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विश्वकप जीत के 37 साल: खिलाड़ियों का जज्बा व कपिल के नेतृत्व ने बनाया था चैंपियन

25 जून 1983 यानी आज से ठीक 37 साल पहले आज ही के दिन भारत पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बना था.

25 जून 1983 यानी आज से ठीक 37 साल पहले आज ही के दिन भारत पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बना था. वह भी दो बार के वर्ल्ड चैंपियन और दिग्गज वेस्टइंडीज की टीम को मात देकर. वनडे क्रिकेट में भारत का वह टर्निंग प्वाइंट था. टीम में मोहिंदर अमरनाथ, मदनलाल और गावस्कर जैसे अनुभवी खिलाड़ी थे, तो कपिल और श्रीकांत जैसे युवा खिलाड़ी भी. टीम का नेतृत्व कपिल के हाथ में था. एक उत्साही युवा ऑलराउंडर के हाथ में. जब टीम इंग्लैंड के दौरे पर जा रही थी, तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि यह टीम वर्ल्ड कप लेकर लौटेगी.

अगर एक-दो मैच जीत भी जाए, तो बहुत होगा. ऐसा इसलिए लोग सोचते थे, क्यों कि पहले और दूसरे वर्ल्ड कप में भारत ने जितने भी मैच खेले, एक को छोड़कर सभी हारे थे. पहले वर्ल्ड कप में पूर्वी अफ्रीका की टीम को भारत ने हराया था. उपलब्धि के नाम पर सिर्फ एक जीत. भारतीय टीम ग्रुप बी में थी, जिसकी चार टीमों में वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम थी. इसलिए संभावना भी यही थी कि यही दोनों टीम इस ग्रुप से सेमीफाइनल के लिए आगे बढ़ेगी. भारतीय टीम में तब गावस्कर, श्रीकांत, मोहिंदर अमरनाथ, संदीप पाटील, यशपाल शर्मा, कपिलदेव, मदनलाल, कीर्ति आजाद, बलविंदर सिंह संधू, सैयद किरमानी, रोजर बिन्नी, दिलीप वेंगसरकर, रवि शास्त्री, सुनील वाल्सन थे.

इनमें कई खिलाड़ियों को एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला. भारत का पहला ही मैच 9 जून, 1983 को वेस्टइंडीज से था, जो दो बार की वर्ल्ड चैंपियन टीम थी. पहले ही मैच में भारत ने वर्ल्ड चैंपियन को हरा दिया. भारतीय टीम ने 262 रन बनायी थी और वेस्टइंडीज को 228 रन पर समेट दिया था. इस जीत से भारतीय टीम का उत्साह दोगुना हो गया. दूसरे मैच में भारत ने अपने से कुछ कमजोर टीम यानी जिंबाब्वे को हरा दिया.

लेकिन बाद के दो मैचों में भारत को हार मिली. तीसरा मैच ऑस्ट्रेलिया से था. भारत 162 रन से हारा. चौथे मैच में वेस्ट इंडीज ने भारत को हराया. चार में पहले दोनों मैचों में जीत और बाद में दोनों में हार मिली थी. यही बात होने लगी कि अब आगे जाना मुश्किल है. लेकिन कप्तान कपिल थे. हार नहीं माननेवाले और जीवट खिलाड़ी. 18 जून को जो कुछ हुआ, उसने भारतीय क्रिकेट को बदल दिया. मैच जिंबाब्वे से था.

भारतीय टीम के पांच दिग्गज खिलाड़ी 17 रन पर पवेलियन लौट गए थे. इनमें गावस्कर 0, श्रीकांत 0, मोहिंदर अमरनाथ 5, संदीप पाटील 1 और यशपाल शर्मा 9 रन का विकेट था. भारतीय समर्थकों ने तब रेडिया सेट पर कमेंटरी सुनना छोड़ दिया. यही सोचा कि 50-60 रन बन जाए, तो बहुत बड़ी बात है. लेकिन इसके बाद मैदान में दिखा कप्तान कपिलदेव का जलवा.

अकेले एक ओर से तूफानी बल्लेबाजी करते रहे, दूसरी ओर से निचले क्रम के खिलाड़ियों ने साथ दिया. जब 60 ओवर का मैच खत्म हुआ, तो भारत का स्कोर था आठ विकेट पर 266 रन. इसमें कपिल का अपना योगदान था 175 रन (नाबाद). ऐतिहासिक पारी खेल कर कपिल ने भारतीय टीम को बाहर होने से बचा दिया था.

उसके बाद जिंबाब्वे को 235 पर समेट कर भारत ने मैच जीत लिया था. इस जीत से भारत ने एक संदेश दे दिया था- किसी भी हालात में हार नहीं मानें, इस टीम के लिए कुछ भी असंभव नहीं है. इस मैच के बाद भारत ने जीत की जो यात्रा आरंभ की, वह तब तक चलती रही,

जब तक कप नहीं जीत लिया. भारत का मनोबल और तब बढ़ गया, जब उसने छठे मैच में ऑस्ट्रेलिया को 118 रन के भारी अंतर से हरा दिया. ग्रुप मैच में वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को भारत जैसी टीम हरा दे, तो इससे भारतीय टीम की मजबूती का पता चलता है. भारत सेमीफाइनल में पहुंच गया. पहली बार. दूसरे ग्रुप से इंग्लैंड और पाकिस्तान की टीम सेमीफाइनल में आयी थी. भारत का मुकाबला इंग्लैंड से था. इंग्लैंड के खिलाड़ियों के लिए होम ग्राउंड. सब कुछ उनके पक्ष में था.

तब इंग्लैंड की टीम सशक्त होती थी. लेकिन भारत ने सेमीफाइनल में इंग्लैंड को 213 पर रोककर रास्ता आसान कर दिया था. भारतीय गेंदबाजों ने सेमीफाइनल में शानदार गेंदबाजी की. भारत ने इंग्लैंड को छह विकेट से हरा कर फाइनल में प्रवेश किया था. सामने थी वेस्टइंडीज की टीम.

अनुभवी और दिग्गज खिलाड़ियों से भरी हुई. ग्रीनिज, हेंस, विवियन रिचर्ड्स और कप्तान लॉयड जैसे बल्लेबाजों की टीम. भारत के साथ खिलाड़ियों का उत्साह. टीम में ऑलराउंडर भरे पड़े थे. भारत के पास खोने के लिए कुछ नहीं था, पाने के लिए सब कुछ.

इतना शानदार खेलने के बाद भी दुनिया यह मानने को तैयार नहीं थी कि भारत की जीत की संभावना भी है. पहले भारत ने बल्लेबाजी की और पूरी टीम 183 रन पर आउट हो गयी. लॉर्ड्स पर 60 ओवर में वेस्टइंडीज जैसी टीम के लिए आसान सा लक्ष्य. भारतीय समर्थक निराश होकर लौटने लगे थे. श्रीकांत ने सबसे ज्यादा 38 रन बनाए थे. इतना छोटा स्कोर बनाने के बावजूद कप्तान कपिल हार नहीं माने थे. खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाया. कहा कि हर हाल में इस स्कोर से कम पर इंडीज को आउट करना है. इस वर्ल्ड कप में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 158 पर समेटा था और मैच जीता था.

यहां तो फिर भी 183 का स्कोर है. टीम मैदान में उतरी. बलविंदर सिंह संधू की बाहर जाती गेंद समझ कर ग्रीनिज ने गेंद को छोड़ने के लिए बल्ला उठा लिया था और गेंद गिल्ली लेकर उड़ गयी. पूरे वर्ल्ड कप की सबसे अच्छी गेंद संधू ने फेंकी. इसके बाद रिचर्ड्स आये और ऐसी बैटिंग करने लगे जैसे बच्चों के सामने वो बल्लेबाजी कर रहे हैं. हर गेंद को धुन रहे थे और यहीं पर मदनलाल की गेंद पर कपिल ने पीछे भागते हुए शानदार कैच पकड़ कर मैच में जो पकड़ बनायी, उसके बाद पीछे नहीं देखा.

रिचर्ड्स के आउट होते ही वेस्टइंडीज की टीम बिखर गयी. पूरी टीम 140 रन पर सिमट गयी. क्या कमाल की गेंदबाजी की थी मदनलाल और मोहिंदर अमरनाथ ने. अमरनाथ तब सबसे ज्यादा उम्र के थे. रोजर बिन्नी और मदनलाल ने लगभग हर मैच में अच्छा विकेट लिया था. किसी भी भारतीय बल्लेबाज ने (कपिल को छोड़ कर) बड़ा स्कोर नहीं बनाया था लेकिन सभी का योगदान था. अच्छी गेंदबाजी, सफल नेतृत्व, खिलाड़ियों का जज्बा, बेहतरीन क्षेत्ररक्षण के बल पर भारतीय टीम वर्ल्ड चैंपियन बन चुकी थी. असंभव को संभव कर दिखाया था.

Posted By : Sameer Oraon

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