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Premanand Ji Maharaj: क्या बार-बार धन-संपत्ति और सुख मांगने से भगवान होते हैं नाराज, मिलता है पाप ? जानें प्रेमानंद जी की राय

Premanand Ji Maharaj: पूजा-पाठ करते समय भी हमारे मन में अक्सर तरह-तरह की इच्छाएं आती हैं, जिनकी पूर्ति के लिए हम भगवान से प्रार्थना करते हैं. हम चाहते हैं कि करियर हो, व्यवसाय हो, शिक्षा का क्षेत्र हो या कोई अन्य क्षेत्र में हमें सफलता मिले और धन प्राप्त हो. हमारी इच्छाएं और मनोकामनाएं बढ़ती रहती हैं. लेकिन क्या ऐसा करना सही है, या इससे हमारी पूजा पर कोई प्रभाव पड़ता है? क्या हमारे पुण्य समाप्त हो जाते हैं? आइए जानते हैं.

Premanand Ji Maharaj: प्रत्येक इंसान आमतौर पर हर वक्त भगवान से कुछ न कुछ मांगता रहता है. भक्त बिना संकोच किए अपने आराध्य से सुख-शांति, संपत्ति, धन, संकटों के निवारण समेत अन्य कार्यों में सहायता की कामना करता है. भगवान को समर्पित कई भजन-गानों की वाणियों में आप सुनेंगे कि भक्त भगवान से कुछ पाने की इच्छा जता रहा है. लेकिन क्या ऐसा बार-बार करना सही है? क्या हर वक्त भगवान से कुछ पाने की कामना करना उचित है?

हमने कई बार लोगों को कहते सुना है कि कोई भी कार्य करते समय स्वार्थ नहीं करना चाहिए. बिना फल की कामना किए निस्वार्थ होकर हर कार्य करना चाहिए. लेकिन जब भगवान को याद करने का समय आता है, जब हम पूजा करते हैं, व्रत करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, तो भगवान से फल की इच्छा रखते हैं. क्या हमारा ऐसा करना सही है? क्या इससे हमारे पुण्यों पर असर पड़ता है? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब प्रेमानंद महाराज के द्वारा.

भगवान से धन, सुख-सम्पत्ति की कामना करना क्या गलत है?

वृंदावन प्रेमानंद महाराज के आश्रम में एक भक्त ने भगवान से मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करने की लोगों की आदत पर सवाल किया. सवाल को एक कागज पर लिखकर दिया गया था. प्रेमानंद महाराज आश्रम के एक संत ने कागज पर लिखे सवाल को पढ़ा. कागज में लिखा था- ‘महाराज, हम जब भजन-गान करते हैं, तो उसकी वाणियों में सुख-सम्पत्ति की कामना होती है. पूजा-पाठ करते हैं, तो मनोकामना करते हैं कि हमारे कार्य पूरे हो जाएं, बच्चों के स्कूल में नंबर अच्छे आएं. क्या यह मनोकामना सही है?’

प्रेमानंद महाराज का जवाब

इस पर प्रेमानंद महाराज ने जवाब देते हुए कहा कि यदि आपके मन में ऐसी इच्छा और मनोकामना आती है, तो यह बुरी बात नहीं है. इन इच्छाओं और मनोकामनाओं को अपने मन में आने दीजिए. हम प्रभु के सामने मनोकामना नहीं करेंगे, तो किसके सामने करेंगे? जब भगवान ने हमें जीवन दिया, बुद्धि दी, परिवार दिया, तो हम किससे कहेंगे कि हमें धन चाहिए, संपत्ति चाहिए? भगवान सर्वशक्तिमान हैं और सर्वज्ञानी हैं. हम उनके अलावा अपनी इच्छाएं किसके सामने प्रकट करेंगे?

भक्त कितने तरह के होते हैं?

वह कहते हैं कि भगवद् गीता में चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया गया है—

पहला— अर्थार्थी, मतलब भगवान से धन की चाह रखने वाला.
दूसरा— आर्त, मतलब भगवान से संकटों और पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए उपाय मांगने वाला.
तीसरा— जिज्ञासु, मतलब जो भगवान को जानने और ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखता है.
चौथा— ज्ञानी, जो भगवान को जान गया है और निस्वार्थ होकर भगवान की पूजा करता है.

प्रेमानंद महाराज का कहना है कि पूजा-पाठ करते समय आपके मन में ऐसे ख्याल आएं, तो यह गलत नहीं है. भगवान से कुछ भी मांगने की इच्छा गलत नहीं है. हमें भगवान ने बनाया है, उनके अलावा हमारा कोई नहीं है. इसलिए दुनिया में केवल भगवान के सामने ही अपनी मनोकामनाएं रख सकते हैं.

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Neha Kumari
Neha Kumari
प्रभात खबर डिजिटल के जरिए मैंने पत्रकारिता की दुनिया में पहला कदम रखा है. यहां मैं एक इंटर्न के तौर पर काम करते हुए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से जुड़े विषयों पर कंटेंट राइटिंग के बारे में सीख रही हूं.

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