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सृजन की उपासना का महापर्व है छठ, जानें क्या है विशेषता

छठ घाटों पर आप जाएं, तो नदियों और सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता का इजहार करते हैं. इस लिहाज से देखें, तो यह हमें लोकतांत्रिक भी बनाता है. यह स्त्रियों के प्रति सम्मान जाहिर करने की सीख देता है.

आलोक धन्वा

चर्चित कवि

छठ सृजन की उपासना का पर्व है. यह महापर्व है. जहां नदी नहीं, जहां सूर्य नहीं, वहां जीवन नहीं हो सकता है. यह जीवन देने वाले के प्रति कृतज्ञता जताने का भी पर्व है. यह नवान्न की उपासना की याद दिलाने वाला पर्व है. इसमें कोई पुरोहित नहीं. वेद-पुराण नहीं. छठ हमारी जीवन यात्रा में शामिल रहा है, सदियों से.

पद्मश्री उषा किरण खान

वरिष्ठ साहित्यकार

छठ एक लोकपर्व है. सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पूजन डूबते सूरज का पहले किया जाता है, फिर उगते सूरज का होता है. प्रसाद रूप में सभी प्रकार के फल-फूल, सब्जियां, कंद-मूल वगैरह होती हैं. नये तैयार गुड़ से बने पकवान चढ़ाये जाते हैं. मिट्टी तथा बांस के बर्तन ही काम में लिये जाते हैं. कुछ भी कृत्रिम नहीं.

सृजनकर्ता के प्रति सम्मान…

यह अद्भुत पर्व इस लिहाज से भी है कि इसमें किसी का किसी पर कोई ”डोमिनेशन” (प्रभुत्व) नहीं होता. स्त्री के साथ पुरुष भी इसे करते हैं. छठ घाटों पर आप जाएं, तो नदियों और सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता का इजहार करते हैं. इस लिहाज से देखें, तो यह हमें लोकतांत्रिक भी बनाता है. यह स्त्रियों के प्रति सम्मान जाहिर करने की सीख देता है. मुझे याद है, मेरी मां छठ के दौरान व्रतियों को पैर छूने के लिए भेजती थीं. यह सृजनकर्ता के प्रति सम्मान ही तो है. यह दीगर है कि सामंती समाज ने छठ को बेटों की प्राप्ति से जोड़ दिया. पर ऐसा है नहीं. इसे लोग संतान के लिए करते हैं. बेटा-बेटी का फर्क सामाजिक दृष्टिकोण में आये बदलाव का नतीजा है. छठी मईया से लोग तो बेटी की कामना करते हैं. वास्तव में यह जननी का पर्व है. स्त्री का पर्व है. सृजन की प्रक्रिया का पर्व है. और सृजन मनुष्य की यात्रा को सुगम बनाती है.

छठ से जुड़ी एक-एक बातों पर नजर डालें, तो साफ होगा कि कैसे यह हमारी समझ को विकसित करता है. अर्घ देने वाले सूप में रखी सामग्री देखिए. अद्भुत होती है उसकी सजावट. उसमें गन्ना होता है. नारियल, सिंघाड़ा, मखाना होते हैं. यह सब जल से पैदा होते हैं. मखाना पर तो बाबा नागार्जुन की कविता ही है. इस तरह हम नये फल-फूलों का स्वागत करते हैं.

सामाजिक बंधनों और भाषा की दीवार को पीछे धकेलते हुए यह मनुष्यता के विस्तार की झलक देने वाला पर्व है. यही कारण है कि देश के अलग-अलग राज्यों में लोग छठ करने लगे हैं. अतीत की बात करें, तो यह भोजपुरी अंचल तक सीमित था. पर मनुष्यता की कामना ने इसे विस्तार दिया है. महाराष्ट्र में बिहार-यूपी के लोग समुद्र किनारे छठ करते हैं. अब मराठी लोग भी इसे करने लगे हैं. यह छठ की खासियत यह भी है कि यह लोगों को जोड़ना सीखाता है. सामाजिक बंधनों का यह निषेध करता है. यह सबका समावेश करता है.

इसमें कृत्रिम कुछ भी नहीं…

आदिदेव नमस्तुभ्यम् प्रसीद मम् भास्कर

दिवाकर नमस्तुभ्यम् प्रभाकर नमस्तुते॥

सूर्य मानव के प्रथम देवता हैं, जिन्हें प्रत्यक्ष देखते थे. जब सूरज उगते हैं, तब चारों ओर उजाला होता है, सबकुछ साफ दिखता है. रात के अंधकार में जो कुछ भयावह दिखता है, वह दिन में सुंदर हो जाता है. रात को जो ठंड का असर होता है, तो वह सूरज के उगने, आकाश में बढ़ने-चढ़ने से गरमी का अहसास देता है. यह सब चमत्कार ही तो लगता है.

यही कारण है कि आदि ज्ञान के स्रोत वेद की ऋचाएं उषा से शुरू होती हैं. उषा का अपनी छटा बिखेरते हुए धरती पर आना बेहद सौंदर्यपूर्ण ढंग से वर्णित किया गया है. धीरे-धीरे सभ्यता की ओर उन्मुख भारतीय मानस ने देखा कि अन्न, फल-फूल, सब्जी-भाजी के उपजने पकने में भी सूरज की गर्मी का हाथ है. यही कारण है कि सूर्य प्रथम देव हो गये.

किसी के बीच कोई भेदभाव नहीं रहता :

छठ की एक विशेषता है, जो स्वतःस्फूर्त है, बनावटी नहीं. नदी में, जलाशय में, जोहड़ में सभी जातिवर्ग के लोग साथ खड़े होते हैं आराधना के लिये. वहां कोई अंतर नहीं होता. खरना अर्थात लोहंडा का तरीका एक ही होता है, चढ़ावे की सामग्री एक-सी होती है.

कोई ऊंच-नीच का फर्क नहीं. छठ में उपवास का एक ही तरीका होता है, एक ही समय होता है. इस मामले में यह जान पड़ता है कि हम प्राचीनतम रूप से एक समाज के लोग हैं. हममें कोई विभेद नहीं रहा. ये सारे विभेद तो समय-समय पर आक्रांताओं द्वारा पैदा किये गये. छठ एक मिलन पर्व है, जो समाज की एकता के लिए आवश्यक प्रतीत होता है.

एशिया से लेकर यूरोप तक बढ़ी छठ की ख्याति:

इन दिनों छठ की व्याप्ति बढ़ी है. यह सच है कि बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश से मौलिक रूप से शुरू यह पर्व अब देश के कई राज्यों के अलावा विदेश में भी होने लगा है. यहां के लोग पूरे देश में काम के सिलसिले में रहने लगे हैं. यही हाल विदेशों में रहने वालों का भी है. यथाशक्ति लोग लौटते हैं छठ करने अपने गांव-घर, परंतु सदा संभव नहीं होता. यही कारण है कि यूरोप अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया, अफ्रीका वगैरह में छठ होता है. मॉरीशस-फिजी सरीखे भारतवंशी द्वीपों का मुख्य पर्व छठ ही है. यह सच है कि सूर्य के प्रताप के अनुरूप उनकी पूजा में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है.

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