Guru Purnima 2025: गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और श्रद्धा से भरपूर पर्व है, जिसे गुरु के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है. यह त्योहार हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को आता है और इसे महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों का संकलन और विभाजन कर मानवता को ज्ञान का मार्ग दिखाया. इस महान कार्य के कारण वे “आदि गुरु” के रूप में पूजे जाते हैं, और उनके सम्मान में ही इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने की परंपरा है.
गुरु पूर्णिमा 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
- गुरु पूर्णिमा 2025 का पर्व इस वर्ष 10 जुलाई (गुरुवार) को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा.
- पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि का आरंभ
- 10 जुलाई को रात 01:37 बजे से होगा और 11 जुलाई को रात 02:07 बजे पर इसका समापन होगा.
- इस प्रकार, गुरु पूर्णिमा व्रत एवं पूजन का श्रेष्ठ समय 10 जुलाई को रहेगा.
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है
गुरु पूर्णिमा हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में अत्यंत पवित्र पर्व है. यह आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन आचार्य, संत और गुरुओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार महर्षि वेदव्यास का जन्म इसी दिन हुआ था, जिन्होंने वेदों और पुराणों की रचना की। इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है. गुरु को जीवन में ज्ञान का प्रकाश देने वाला और अज्ञानता का नाश करने वाला माना गया है. विद्यार्थी अपने गुरु को सम्मान देकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. बौद्ध परंपरा में माना जाता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था.
ये भी पढ़े : गुरु पूर्णिमा पर इन मंत्रों का करें जाप, हर संकट होगा दूर
ये भी पढ़े : गुरु पूर्णिमा के दिन क्या न करें? जानें गुरु पूजा के दौरान बरतें ये सावधानियां
— इसका अर्थ है कि गुरु ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूजनीय हैं. वे केवल शास्त्रों का ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि आत्मा को जाग्रत कर मोक्ष का मार्ग भी दिखाते हैं. यही कारण है कि गुरु के बिना किसी भी शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति अधूरी मानी जाती है.
गुरु पूर्णिमा न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह आध्यात्मिक साधना और आत्मचिंतन का भी अवसर होता है. इस दिन साधु-संत, योगी और साधक विशेष तप और ध्यान करते हैं, वहीं गृहस्थ लोग अपने माता-पिता, शिक्षक या जीवन में मार्गदर्शन देने वाले किसी भी व्यक्ति को गुरु मानकर उनका सम्मान करते हैं.
इस दिन देशभर के गुरुकुलों, आश्रमों और धार्मिक स्थलों पर गुरु पूजन, यज्ञ, भजन और प्रवचन का आयोजन होता है. शिष्य अपने गुरु को पुष्प, वस्त्र, फल और मिठाई अर्पित कर उनका आशीर्वाद लेते हैं. यह परंपरा गुरु और शिष्य के बीच विश्वास और समर्पण के अटूट बंधन को दर्शाती है.
इस प्रकार, गुरु पूर्णिमा केवल वेदव्यास जी का जन्मदिन नहीं, बल्कि जीवन में गुरु की भूमिका को समझने और उनका आभार व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण दिन है, जो हर किसी को ज्ञान, अनुशासन और आत्मिक प्रगति की ओर प्रेरित करता है.

