Santan Saptami Vrat Katha: यह व्रत संतान के उज्ज्वल भविष्य, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना से स्त्री-पुरुष दोनों समान रूप से करते हैं. वर्ष 2025 में संतान सप्तमी व्रत 30 अगस्त, शनिवार को रखा जाएगा. प्राचीन काल में यह व्रत मुख्य रूप से वंश वृद्धि और संतान प्राप्ति के लिए किया जाता था. संतान सप्तमी व्रत का महत्व पौराणिक काल से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान सुख प्राप्त होता है और पहले से संतान होने पर उनकी रक्षा और दीर्घायु सुनिश्चित होती है. इस व्रत का उल्लेख महाभारत काल की कथा में भी मिलता है. एक समय महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से संतान सुख का उपाय पूछा. तब श्रीकृष्ण ने उन्हें एक पौराणिक कथा सुनाई.
लोमष ऋषि की कथा
मथुरा नगरी में एक बार लोमष ऋषि, वसुदेव और देवकी के घर पधारे. देवकी उस समय अत्यंत दुखी थीं क्योंकि कंस ने उनके कई पुत्रों का वध कर दिया था. ऋषि ने उन्हें सांत्वना देते हुए संतान सप्तमी व्रत का महत्व बताया और कहा कि इससे संतान सुख और सुरक्षा प्राप्त होती है.
उन्होंने राजा नहुष की पत्नी चन्द्रमुखी का उदाहरण दिया. रानी चन्द्रमुखी संतान न होने से दुखी रहती थीं. लेकिन जब उन्होंने संतान सप्तमी का व्रत पूरे नियम और श्रद्धा से किया, तो उन्हें संतान प्राप्त हुई.
व्रत का महत्व और पुनर्जन्म की कथा
ऋषि ने देवकी को समझाया कि रानी चन्द्रमुखी और उनकी सहेली भद्र ब्राह्मणी, दोनों ने सरयू नदी में स्नान करते समय स्त्रियों को संतान सप्तमी व्रत करते देखा. दोनों ने संकल्प तो लिया, लेकिन रानी चन्द्रमुखी ने इसे पूर्ण श्रद्धा से नहीं किया, जबकि ब्राह्मणी ने जीवनभर नियमपूर्वक इस व्रत को निभाया.
फलस्वरूप, अगले जन्मों में भी दोनों को अलग-अलग फल मिले. ब्राह्मणी ने अपने हर जन्म में भगवान शिव-पार्वती की उपासना और संतान सप्तमी का पालन किया, जिससे उसे श्रेष्ठ पुत्र और सुख-समृद्धि मिली. वहीं, रानी चन्द्रमुखी नियमों का पालन न करने के कारण निःसंतानता और दुःख भोगती रहीं.
संतान सप्तमी व्रत का पुण्यफल
कथा के अनुसार, भद्र ब्राह्मणी ने अपने श्रद्धापूर्ण व्रत के प्रभाव से अगले जन्म में भी आठ गुणी और धर्मपरायण पुत्र प्राप्त किए. दूसरी ओर, चन्द्रमुखी को एक पुत्र तो हुआ, लेकिन वह अल्पायु और अस्वस्थ था. अंततः उसने संतान सप्तमी का व्रत पूरी निष्ठा से किया, जिससे उसका दुख दूर हुआ और उसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिला.
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व्रत का संकल्प और विधि
इस कथा से देवकी को प्रेरणा मिली और उन्होंने भी संतान सप्तमी का व्रत करने का संकल्प लिया. ऋषि ने उन्हें बताया कि भाद्रपद शुक्ल सप्तमी के दिन स्नान, शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापना, धूप-दीप, अक्षत, फूल और नैवेद्य से पूजा करने तथा गंडा (धागा) बांधने से संतान सुख और सुरक्षा की प्राप्ति होती है.
संतान सप्तमी व्रत का प्रभाव इतना अद्भुत माना गया है कि यह न केवल संतान प्राप्ति का वरदान देता है, बल्कि पहले से संतान होने पर उनके जीवन में आयु, स्वास्थ्य और सौभाग्य की वृद्धि भी करता है. यह व्रत संतान के उज्जवल भविष्य और पारिवारिक सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.

