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कटैया हाइस्कूल के स्टूडेंट्स को नहीं मिले पोशाक व छात्रवृत्ति के रुपये

कटैया हाइस्कूल के स्टूडेंट्स को नहीं मिले पोशाक व छात्रवृत्ति के रुपयेऔरंगाबाद कार्यालयदेव प्रखंड के उत्क्रमित उच्च विद्यालय, कटैया के छात्र-छात्राएं छात्रवृत्ति व पोशाक योजना से वंचित हैं. उच्च विद्यालय के छात्र-छात्रों द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, प्रधानाचार्य की लापरवाही के कारण यहां पढ़ने वाले लगभग 108 छात्र-छात्राओं को न तो पोशाक व न […]

कटैया हाइस्कूल के स्टूडेंट्स को नहीं मिले पोशाक व छात्रवृत्ति के रुपयेऔरंगाबाद कार्यालयदेव प्रखंड के उत्क्रमित उच्च विद्यालय, कटैया के छात्र-छात्राएं छात्रवृत्ति व पोशाक योजना से वंचित हैं. उच्च विद्यालय के छात्र-छात्रों द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, प्रधानाचार्य की लापरवाही के कारण यहां पढ़ने वाले लगभग 108 छात्र-छात्राओं को न तो पोशाक व न ही छात्रवृत्ति योजना के रुपये मिले हैं. छात्रों का कहना है कि प्राचार्य से इस संबंध में कई बार मिलकर मांग की गयी, लेकिन वे इसका अनदेखी करते रहे. इस संबंध में विद्यालय के प्रधानाचार्य आशुतोष कुमार सिंह से पूछे पर वे कुछ भी स्पष्ट नहीं बता सके. प्राचार्य ने कहा कि चुनाव के कारण पोशाक व छात्रवृत्ति योजना का चेक लटका रहा. लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि छात्रवृत्ति व पोशाक योजना के रुपये अप्रैल से बांटे जा रहे हैं. विधानसभा चुनाव में भी इस पर कोई रोक नहीं लगायी गयी थी, तो फिर चुनाव की बात कह कर प्राचार्य क्यों अपनी जिम्मेवारी से बचना चाहते हैं. इस संबंध में कटैया गांव के समाजसेवी अरुण सिंह, श्रीकांत मिश्रा का कहना हैं कि प्राचार्य अपनी जिम्मेवारी को सही मायने में निभाने में सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं, जिसके कारण यहां केे बच्चों को छात्रवृत्ति व पोशाक योजना से वंचित है. 108 बच्चों को पढ़ने के लिए मात्र दो शिक्षक : देव प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्र का प्रमुख शिक्षण संस्थानों में जाना पहचाना जाता है, उच्च विद्यालय कटैया. यहां शिक्षा का जो व्यवस्था होनी चाहिए थी वह नहीं है. 108 बच्चे अभी इस विद्यालय में है, जिन्हें पढ़ाने के लिए मात्र दो शिक्षक हैं. यह सोचने की बात है कि दो शिक्षक हाइस्कूल में 108 बच्चों को सभी विषयों की शिक्षा कैसे दे सकते हैं. बच्चे गांवों में जाकर पीते हैं पानी : उच्च विद्यालय कटैया में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के लिए सबसे बड़ी समस्या पेयजल भी है, न तो यहां पर चापाकल है और न ही कोई और व्यवस्था है. प्यास लगने पर गांवों में जाकर बच्चे पानी पीते हैं और फिर विद्यालय आते हैं.

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