Virat Kohli and Cristiano Ronaldo Fitness: हाल ही में एक पॉडकास्ट में भारत के स्टार फुटबॉलरों में से एक सुनील छेत्री ने विराट कोहली की फिटनेस के बारे खुलासा किया. उन्होंने कहा कि विराट लंदन से उन्हें फिटनेस टेस्ट के स्कोर मैसेज किए थे. बीसीसीआई ने यो-यो टेस्ट और ब्रोंको टेस्ट जैसे नए तरीके से खिलाड़ियों की फिटनेस को मापता है. विराट कोहली की प्रोफेशनल सफलता की कुंजी उनका फिटनेस ही है. सुनील छेत्री ने उसी पॉडकास्ट में कोहली और रोनाल्डो के बीच तुलना करते हुए कहा था कि कोई भी खिलाड़ी उन्हीं के जैसे बनना चाहता है. लेकिन सवाल उठता है कि अगर क्रिस्टियानो रोनाल्डो 40 साल की उम्र में भी कॉन्ट्रैक्ट एक्सटेंशन के साथ अभी खेल रहे हैं, तो फिर क्रिकेट के फिटनेस फ्रीक ने 35 की उम्र में टी20 और 36 की उम्र में टेस्ट क्रिकेट से क्यों विदाई ले ली?
कोहली और रोनाल्डो क्यों हैं खास
फिटनेस के मामले में विराट कोहली का स्तर बेमिसाल माना जाता है. 2023 में उनका यो-यो टेस्ट स्कोर 17.2 रहा, जो 16.5 की तय सीमा से कहीं बेहतर था. वहीं मैदान पर उनका जोश तो और भी हाई रहता है. रन दौड़ना हो या बॉल को चेज करना हो. वहीं बल्लेबाज के रूप में भी उन्होंने कई बार कठिन परिस्थितियों में शीर्ष गेंदबाजों के खिलाफ मैच बदलने वाली पारियां खेली हैं, फिर चाहे वह टी20 वर्ल्ड कप 2024 की जीत दिलाने वाली पारी हो या चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान के खिलाफ दबाव में जड़ा गया शतक.
दूसरी तरफ क्रिस्टियानो रोनाल्डो हैं, जिन्होंने सऊदी प्रो लीग में हाल ही में 35 गोल दागकर यह दिखाया है कि जब फिटनेस का स्तर सर्वोच्च हो तो 40 की उम्र के बाद भी खिलाड़ी शीर्ष स्तर पर कायम रह सकता है. कोहली और रोनाल्डो दोनों ही अपनी फिटनेस को लेकर जिस हद तक जुनूनी हैं, वही उनके प्रोफेशनल करियर को लंबा और प्रभावशाली बनाता है.
मिनट्स मैनेजमेंट बनाम दिन भर की थकान
स्पोर्ट्स में वर्कलोड मैनेजमेंट की अहमियत बहुत बड़ी है. हाल ही में जसप्रीत बुमराह के मामले में यह शब्द खास तौर पर सुर्खियों में रहा था. फुटबॉल में टीमों को पाँच खिलाड़ियों को बदलने की अनुमति होती है, जिससे स्टार खिलाड़ियों को रोटेट करने या आराम देने का विकल्प मौजूद रहता है. इसी वजह से रोनाल्डो जैसे दिग्गजों का बोझ कम करना अपेक्षाकृत आसान होता है. लेकिन क्रिकेट में ऐसा संभव नहीं है. टेस्ट मैचों में बल्लेबाजी करते समय खिलाड़ी को लंबे वक्त तक मैदान पर टिकना पड़ता है और फील्डिंग के दौरान 90 से ज्यादा ओवर लगातार झेलने पड़ते हैं, वो भी बिना किसी स्थायी सब्स्टीट्यूशन के. यही कारण है कि क्रिकेट हर सत्र में मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की थकान होती है और खिलाड़ियों को किसी खास फॉर्मेट के भीतर सीमित समय देकर मैनेज भी नहीं जा सकता.
विराट का रणनीतिक बदलाव
विराट कोहली का टी20 और टेस्ट से संन्यास लेना किसी कमजोरी का नहीं, बल्कि ऐसा लगता है कि यह एक सोचा-समझा कदम था. टी20 से उन्होंने विदाई भारत की 2024 वर्ल्ड कप जीत के बाद ली, जो एक तरह से सफलता के बीच भविष्य की तैयारी का संकेत था. वहीं टेस्ट से विदाई ऐसे समय आई, जब उनका औसत हाल के दो सीजन में 36 के आसपास रहा और न्यूजीलैंड (घरेलू सीरीज) ऑस्ट्रेलिया जैसी जगहों पर उनका संघर्ष साफ दिखा.
ऐसे में छोटे-छोटे रिटर्न्स के लिए खुद को थकाने के बजाय उन्होंने अपनी ऊर्जा उस जगह लगाने का फैसला किया, जहां वे सबसे ज्यादा फर्क ला सकते हैं. वह जगह है वनडे क्रिकेट, जो हमेशा से उनका सबसे मजबूत फॉर्मेट रहा है. स्ट्राइक रोटेशन, पारी को नियंत्रित करना और टारगेट का पीछा करना इन सबमें वे बेजोड़ हैं. उनके 302 मैच, 51 शतक, 74 अर्धशतक और 14,181 रन अपने आप उनकी ताकत साबित करते हैं. यही वजह है कि 2027 वर्ल्ड कप के लिए वनडे में उनकी मौजूदगी भारत की सबसे बड़ी पूंजी है.
सोचे समझे फैसले पर आगे बढ़े विराट
विराट कोहली और क्रिस्टियानो रोनाल्डो यह दिखाते हैं कि महान खिलाड़ी उम्र बढ़ने के बाद भी करियर को लंबा और असरदार बनाए रखने के लिए रणनीतिक फैसले लेते हैं. रोनाल्डो मैचों के मिनट्स को नियंत्रित कर अपनी ऊर्जा बचाते हैं, वहीं कोहली ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सिर्फ उन्हीं फॉर्मेट्स पर ध्यान देने का विकल्प चुना है जहाँ उनका प्रभाव सबसे बड़ा हो सकता है. इसका मतलब यह नहीं कि उनकी क्षमता घटी है, बल्कि यह उनकी सोच-समझकर बनाई गई रणनीति है. कोहली अब भी फिटनेस और जीत के जुनून से भरे हैं, बस उन्होंने अपने करियर को इस तरह ढाला है कि वे अधिक समय तक उच्च स्तर पर टीम के लिए योगदान दे सकें. यह किसी वापसी नहीं, बल्कि आगे बढ़ने की बुद्धिमानी है.
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