Mahalaya 2025 Exact Date: महालया दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. दुर्गा पूजा की तैयारियां बहुत पहले ही शुरू हो जाती हैं, ‘उल्टो रथ’ से लेकर. लेकिन महालया के दिन ही पूजा की अंतिम तैयारियां पूर्ण रूप से शुरू होती हैं. महालया, जो दुर्गा पूजा से सात दिन पहले पड़ता है, देवी दुर्गा के आगमन का संकेत देता है. यह माँ दुर्गा को पृथ्वी पर आने का निमंत्रण या आह्वान माना जाता है. यह निमंत्रण पवित्र मंत्रों के उच्चारण के माध्यम से दिया जाता है. अमावस्या की रात को लोग माँ दुर्गा की पूजा में इकट्ठा होते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे पृथ्वी पर आएं और सभी बुराइयों से रक्षा करें. दुर्गा पूजा भारत के विभिन्न राज्यों में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, तमिलनाडु, पंजाब, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं. आइए जानें कब है महालया
कब है महालया ?(Mahalaya Kab Hai)
इस साल महालया 22 सितंबर को है. इसे महालया अमावस्या या सर्व पितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. महालया के अगले दिन शारदीय नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना की जाती है.
महालया का महत्व(Significance of Mahalaya)
हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को महालया अमावस्या कहते हैं. इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है. इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान किए गए कर्मकांड महालया के दिन पूर्णता को प्राप्त करते हैं. इस अवसर पर पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे परिवार में सुख-समृद्धि और मंगल की वृद्धि होती है. महालया का एक और विशेष महत्व यह है कि इसके अगले दिन से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है. इस प्रकार यह दिन पितरों की स्मृति और देवी मां के स्वागत का मिलन बिंदु है. मान्यता है कि इस दिन किया गया तर्पण पितरों को तृप्त करता है और वे संतुष्ट होकर वंशजों को आयु, आरोग्य और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. यही कारण है कि महालया का दिन हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और श्रद्धापूर्ण माना जाता है.
महालया की धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यता के अनुसार, महालया पितृ पक्ष श्राद्ध की अवधि का 16वां दिन है. महालया 16 दिवसीय पितृ पक्ष के अंत का प्रतीक है. महालया मां दुर्गा का धरती पर आगमन का दिन होता है. माना जाता है कि देवी दुर्गा अपनी मायके (पृथ्वी) की ओर यात्रा प्रारंभ करती हैं. यह दिन को दुर्गा पूजा की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है. इस साल पितृ पक्ष का आखिरी दिन 2 अक्तूबर है. इसलिए महालया 2 अक्तूबर को ही है. इसे महालया अमावस्या या सर्व पितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. इसके अगले दिन ही शारदीय नवरात्रि की कलश स्थापना की जाती है.
महालया की कहानी(Story of Mahalaya)
कहानी के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर ने राक्षस राजा महिषासुर को हराने के लिए माता दुर्गा की रचना की थी. महिषासुर को वरदान प्राप्त था कि उसे कोई भी देवता या मनुष्य नहीं मार सकता. जब देवता उससे हार गए, तो उन्होंने आदि शक्ति से मदद मांगी और माता दुर्गा ने महिषासुर को परास्त किया. इस युद्ध के दौरान देवी दुर्गा को लड़ने के लिए विभिन्न देवताओं ने हथियार प्रदान किए. इसलिए उन्हें शक्ति की देवी कहा जाता है.
दुर्गा पूजा और नौ रूप
दुर्गा पूजा के नौ दिनों में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है:
- मां शैलपुत्री
- मां ब्रह्मचारिणी
- मां चंद्रघंटा
- मां कूष्मांडा
- मां स्कंदमाता
- मां कात्यायनी
- मां कालरात्रि
- मां महागौरी
- मां सिद्धिदात्री
अक्सर माता दुर्गा की तस्वीरों और मूर्तियों में उन्हें दस भुजाओं के साथ दर्शाया जाता है, जो उनकी शक्तियों और विविधताओं का प्रतीक हैं.

