्ची कड़ाही में, जो माता को मुख्य प्रसाद के रूप में चढ़ायी जाती हैं.
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