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…जब नाराज बेदी ने खिलाड़ियों को वापस बुला लिया था

II अनुज कुमार सिन्हा II आज भले ही विराट कोहली को आक्रामक कप्तान माना जाता है लेकिन भारतीय क्रिकेट में एक से बढ़ कर एक आक्रामक कप्तान हुए हैं, जिन्हाेंने मैदान में बड़ा फैसला लिया है. आज ऐसे फैसले शायद काेई खिलाड़ी-कप्तान नहीं ले सके. ऐसे ही एक क्रिकेट कप्तान रहे हैं बिशन सिंह बेदी. […]

II अनुज कुमार सिन्हा II
आज भले ही विराट कोहली को आक्रामक कप्तान माना जाता है लेकिन भारतीय क्रिकेट में एक से बढ़ कर एक आक्रामक कप्तान हुए हैं, जिन्हाेंने मैदान में बड़ा फैसला लिया है. आज ऐसे फैसले शायद काेई खिलाड़ी-कप्तान नहीं ले सके.
ऐसे ही एक क्रिकेट कप्तान रहे हैं बिशन सिंह बेदी. महान खिलाड़ी. साफ-साफ बात करने के लिए आैर तुरंत निर्णय लेने के लिए उन्हें जाना जाता है.
अपने ऐसे ही निर्णय के कारण वे विवादाें में भी रहे हैं. कुछ लाेगाें ने उनके बयानाें-निर्णयाें की भले ही आलाेचना की हाे, लेकिन एक बड़ा वर्ग उनके इस निर्णय का कायल रहा है. कम से कम दाे मैचाें में बेदी ने बताैर कप्तान ऐसा फैसला लिया, जाे आसान नहीं था. इनमें से एक टेस्ट मैच था आैर दूसरा वनडे अंतरराष्ट्रीय मैच.
बात 1976 के किंग्सटन टेस्ट की है. भारतीय टीम वेस्टइंडीज के दाैरे पर गयी थी. उन दिनाें वेस्ट इंडीज की टीम बहुत ही मजबूत हाेती थी. चार टेस्ट मैचाें की शृंखला थी. पाेर्ट अॉफ स्पेन में तीसरा टेस्ट मैच भारत ने चाैथी पारी में 406 रन बना कर जीता था.
चाैथी पारी में 400 से ज्यादा रन बना कर मैच जीतना, वह भी वेस्ट इंडीज के तेज गेंदबाजाें के सामने उनकी जमीन पर, असंभव सा था. लेकिन भारत ने यह करिश्मा कर दिखाया था. क्लाइव लॉयड कप्तान थे. अपमानित महसूस कर रहे थे. तय कर लिया था कि भारतीय खिलाड़ियाें काे सबक सिखायेंगे. चाैथा टेस्ट आरंभ हुआ. मैच पर उतरने के पहले भारतीय खिलाड़ियाें के हाैसले बुलंद थे.
टॉस जीता था लॉयड ने आैर पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया था. याेजना पहले से थी. वेस्ट इंडीज ने चार-चार तेज गेंदबाजाें माइकल हाेल्डिंग, डेनियल, जूलियन आैर हाेल्डर काे टीम में रखा था. चाराें किसी भी खिलाड़ी का सिर फाेड़ने की ताकत रखते थे. गावस्कर आैर अंशुमन गायकवाड़ ने पारी की शुरुआत की थी. दाेनाें ने 136 रन की साझेदारी की थी.
गावस्कर के आउट हाेने के बाद भी टीम का स्काेर ठीक-ठाक था. जब पहले दिन भारत का स्काेर एक विकेट पर 175 रन हाे गया, लॉयड ने बदला लेने की याेजना बनायी. दूसरे दिन खेल शुरू हाेते ही भारतीय खिलाड़ियाें पर बाउंसराें की भरमार हाे गयी. माइकल हाेल्डिंग पूरे फार्म में शॉर्टपिच गेंद फेंक रहे थे. वेस्टइंडीज के अन्य खिलाड़ी भी उसी रास्ते पर थे. पहला निशाना बने गायकवाड़. बांये कान पर तेज गेंद लगी.
ऐसी चाेट कि गायकवाड़ काे अस्पताल जाना पड़ा आैर दाे दिन वहीं रहना पड़ा. गुंडप्पा विश्वनाथ की अंगुली गेंद से मार कर ताेड़ दी गयी. उन्हें भी अस्पताल जाना पड़ा. ब्रजेश पटेल काे चेहरे पर गेंद से ऐसी चाेट लगी कि कई टांके लगाने पड़े. तीन-तीन खिलाड़ी घायल हाे चुके थे. जब भारत का स्काेर छह विकेट पर 306 रन था, बेदी ने तय किया कि पारी घाेषित कर दी जाये.
यह पहली पारी थी. काेई बहुत बड़ा स्काेर नहीं था. गायकवाड़ आैर पटेल रिटायर्ड हट हाे चुके थे. बेदी ने तय किया कि अब पहली पारी में न ताे वे उतरेंगे आैर न ही चंद्रशेखर. घायल हाेने अच्छा है मैदान में न उतरें. ये दाेनाें प्रमुख गेंदबाज थे. अगर ये उतरते ताे शायद इन दाेनाें काे भी वेस्टइंडीज के गेंदबाज अस्पताल भेजवा देते.
अब बारी थी वेस्टइंडीज के बल्लेबाजाें की. भारत के पास तेज गेंदबाजी की ताकत नहीं थी. स्पिनर्स सिर्फ विकेट ही ले सकते थे. चंद्रशेखर, बेदी आैर वेंकट राघवन ने इंडीज काे 391 रन पर राेक दिया.
मामूली बढ़त. अब भारत काे दूसरी पारी खेलनी थी. पहली पारी में तीन-तीन खिलाड़ी गंभीर रूप से घायल हाे चुके थे. बेदी-चंद्रशेखर काे कैच पकड़ने में चाेट लगी थी. भारतीय खिलाड़ियाें काे पता था कि दूसरी पारी में भी वेस्टइंडीज के खिलाड़ी वही करेंगे जाे उन्हाेंने पहली पारी में किया था. सारे नियमाें काे ताेड़ दिया था.
दूसरी पारी में भारत ने पांच विकेट सिर्फ 97 रन पर खाे दिये थे. माहाैल खेलने लायक नहीं था. पांच विकेट अाउट, तीन खिलाड़ियाें काे ऐसी गंभीर चाेट कि वे उतर ही नहीं सकते. अंतत: बेदी ने फैसला कर लिया कि दूसरी पारी काे 97 रन पर ही घाेषित कर दिया जाये. हालांकि तकनीकी ताैर पर ऐसी स्थिति में अाॅलआउट ही माना जाता है.
जब बेदी ने यह निर्णय लिया, उस समय टीम सिर्फ 12 रन आगे थी. वेस्टइंडीज के खिलाड़ी उतरे आैर दाे आेवर में ही मैच जीत लिया. वेस्ट इंडीज भले ही जीत गया हाे, लेकिन दुनिया में उसकी बदनामी हुई. क्रिकेट में ऐसा शायद ही काेई उदाहरण हाे जब किसी कप्तान ने अपने खिलाड़ियाें काे बचाने के लिए दाेनाें पारियाें काे पहले ही घाेषित कर दिया हो.
बेदी ने इशारा किया चले आआे, अब आगे नहीं खेलेंगे
बेदी ने दूसरा बड़ा निर्णय 1978 में पाकिस्तान में लिया था. लंबे समय के बाद भारतीय टीम पाकिस्तान खेलने गयी थी. तीसरा वनडे चल रहा था. पहले के दाेनाें वनडे में एक भारत ने आैर दूसरा पाकिस्तान ने जीता था. तीसरा वनडे शाहिवाल में चल रहा था. 40 आेवर का मैच था. पाकिस्तान की टीम सात विकेट पर 207 रन रन ही बना सकी थी.
बहुत छाेटा स्काेर नहीं था, लेकिन भारतीय बल्लेबाजाें ने अच्छा खेल दिखाया था आैर जीत के करीब पहुंच गये थे. उस मैच में माेहिंदर अमरनाथ (62) आैर गायकवाड़ (नाबाद 78) शानदार खेल दिखाया था. विवाद पैदा हुआ 38वें आेवर में. 37 आेवर में भारत दाे विकेट पर 183 रन बना चुका था. विकेट पर थे गायकवाड़ (78 पर) आैर विश्वनाथ. जीत के लिए 18 गेंदाें पर चाहिए था 23 रन. बहुत ही आसान काम. मैच में जीत तय थी.
गेंद थी सरफराज के हाथ में. सामने थे विश्वनाथ. पहली गेंद बाउंसर, दूसरी गेंद बाउंसर, तीसरी गेंद बाउंसर. विश्वनाथ के सिर के ऊपर से गेंद निकल जा रही थी आैर अंपायर उसे वाइड नहीं दे रहे थे. तीन गेंदाें के बाद विश्वनाथ पैवेलियन की आेर देखने लगे. बेदी नाराज थे, पर कुछ इशारा नहीं कर रहे थे. जब सरफराज ने लगातार चाैथी गेंद बाउंसर फेंकी आैर इसे भी अंपायर ने वाइड नहीं दिया ताे विश्वनाथ आैर बेदी का धैर्य जवाब दे गया.
पैवेलियन से बेदी ने इशारा किया-चले आआे, अब आगे नहीं खेलेंगे. गायकवाड़ आैर विश्वनाथ मैदान से बाहर चले गये आैर अंपायराें ने इस मैच में पाकिस्तान काे विजेता घाेषित कर दिया गया. बेदी एक-दाे आैर गेंदाें का इंतजार कर सकते थे लेकिन जिस तरीके से अंपायर पक्षपात कर रहे थे, बेदी जैसा कप्तान चुप नहीं रह सकता था.
बेदी जानते थे कि खिलाड़ियाें काे बुलाने से वे मैच आैर सीरीज दाेनाें हार जायेंगे, उसके बावजूद बेदी ने वह कड़ा फैसला लिया. बेदी के इस निर्णय काे देश में सराहा गया. ऐसे हाेते थे टीम इंडिया के कप्तान, जिन्हाेंने खेल की गरिमा काे बनाये रखने के लिए कड़ा निर्णय लेकर कड़ा संदेश दिया.

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