Chaitra Navratri 2025: दुर्गासप्तशी का पाठ हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह एक ऐसा ग्रन्थ है जो भगवती की कृपा के अद्भुत रहस्यों से भरा हुआ है. जो व्यक्ति इसे ग्रहण करता है, वह धन्य हो जाता है. इसके पाठ के माध्यम से देवी की विभिन्न शक्तियों को प्राप्त करने का साधन मिलता है, और यह कर्म तथा भक्ति के विभिन्न मार्गों को दर्शाने वाला ग्रन्थ है. मार्कण्डेय पुराण में देवी के चमत्कारी रूपों का विस्तृत वर्णन किया गया है.मार्कण्डेय पुराण में देवी भगवती के विभिन्न चमत्कारी रूपों का विस्तृत वर्णन किया गया है.
दुर्गासप्तशती के पाठ के अलग नाम
इस पाठ को शतचंडी, नवचंडी और चंडी पाठ के नाम से भी जाना जाता है. जब कोई व्यक्ति मानसिक तनाव, पारिवारिक समस्याओं या असाध्य रोगों से ग्रस्त होता है, तब दुर्गा सप्तशती का पाठ अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है. इस पाठ के माध्यम से परिवार में व्याप्त नकारात्मक ऊर्जा और उपरी बाधाओं से मुक्ति मिलती है. देवी भगवत पुराण में उल्लेख है कि ऐश्वर्य की इच्छा रखने वाले राजा सुरथ ने अपने अजेय साम्राज्य को प्राप्त किया. इस पाठ को करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है.
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दुर्गासप्तशती के पाठ का महत्व
- दुर्गासप्तशी का पाठ करने वाले व्यक्तियों को अपने मन को एकाग्र करके प्रतिदिन नियमों का पालन करना आवश्यक है. इसमें शुद्ध भोजन करना, लाल वस्त्र पहनना, ललाट पर भस्म या लाल चंदन लगाना और एक समय भोजन करना शामिल है. यदि संभव हो, तो फलाहार करना भी उचित है.
- दुर्गासप्तशी का पाठ आरंभ करने से पहले गणेश जी और अपने कुलदेवता की पूजा करनी चाहिए. यदि कलश की स्थापना की गई है, तो उसका भी पूजन करें. इसके बाद माता को भोग अर्पित करके पाठ की शुरुआत करें.
- पाठ करने वाले को यह ध्यान रखना चाहिए कि पुस्तक को रखते समय दुर्गासप्तशी को लाल कपड़े में लपेटकर केले के पत्ते पर रखा जाए. पाठ आरंभ करने से पहले पुस्तक का पूजन करना आवश्यक है, फिर पाठ की प्रक्रिया शुरू करें.
- दुर्गासप्तशती में कुल 13 अध्याय और 700 श्लोक शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, इसमें कुछ विशेष पाठ भी हैं, जिनका पालन करने से व्यक्ति की जीवन में उपस्थित समस्याएँ दूर होती हैं और सभी कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होते हैं.
- यदि आप दुर्गासप्तशती का सम्पूर्ण पाठ नहीं कर सकते, तो आप चरित्र पाठ कर सकते हैं, जो पूरे पाठ का सारांश है. यह पाठ तीन भागों में विभाजित है: प्रथम चरित्र, मध्य चरित्र, और उत्तर चरित्र. यदि आप इन भागों को भी नहीं कर पाते हैं, तो आप केवल अध्याय पाठ कर सकते हैं.
- दुर्गासप्तशती का पाठ करते समय ध्यान रखें कि उच्चारण में सावधानी बरतें, ताकि कोई गलती न हो.
- पाठ आरंभ करने से पहले कवच, अर्गला, और कीलक का पाठ अवश्य करें. पाठ करते समय अधूरा छोड़कर नहीं उठें, क्योंकि इससे पाठ का फल प्राप्त नहीं होता है.
- पाठ समाप्त होने के पश्चात सिद्धिकुंजिका का पाठ करें, फिर नवार्ण मंत्र का जाप करें, उसके बाद पूजन की आरती करें और शंख बजाएं, तथा माता का आशीर्वाद प्राप्त करें.
- पाठ के दौरान यदि कोई भूल या चूक हो जाती है, तो आरती के बाद क्षमा प्रार्थना का पाठ करें और दोनों हाथ जोड़कर माता से निवेदन करें कि मेरे द्वारा किए गए अपराधों को क्षमा करें.