Kajari Teej Vrat Katha: आज 12 अगस्त 2025 को कजरी तीज का पावन पर्व मनाया जा रहा है. हरियाली तीज के बाद आने वाली यह तीज विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्व रखती है. सुहागिन महिलाएं यह व्रत अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए करती हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की श्रद्धापूर्वक पूजा करने से दांपत्य जीवन में सौभाग्य, प्रेम और अटूट बंधन बना रहता है. यह त्योहार रक्षाबंधन के तीन दिन बाद और कृष्ण जन्माष्टमी से पाँच दिन पहले आता है.
उत्तर भारत के कई हिस्सों में कजरी तीज को कजली तीज, सातूड़ी तीज और बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन रात में चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि चंद्र देव को अर्घ्य अर्पित करने से दांपत्य जीवन सुखी और समृद्ध बनता है.
आज मनाई जा रही है कजरी तीज, सुखी दांपत्य जीवन में इस मुहूर्त में करें पूजा
कजरी तीज की व्रत कथा
कजरी तीज से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से सबसे लोकप्रिय कथा एक गरीब ब्राह्मण और उसकी पत्नी की है. कहते हैं कि एक गांव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था. भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया को ब्राह्मणी ने कजरी तीज का व्रत रखा. उसने अपने पति से पूजा के लिए सवा किलो चने का सत्तू लाने को कहा, लेकिन ब्राह्मण के पास पैसे नहीं थे. पत्नी ने आग्रह किया कि चाहे जैसे भी हो, सत्तू अवश्य लाना है.
मजबूरी में ब्राह्मण एक साहूकार की दुकान पर गया. दुकान खाली थी, तो उसने चुपचाप चने की दाल, घी और शक्कर सवा किलो तोलकर सत्तू बना लिया. तभी दुकान का नौकर आ गया और शोर मचाने लगा—”चोर-चोर”. साहूकार ने ब्राह्मण को पकड़ लिया.
ब्राह्मण ने रोते हुए अपनी परेशानी बताई कि वह चोरी करने नहीं आया, बल्कि पत्नी के व्रत के लिए सत्तू लेने आया है. तलाशी लेने पर उसके पास सिर्फ सत्तू मिला. उसकी सच्चाई और नीयत देखकर साहूकार का दिल पिघल गया. उसने न केवल सत्तू दिया, बल्कि गहने, मेहंदी, लच्छा और रुपए भी देकर उसे सम्मानपूर्वक विदा किया, और बहन का दर्जा दे दिया.
घर लौटकर ब्राह्मण ने सत्तू पत्नी को दिया. विधि-विधान से पूजा हुई और रात में चांद को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया गया. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से घर में सुख-शांति आती है और सभी संकट दूर हो जाते हैं.

