Jyeshtha Purnima 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को ज्येष्ठ पूर्णिमा कहा जाता है, जिसे वट पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. यह दिन न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि पारिवारिक और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और लंबी उम्र की कामना के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है, साथ ही पितरों को स्मरण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन के लिए व्रत रखती हैं. वे बरगद (वट) के पेड़ की पूजा करती हैं और उसके चारों ओर धागा बांधकर सात परिक्रमा करती हैं. यह परंपरा सावित्री-सत्यवान की कथा पर आधारित है, जिसमें सावित्री ने अपने तप और निष्ठा से अपने मृत पति को यमराज से वापस प्राप्त किया था.
इस वर्ष 2025 में, ज्येष्ठ पूर्णिमा आज 11 जून को पड़ रही है. यह दिन आस्था, श्रद्धा और परिवार के प्रति समर्पण की भावना को और भी मजबूत करता है. महिलाएं इस दिन निर्जल या फलाहार व्रत रखती हैं, कथा सुनती हैं और पूजा के बाद अपने पति के कल्याण की कामना करती हैं.
ज्येष्ठ पूर्णिमा
सबसे पहले जानते हैं कि ज्येष्ठ पूर्णिमा कब है. पंचांग के अनुसार, इस वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 10 जून को सुबह 11:36 बजे से होगा और इसका समापन 11 जून को दोपहर 1:14 बजे होगा. उदयातिथि की मान्यता के अनुसार, व्रत और पूजा का आयोजन 11 जून 2025, मंगलवार को किया जाएगा. इस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र और साध्य योग का शुभ संयोग भी बन रहा है. जहां ज्येष्ठा नक्षत्र दोपहर 1:14 बजे तक रहेगा, वहीं साध्य योग दोपहर 2:04 बजे तक प्रभावी रहेगा. यह योग व्रत और पूजा के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है.
दान क्या करें?
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से संबंधित वस्तुओं का दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है. इस दिन चावल, दूध, सफेद कपड़े, चीनी और अन्य शीतल एवं शुभ वस्तुएं दान करने की परंपरा है. साथ ही, अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करना पुण्यदायी होता है.
ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत और पूजा से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है. माना जाता है कि इस दिन के व्रत से चंद्र दोष का प्रभाव कम होता है और मन को स्थिरता मिलती है. माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए यह दिन अत्यंत फलदायी होता है. इसके अतिरिक्त, स्नान और दान करने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि अनेक गुना पुण्य फल की प्राप्ति भी होती है.