Holika Dahan 2023 Timing, Puja Vidhi LIVE Updates: खुशियों और उमंगों का पर्व होली एक दिन बाद आने ही वाला है. इस बार 6 मार्च और 7 मार्च दोनों दिन होलिका दहन का मुहूर्त है और 8 मार्च को रंगों की होली है. इस बार होलिका दहन 6 और 7 मार्च दोनों दिन है. जानें होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, भद्रा काल, पूजा विधि, महत्व और मान्यताएं.
दक्षिण-पूर्व दिशा में होली की राख रखने से व्यापार और व्यावसायिक जीवन में लाभ होता है और व्यक्ति उन्नति के रास्ते पर आगे बढ़ता है. ऐसा करने से घर में सुख-शांति भी बनी रहती है.
हिंदू धर्म के अनुसार होलिका दहन का पौराणिक और धा4मिक महत्व दोनों ही है. क्योंकि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाती है। इसके साथ ही इस दिन होलिका दहन की विधिवत पूजा करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. इतना ही नहीं इसके साथ ही बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए अग्नि देवता को धन्यवाद देते हैं.
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन को अशुभ माना जाता है. यह होलिका दहन का दोष है. माना जाता है कि भद्रा के स्वामी यमराज होने के कारण इस योग में कोई भी शुभ कार्य वर्जित होता है. होलिका दहन भद्रा पुंछ में किया जा सकता है. इस बार होलिका दहन 7 मार्च को शुभ है. जबकि अगले दिन (8 मार्च) को रंग वाली होली खेली जाएगी.
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन को अशुभ माना जाता है. यह होलिका दहन का दोष है. माना जाता है कि भद्रा के स्वामी यमराज होने के कारण इस योग में कोई भी शुभ कार्य वर्जित होता है. होलिका दहन भद्रा पुंछ में किया जा सकता है. इस बार होलिका दहन 7 मार्च को शुभ है. जबकि अगले दिन (8 मार्च) को रंग वाली होली खेली जाएगी.
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
हिंदू धर्म के अनुसार होलिका दहन का पौराणिक और धा4मिक महत्व दोनों ही है. क्योंकि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाती है। इसके साथ ही इस दिन होलिका दहन की विधिवत पूजा करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. इतना ही नहीं इसके साथ ही बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए अग्नि देवता को धन्यवाद देते हैं.
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि आरंभ- 06 मार्च, सोमवार को शाम 04 बजकर 17 मिनट से आरंभ
फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि का समापन- 7 मार्च, मंगलवार को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर
भद्रा- 6 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर 7 मार्च को भद्रा सुबह 5 बजकर 15 मिनट तक
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
हिंदू धर्म के अनुसार होलिका दहन का पौराणिक और धा4मिक महत्व दोनों ही है. क्योंकि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाती है। इसके साथ ही इस दिन होलिका दहन की विधिवत पूजा करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. इतना ही नहीं इसके साथ ही बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए अग्नि देवता को धन्यवाद देते हैं.
फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि आरंभ- 06 मार्च, सोमवार को शाम 04 बजकर 17 मिनट से आरंभ
फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि का समापन- 7 मार्च, मंगलवार को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर
भद्रा- 6 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर 7 मार्च को भद्रा सुबह 5 बजकर 15 मिनट तक
हिंदू धर्म के अनुसार होलिका दहन का पौराणिक और धा4मिक महत्व दोनों ही है. क्योंकि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाती है। इसके साथ ही इस दिन होलिका दहन की विधिवत पूजा करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. इतना ही नहीं इसके साथ ही बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए अग्नि देवता को धन्यवाद देते हैं.
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन को अशुभ माना जाता है. यह होलिका दहन का दोष है. माना जाता है कि भद्रा के स्वामी यमराज होने के कारण इस योग में कोई भी शुभ कार्य वर्जित होता है. होलिका दहन भद्रा पुंछ में किया जा सकता है. इस बार होलिका दहन 7 मार्च को शुभ है. जबकि अगले दिन (8 मार्च) को रंग वाली होली खेली जाएगी.
होलिका दहन की अग्नि को जलती चिता का प्रतीक माना गया है. इसलिए नए शादीशुदा जोड़ों को होलिका दहन को नहीं देखना चाहिए.
माता-पिता के इकलौते संतान को कभी भी होलिका में आहुति नहीं देनी चाहिए. इसे अशुभ माना जाता है.
होलिका दहन के दिन सफेद खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के समय सिर ढंककर ही पूजा करनी चाहिए.
सास-बहू को एक साथ मिलकर होलिका दहन नहीं देखना चाहिए.
इस दिन को भी शुभ या मांगलिक काम नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के दिन किसी भी व्यक्ति को उधार नहीं देना चाहिए. ऐसा करने से घर में बरकत नहीं होती है.
होलिका की अग्नि में पीपल, बरगद और आम की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के दिन किसी महिला का अपमान नहीं करना चाहिए.
एक पानीदार नारियल लेकर किसी रोगी या पीड़ित व्यक्ति के ऊपर से 7 या 21 बार घड़ी की सुई की दिशा में उतारें या वारें और उसे होलिका की आग में डाल दें. इससे संकट चला जाएगा. नारिलय डालने के बाद होलिका की 7 परिक्रमा करें और ईष्टदेव से प्रार्थना करें. यदि राहु के कारण किसी भी प्रकार का संकट खड़ा हो रहा है तो एक नारियल का गोला लेकर उसमें अलसी का तेल भरें. उसी में थोड़ासा गुड़ डालें और इस गोले को जलती हुई होलिका में डाल दें. इससे राहु का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाएगा. होलिका दहन के बाद जलती अग्नि में नारियल दहन करने से नौकरी की बाधाएं दूर होती हैं.
होलिका दहन की अग्नि को जलती चिता का प्रतीक माना गया है. इसलिए नए शादीशुदा जोड़ों को होलिका दहन को नहीं देखना चाहिए.
माता-पिता के इकलौते संतान को कभी भी होलिका में आहुति नहीं देनी चाहिए. इसे अशुभ माना जाता है.
होलिका दहन के दिन सफेद खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के समय सिर ढंककर ही पूजा करनी चाहिए.
सास-बहू को एक साथ मिलकर होलिका दहन नहीं देखना चाहिए.
इस दिन को भी शुभ या मांगलिक काम नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के दिन किसी भी व्यक्ति को उधार नहीं देना चाहिए. ऐसा करने से घर में बरकत नहीं होती है.
होलिका की अग्नि में पीपल, बरगद और आम की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के दिन किसी महिला का अपमान नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
होलिका दहन जिसे कही पर छोटी होली के नाम से जाना जाता है. इस बार होलिका दहन भारत के अन्य हिस्से में महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा दक्षिण के राज्यों में होलिका दहन 6 मार्च 2023 को किया जाएगा. इसके अलावा उतर प्रदेश बंगाल, झारखंड, बिहार असम होलिका दहन 7 मार्च 2023 को किया जाएगा. यह सूर्यास्त के बाद प्रदोष के समय जब पूर्णिमा तिथि व्यापत हो, उसी समय होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के लिए प्रदोष, व्यापिनी पूर्णिमा तिथि में होलिका दहन शुभ मानी जाती है.
ऋषिकेश पञ्चांग के अनुसार भद्रा काल का मुहूर्त 6 मार्च 2023 को शाम 3 बजकर 56 मिनट से शुरु होगा और 7 मार्च 2023 को सुबह 4 बजकर 48 मिनट तक रहेगा.
07 मार्च 2023 दिन मंगलवार समय संध्या 06 बजकर 24 मिनट से 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा.
भद्रा पूंछ सुबह 12 बजकर 43 मिनट से 02 बजकर 01 मिनट सुबह तक
भद्रा मुख सुबह 02 बजकर 01 मिनट से 04 बजकर 11 मिनट सुबह तक
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का समाप्ति 07 मार्च 2023 दिन मंगलवार समय संध्या 06 बजकर 09 मिनट तक.
पञ्चांग के अनुसार होलिका दहन 07 मार्च 2023 को होलिका दहन करें.
ऋषिकेश पंचाग के अनुसार होली उत्तरप्रदेश के केवल काशी में जो भोलेनाथ का स्थान है, वहां पर होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
6 मार्च 2023 दिन सोमवार समय रात्रि 12 बजकर 23 मिनट से 01 बजकर 35 मिनट तक होलिका दहन किया जाएगा. परंपरा अनुसार काशी में होली 07 मार्च 2023 को मनाया जायेगा.
होली का व्रत के लिए पूर्णिमा का मान 6 मार्च सोमवार को होगा. आज 3 बजकर 57 मिनट के बाद पूर्णिमा तिथि लग गई है, क्योंकि होलिका दहन पूर्णिमा की रात में भद्रा के पश्चात किया जाता है. इसलिए 6 मार्च सोमवार की रात 12 बजकर 23 मिनट से लेकर 1 बजकर 35 मिनट तक होलिका दहन का मुहूर्त बन रहा है. इसी समय के बीच होलिका का पूजन कर विधि विधान से होलिका दहन किया जाएगा. स्नान दान के लिए पूर्णिमा एवं काशी में रंग की होली का प्रसिद्ध पर्व 7 मार्च दिन मंगलवार को मनाया जाएगा. होलिका दहन के बाद से ही रंग की होली प्रारंभ हो जाती है.
होलिका दहन जिसे कही पर छोटी होली के नाम से जाना जाता है. इस बार होलिका दहन भारत के अन्य हिस्से में महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा दक्षिण के राज्यों में होलिका दहन 6 मार्च 2023 को किया जाएगा. इसके अलावा उतर प्रदेश बंगाल, झारखंड, बिहार असम होलिका दहन 7 मार्च 2023 को किया जाएगा. यह सूर्यास्त के बाद प्रदोष के समय जब पूर्णिमा तिथि व्यापत हो, उसी समय होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के लिए प्रदोष, व्यापिनी पूर्णिमा तिथि में होलिका दहन शुभ मानी जाती है.
होलिका दहन का मुहूर्त किसी त्योहार के मुहुर्त से ज्यादा महतवपूर्ण होता है. होलिका दहन अगर शुभ मुहूर्त पर नहीं किया जाये, तो दुखदायी होता है साथ में नकारात्मक शक्तियां घर में विराजमान हो जाते है. जिसे इंसान को आर्थिक तथा शाररिक क्षति होता है. वेवजह के घर में तनाव बना रहता है. इस वर्ष होली को लेकर लोगों का अलग-अलग विचार बना रहें है. जिसे लोगों को असमंजस की स्थिति में है. कही पर तो भद्रा को लेकर लोगों का विचार अलग बन रहा है. धर्म सिन्धु के अनुसार भद्रा मुख में होलिका दहन किया जाता है तो उस गांव तथा शहर के अंतर्गत जो निवास करते है तथा वहां के लोग काफी परेशानी झेलते है.
होली का व्रत के लिए पूर्णिमा का मान 6 मार्च सोमवार को होगा. आज 3 बजकर 57 मिनट के बाद पूर्णिमा तिथि लग गई है, क्योंकि होलिका दहन पूर्णिमा की रात में भद्रा के पश्चात किया जाता है. इसलिए 6 मार्च सोमवार की रात 12 बजकर 23 मिनट से लेकर 1 बजकर 35 मिनट तक होलिका दहन का मुहूर्त बन रहा है. इसी समय के बीच होलिका का पूजन कर विधि विधान से होलिका दहन किया जाएगा. स्नान दान के लिए पूर्णिमा एवं काशी में रंग की होली का प्रसिद्ध पर्व 7 मार्च दिन मंगलवार को मनाया जाएगा. होलिका दहन के बाद से ही रंग की होली प्रारंभ हो जाती है.
ऋषिकेश पञ्चांग के अनुसार भद्रा काल का मुहूर्त 6 मार्च 2023 को शाम 3 बजकर 56 मिनट से शुरु होगा और 7 मार्च 2023 को सुबह 4 बजकर 48 मिनट तक रहेगा.
07 मार्च 2023 दिन मंगलवार समय संध्या 06 बजकर 24 मिनट से 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा.
भद्रा पूंछ सुबह 12 बजकर 43 मिनट से 02 बजकर 01 मिनट सुबह तक
भद्रा मुख सुबह 02 बजकर 01 मिनट से 04 बजकर 11 मिनट सुबह तक
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का समाप्ति 07 मार्च 2023 दिन मंगलवार समय संध्या 06 बजकर 09 मिनट तक.
पञ्चांग के अनुसार होलिका दहन 07 मार्च 2023 को होलिका दहन करें.
ऋषिकेश पंचाग के अनुसार होली उत्तरप्रदेश के केवल काशी में जो भोलेनाथ का स्थान है, वहां पर होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
6 मार्च 2023 दिन सोमवार समय रात्रि 12 बजकर 23 मिनट से 01 बजकर 35 मिनट तक होलिका दहन किया जाएगा. परंपरा अनुसार काशी में होली 07 मार्च 2023 को मनाया जायेगा.
होलिका दहन जिसे कही पर छोटी होली के नाम से जाना जाता है. इस बार होलिका दहन भारत के अन्य हिस्से में महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा दक्षिण के राज्यों में होलिका दहन 6 मार्च 2023 को किया जाएगा. इसके अलावा उतर प्रदेश बंगाल, झारखंड, बिहार असम होलिका दहन 7 मार्च 2023 को किया जाएगा. यह सूर्यास्त के बाद प्रदोष के समय जब पूर्णिमा तिथि व्यापत हो, उसी समय होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के लिए प्रदोष, व्यापिनी पूर्णिमा तिथि में होलिका दहन शुभ मानी जाती है.
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
ज्योतिष के अनुसार इस बार होलिका दहन (Holika Dahan Shubh Muhurat 2023) का शुभ मुहूर्त सिर्फ 2 घंटे 27 मिनट का है. 7 मार्च 2023 की शाम करीब 6:24 बजे से होलिका दहन शुरू हो रहा है. वहीं इसी रात 8 बजकर 51 मिनट के बीच होलिका दहन के लिए बहुत ही शुभ होता है. इस शुभ मुहूर्त में होलिका पूजन किया जाएगा और उसके बाद होलिका में आग लगा दी जाएगी.
उज्जैन - 12.40 AM- 05.56 AM (6-7 मार्च की दरमियानी रात)
वाराणसी - 12.40 AM - 05.56 AM (6-7 मार्च की दरमियानी रात)
नई दिल्ली - 06.24 PM- 08.51 PM (7 मार्च 2023)
मुंबई - 06.46 PM - 08.52 PM (7 मार्च 2023)
जयपुर - 06.31 PM - 08.58 PM (7 मार्च 2023)
कोलकाता - 05.42 PM - 06.09 PM (7 मार्च 2023)
रांची - 05.54 PM - 06.09 PM (7 मार्च 2023)
भोपाल - 06.26 PM - 08.52 PM (7 मार्च 2023)
चंडीगढ़ - 06.25 PM - 08.53 PM (7 मार्च 2023)
रायपुर - 06.10 PM - 08.36 PM (7 मार्च 2023)
बेंगलुरू - 06.29 PM - 08.54 PM (7 मार्च 2023)
पटना - 05.54 PM - 06.09 PM (7 मार्च 2023)
अहमदाबाद - 06.45 PM - 09.11 PM (7 मार्च 2023)
हैदराबाद- 06.24 PM - 08.49 PM (7 मार्च 2023)
होलिका दहन की लपटें बहुत लाभकारी होती है, माना जाता है कि होलिका की पूजा करने से साधक की हर चिंता दूर हो जाती है. होलिक दहन की अग्नि नकारात्मकता का नाश करती है वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इसकी लपटों से वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं. होलिका पूजा और दहन में परिक्रमा बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. कहते हैं परिक्रमा करते हुए अपनी मनोकामनाए कहने से वो जल्द पूरी हो जाती है.
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल होलिका दहन 7 मार्च 2023 को किया जाएगा.इसके साथ ही 8 मार्च को रंगों वाली होली खेली जाएगी.
होलिका दहन का मुहूर्त- शाम 6 बजकर 24 मिनट से 8 बजकर 51 मिनट तक
अवधि- 2 घंटे 27 मिनट
भद्रा मुख समय- 7 मार्च को दोपहर 2 बजकर 58 मिनट से शाम 5 बजकर 6 मिनट तक
भद्रा पूंछ- 7 मार्च को शाम 4 बजकर 53 मिनट से 6 बजकर 10 मिनट तक
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि आरंभ- 06 मार्च 2023 को शाम 04 बजकर 17 मिनट से शुरू
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि समाप्त- 07 मार्च 2023 को शाम 06 बजकर 09 मिनट तक
होलिका दहन की अग्नि को जलती चिता का प्रतीक माना गया है. इसलिए नए शादीशुदा जोड़ों को होलिका दहन को नहीं देखना चाहिए.
माता-पिता के इकलौते संतान को कभी भी होलिका में आहुति नहीं देनी चाहिए. इसे अशुभ माना जाता है.
होलिका दहन के दिन सफेद खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के समय सिर ढंककर ही पूजा करनी चाहिए.
सास-बहू को एक साथ मिलकर होलिका दहन नहीं देखना चाहिए.
इस दिन को भी शुभ या मांगलिक काम नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के दिन किसी भी व्यक्ति को उधार नहीं देना चाहिए. ऐसा करने से घर में बरकत नहीं होती है.
होलिका की अग्नि में पीपल, बरगद और आम की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के दिन किसी महिला का अपमान नहीं करना चाहिए.
नारद पुराण के अनुसार आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस हुआ था. दैत्यराज खुद को ईश्वर से भी बड़ा समझता था. वह चाहता था कि लोग केवल उसकी पूजा करें. लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद परम विष्णु भक्त था. भक्ति उसे उसकी मां से विरासत के रूप में मिली थी.
इसी बात को लेकर उन्होंने अपने पुत्र को भगवान की भक्ति से हटाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन भक्त प्रह्लाद प्रभु की भक्ति को नहीं छोड़ पाए. कई बार समझाने के बाद भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे को जान से मारने का विचार किया. कई कोशिशों के बाद भी वह प्रह्लाद को जान से मारने में नाकाम रहा. बार बार मारने के प्रयास होने पर भी वह प्रभु-कृपा से बचता रहा. इसके बाद उसने अपनी बहन होलिका से मदद ली जिसे यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी. भगत प्रह्लााद को गोद में लेकर होलिका चिता पर बैठ गई. यह सबकुछ देखकर भी प्रह्लााद तनिक भी विचलित न हुए. पूरी श्रद्धा से वह भगवान विष्णु का नाम जपते रहे.
परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया. इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में होलिका की मृत्यु हो गई. होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण भगवान की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ.
ज्योतिष के अनुसार इस बार होलिका दहन (Holika Dahan Shubh Muhurat 2023) का शुभ मुहूर्त सिर्फ 2 घंटे 27 मिनट का है. 7 मार्च 2023 की शाम करीब 6:24 बजे से होलिका दहन शुरू हो रहा है. वहीं इसी रात 8 बजकर 51 मिनट के बीच होलिका दहन के लिए बहुत ही शुभ होता है. इस शुभ मुहूर्त में होलिका पूजन किया जाएगा और उसके बाद होलिका में आग लगा दी जाएगी.
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन को अशुभ माना जाता है. यह होलिका दहन का दोष है. माना जाता है कि भद्रा के स्वामी यमराज होने के कारण इस योग में कोई भी शुभ कार्य वर्जित होता है. होलिका दहन भद्रा पुंछ में किया जा सकता है. इस बार होलिका दहन 7 मार्च को शुभ है. जबकि अगले दिन (8 मार्च) को रंग वाली होली खेली जाएगी.
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप को भगवान बनने का जुनून सवार हो गया था और वह चाहता था कि राज्य के सभी लोग उसे भगवान माने. प्रजा भयवश होलिका दहन पर्व धार्मिक से कहीं अधिक वैज्ञानिक है. सर्व विदित है कि बरसात के बाद दीपावली पर्व तक वातावरण में जहरीले कीटाणु व विषाणु की संख्या बढ़ जाती है. इन जहरीले कीटाणुओं व विषाणुओं का आग प्रिय है. इसलिए रात में प्रकाश जलने पर उसके करीब जाने वाले कुछ कीटाणु जल भी जाते हैं पर अधिकांश बच जाते हैं. वातावरण में इन बचे कीटाणुओं व विषाणुओं को नष्ट करने के लिए गांव-गांव होलिका दहन होता है.
होलिका दहन की अग्नि को जलती चिता का प्रतीक माना गया है. इसलिए नए शादीशुदा जोड़ों को होलिका दहन को नहीं देखना चाहिए.
माता-पिता के इकलौते संतान को कभी भी होलिका में आहुति नहीं देनी चाहिए. इसे अशुभ माना जाता है.
होलिका दहन के दिन सफेद खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के समय सिर ढंककर ही पूजा करनी चाहिए.
सास-बहू को एक साथ मिलकर होलिका दहन नहीं देखना चाहिए.
इस दिन को भी शुभ या मांगलिक काम नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के दिन किसी भी व्यक्ति को उधार नहीं देना चाहिए. ऐसा करने से घर में बरकत नहीं होती है.
होलिका की अग्नि में पीपल, बरगद और आम की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन के दिन किसी महिला का अपमान नहीं करना चाहिए.
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