Jitiya Vrat 2025: जितिया व्रत का त्योहार भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है. यह मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में महिलाएँ करती हैं. इस व्रत को बच्चों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए माताएँ करती हैं. यह व्रत तीन दिनों तक चलता है. व्रत के दौरान हाथ या गले में जितिया का धागा पहनाया जाता है, जो दीर्घायु और माता-संतान के बीच अटूट रिश्ते का प्रतीक माना जाता है. अब मन में सवाल आता है कि व्रत पूरा होने के बाद जितिया धागा का क्या करना चाहिए. चलिए इस लेख के द्वारा इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करते हैं.
व्रत पूरा होने के बाद धागा का क्या करें?
इस धागे को माताएँ पहले संतान को पहनाती हैं और फिर स्वयं धारण करती हैं. व्रत सम्पन्न होने के बाद कम से कम 24 घंटे तक इसे नहीं उतारना चाहिए. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा के बाद धागे को उतारने के लिए कुछ नियमों का पालन करना ज़रूरी है. इसे कहीं भी किसी साधारण धागे की तरह नहीं फेंकना चाहिए, बल्कि धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ उतारना चाहिए.
पानी में विसर्जन
मान्यता है कि व्रत पूरा होने के बाद महिलाएँ इस धागे को पवित्र नदी, तालाब या कुएँ में विसर्जित कर सकती हैं. इसे अशुभ नहीं माना जाएगा. साथ ही जीमूतवाहन का आशीर्वाद बना रहेगा. इसके अलावा माना जाता है कि इससे संतान पर आई हुई संभावित बाधाएँ दूर होती हैं.
पीपल या तुलसी पौधे के नीचे रखना
कहा जाता है कि जितिया के बाद महिलाएँ इस धागे को पीपल या तुलसी के पौधे पर चढ़ा सकती हैं. तुलसी और पीपल के पेड़ को पवित्र और पूजनीय माना जाता है. इन पर धागा चढ़ाने से संतान की दीर्घायु और परिवार की सुख-समृद्धि बनी रहती है.
घर के पूजा स्थल पर रखना
आप जितिया के धागे को घर के पूजा स्थल पर भी रख सकते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और संतान पर माता का आशीर्वाद बना रहता है.
क्या न करें
- धागे को कूड़े या अपवित्र जगह पर न फेंकें.
- इसे पैरों के नीचे आने न दें.
- धागे का अनादर न करें.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी केवल मान्यताओं और परंपरागत जानकारियों पर आधारित है. प्रभात खबर किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है.
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