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नाकाम साबित हो रहा कटावरोधी कार्य

अरवल : सोन नदी के कटाव से तटबंध पर बसे दर्जनों गांवों के लोग सहमे हुए हैं. अगर समय रहते कटावरोधी कार्य नहीं किया गया तो कई गांवों का अस्तित्व मिट जायेगा. वहीं, सदर प्रखंड के मलहीपट्टी गांव के करीब दर्जनों लोगों का घर सोन नदी के गर्भ में समा चुका है. कई लोगों ने […]

अरवल : सोन नदी के कटाव से तटबंध पर बसे दर्जनों गांवों के लोग सहमे हुए हैं. अगर समय रहते कटावरोधी कार्य नहीं किया गया तो कई गांवों का अस्तित्व मिट जायेगा. वहीं, सदर प्रखंड के मलहीपट्टी गांव के करीब दर्जनों लोगों का घर सोन नदी के गर्भ में समा चुका है. कई लोगों ने कटाव के बाद दुबारा मकान बनाया, लेकिन वह भी नहीं रह सका. पिछले 50 सालों में सोन नदी गांव की 250 फुट चौड़ी जमीन को निगल चुकी है. कटाव के डर से एक दर्जन से अधिक घरों के लोग गांव से हटकर बगीचे में मकान लिये हैं. बालू की बोरी से कटाव रोकने का उपाय नाकाम साबित हो रहा है.

प्रत्येक वर्ष जिला प्रशासन द्वारा कटाव रोकने के लिए किनारों पर बालू की बोरी डाली जाती है, लेकिन नदी की धारा उसे बहा ले जाती है. गांव के मंगर चौधरी, सुरेंद्र चौधरी समेत करीब दर्जनों लोगों का मकान नदी के गर्भ में समाने की स्थिति में आ चुका है. मकान का पिछला हिस्सा सोन नदी अपने में समाहित कर लिया है. कटाव पीड़ित लोग खेती-बाड़ी और मजदूरी पर ही आश्रित हैं. उनकी जमा पूंजी कटाव के बाद नये मकान बनाने में खर्च हो जा रही है. एक परिवार तो कटाव से तंग आकर गांव ही छोड़ चुका है. बारिश के मौसम में सोन नदी में पानी आने के बाद लोग सारा काम छोड़ बच्चों पर नजर रखते हैं कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाये. वहीं, मल्लहीपट्टी गांव की महिलाएं सोन नदी के कटाव से घर ध्वस्त होने की शंका से भयभीत हैं. गांव के लड्डू चंद, लखन चौधरी, मीना चौधरी सहित दो दर्जन लोगों का मकान नदी के किनारे था, जो अब विलीन हो चुका है. सोन नदी के किनारे जाने वाला रास्ता भी कटाव के कारण विलुप्त हो चुका है. ग्रामीणों का कहना है कि प्रत्येक वर्ष सोन नदी से पांच फुट जमीन का कटाव होता है. कई ऐसे लोग हैं जिनके पास मकान बनाने के लिए और कोई जमीन का टुकड़ा नहीं बचा हुआ है. ऐसे लोग तमाम खतरों के बावजूद नदी के तट पर अब भी बसे हुए हैं. ग्रामीण नारायण मोची ने बताया कि करीब 17 साल पहले इंदिरा आवास योजना से सभी लोगों का तीसरी बार घर बना था. अगर इस समय भी कटाव में मकान चला गया तो उनके पास पैर रखने के लिए भी जमीन नहीं बचेगी. ग्रामीण बरसात से पहले भगवान से मन्नत मांगते हैं कि नदी अपनी धारा बदल दे. सरकार तथा प्रशासन द्वारा कटाव रोकने के लिए मुकम्मल व्यवस्था नहीं की जा रही है.

ग्रामीणों ने व्यक्त की पीड़ा
ग्रामीण संतोष कुमार का कहना है कि बरसात आते ही हमलोग डरे-सहमे रहते हैं. साबिर अंसारी का कहना है कि सोन नदी के जल स्तर में जैसे-जैसे वृद्धि होती है उसी प्रकार हमलोगों की बेचैनी भी बढ़ती है. लक्ष्मी देवी ने बताया कि सोन नदी के कटाव के कारण हमलोग काफी परेशान हैं. हमलोगों को अब यहां रहने की हिम्मत नहीं करता है. पूनम देवी के अनुसार कई बार हमलोगों ने मिलकर जिला प्रशासन को आवेदन दिया कि कहीं दूसरे गांव में विस्थापित कर दिया जाये, ताकि चैन से रह सकें. उनका कहना है कि जिला प्रशासन अगर बैदराबाद से लेकर जनकपुरधाम तक सुरक्षा दीवार बनवा दे तो कई गांवों के लोग सुरक्षित हो जायेंगे. नदी में थोड़ा-सा भी पानी आता है तो बालू की बोरी को बहा ले जाता है और कटाव जारी रहता है. हमलोगों का कोई सुननेवाला नहीं है, भगवान भरोसे अपना जीवन बिता रहे हैं.

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