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हेल्थ कार्ड का स्वास्थ्य केंद्रों में मोल नहीं
जिले में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) की स्थिति नौ दिन में चले ढाई कोस वाले मुहावरे जैसी हो गयी है. किसी भी सरकारी योजना की जिम्मेवारी संबंधित विभाग के पदाधिकारियों पर होती है, ताकि उसका क्रियान्वयन सही तरीके से हो सके. लेकिन, औरंगाबाद में तो आरबीएसके जैसे महत्वपूर्ण योजना की स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारी […]
जिले में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) की स्थिति नौ दिन में चले ढाई कोस वाले मुहावरे जैसी हो गयी है. किसी भी सरकारी योजना की जिम्मेवारी संबंधित विभाग के पदाधिकारियों पर होती है, ताकि उसका क्रियान्वयन सही तरीके से हो सके.
लेकिन, औरंगाबाद में तो आरबीएसके जैसे महत्वपूर्ण योजना की स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारी मिट्टी पलीद करने में जुटे हैं. यही नहीं इस योजना के नाम पर लूट मची हुई है. इधर, लोग अपने बच्चों के स्वास्थ्य के साथ हो रहे खिलवाड़ का तमाशा देख रहे हैं.
औरंगाबाद (सदर) : स्वस्थ बच्चे से ही स्वस्थ समाज की कल्पना की जा सकती है. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम इसी कल्पना को हकीकत बनाने के लिए चलायी गयी थी. केंद्र सरकार की आरबीएसके का उद्देश्य शून्य से 18 वर्ष तक के बच्चों की स्वास्थ्य जांच करनी है. इस योजना में जन्म के समय किसी प्रकार के विकार, बीमारी, कमी व विकलांगता सहित विकास में रुकावट की जांच भी शामिल है. लेकिन, स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारियों की लापरवाही के कारण सरकार की इस योजना पर पानी फिर गया है. जिले में इस महत्वपूर्ण योजना का हाल चौंकानेवाले हैं.
आरबीएसके के तहत बच्चों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने के लिए करोड़ाें खर्च किये जाते हैं. बड़े तामझाम के साथ मोबाइल हेल्थ (चलंत चिकित्सा) टीम के सदस्य गाड़ियों से घूम-घूम कर स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्रों का दौरा करते हैं. मगर स्वास्थ्य जांच के बाद भी ये लोग बच्चों को कोई लाभ नहीं दे पाते हैं. मोबाइल हेल्थ टीम का काम बच्चों की स्वास्थ्य जांच के बाद हेल्थ कार्ड व दवाएं उपलब्ध कराना होता है, लेकिन इस कार्य में स्वास्थ्य विभाग फेल्यूअर साबित हो रहा है.
फिर भी सरकारी रुपये भंजाने के लिए सिविल सर्जन (सीएस) फिजूल में अपने दल पर लाखों रुपये खर्च कर रहे हैं. सिविल सर्जन डाॅ आरपी सिंह से किसी भी स्वास्थ्य योजना को लेकर जब सवाल किये जाते है, तो वो सीधे अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों पर इसकी जिम्मेवारी थोप देते हैं और कहते हैं कि अभी इस स्थिति में नहीं कि मैं आपके सवालों का जवाब दे सकूं. इसके अलावे सदर अस्पताल व अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी सीएस बात ही करना मुनासिब नहीं समझते.
हेल्थ टीम को विभाग से नहीं मिल रहीं दवाएं
कार्यक्रम की सफलता के लिए हर प्रखंड में दो-दो चलंत चिकित्सा टीम गठित की गयी है. प्रत्येक टीम में दो आयुष चिकित्सक, एक एएएनम व एक फर्मास्सिट की नियुक्ति की गयी है.
जिले के 11 प्रखंडों में सभी टीमों के सदस्य कार्य कर रहे हैं. मोबाइल हेल्थ टीम के एक चिकित्सा पदाधिकारी बताते हैं कि इस योजना के शुरुआती दौर में लगभग 20 दिनों तक टीम को प्राथमिक उपचार की दवाएं उपलब्ध करायी गयी थीं, लेकिन इसके बाद से अब तक टीम को दवाएं नहीं दी जा रहीं. कभी-कभी तो स्थिति ऐसी होती है कि क्षेत्र भ्रमण के दौरान दवा नहीं नहीं मिलने पर लोगों द्वारा मोबाइल हेल्थ टीम के साथ गाली-गलौज भी किया जाता है.
स्वास्थ्य जांच के बाद बच्चों को एक हेल्थ कार्ड दिया जाता है, जिसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में महत्व नहीं दिया जाता. इस कारण कई बीमार बच्चे बिना इलाज के ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से वापस लौट जाते हैं.
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