Akshaya Navami Katha in hindi: आंवला नवमी, जिसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का बहुत ही शुभ और पवित्र दिन माना जाता है. यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व होता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भक्त व्रत रखता है और पूजा करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे कभी किसी बड़े संकट का सामना नहीं करना पड़ता. ‘अक्षय’ शब्द का अर्थ ही होता है – जो कभी नष्ट न हो. इसलिए कहा जाता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य, व्रत और पूजा का फल कभी समाप्त नहीं होता.
अक्षय नवमी की कथा
बहुत समय पहले की बात है, यमुना नदी के किनारे बसे एक गांव में राम शर्मा नाम के एक ब्राह्मण रहते थे. वे बहुत ही दयालु, मेहनती और धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति थे. जरूरतमंदों की मदद करना, दान देना और भगवान की पूजा करना उनका नित्य काम था.
ब्राह्मण के दो बेटे थे – कृष्ण और धनञ्जय. जब ब्राह्मण बूढ़े हो गए, तो उन्होंने घर की जिम्मेदारी अपने बेटों को सौंप दी और खुद वन में जाकर भगवान की साधना करने लगे. कुछ समय बाद वन में ही उनकी मृत्यु हो गई. पिता की मृत्यु के बाद दोनों बेटे गलत राह पर चल पड़े. उन्होंने अपने पिता की कमाई हुई सारी संपत्ति भोग-विलास, शराब और व्यर्थ के कामों में बर्बाद कर दी. जब घर में कुछ भी नहीं बचा तो वे चोरी और डकैती करने लगे. एक दिन वे रात में चोरी कर रहे थे कि राजा के सिपाहियों ने उन्हें पकड़ लिया. राजा ने दोनों को सजा दी और राज्य से बाहर निकाल दिया. मजबूर होकर दोनों भाई जंगल में रहने लगे. लेकिन दुर्भाग्यवश, एक दिन वहां एक सिंह ने उन दोनों को मार डाला.
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यमलोक में न्याय
मरने के बाद दोनों भाई यमलोक पहुंचे. वहाँ चित्रगुप्त ने उनके जीवन के सारे कर्मों का हिसाब देखा. उन्होंने आदेश दिया कि कृष्ण को नरक भेजा जाए और धनञ्जय को स्वर्ग.धनञ्जय को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ. उसने यमदूत से कहा – “हम दोनों ने तो एक साथ ही पाप किए थे, फिर मेरे भाई को नरक और मुझे स्वर्ग क्यों?”
इस पर यमदूत ने कहा – “हे धनञ्जय, हर व्यक्ति का फल उसके कर्मों के अनुसार ही मिलता है, रिश्तों के अनुसार नहीं. तुम्हारे पिछले जन्म के पुण्य कर्मों के कारण तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो रही है.” फिर यमदूत ने बताया कि एक बार कार्तिक महीने में तुम अपने गुरु के साथ यमुना नदी के किनारे गए थे. वहाँ तुमने शुक्ल पक्ष की नवमी, दशमी और एकादशी को स्नान और व्रत किया था. उसी पुण्य के कारण आज तुम्हें अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति हुई है.
भाई के उद्धार की भावना
धनञ्जय को यह सुनकर अपने भाई कृष्ण के लिए बहुत दुख हुआ. उसने पूछा – “क्या कोई तरीका है जिससे मेरा भाई नरक से मुक्त हो जाए?” तब यमदूत ने कहा – “तुमने अपने पिछले जन्म में कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन वस्त्र, स्वर्ण, रत्न और कूष्माण्ड (कद्दू) का दान किया था. उस पुण्य से तुम्हें जो फल मिला है, वह बहुत दुर्लभ है. यदि तुम चाहो तो वह पुण्य अपने भाई को दान कर सकते हो.” धनञ्जय ने बिना झिझक अपना सारा पुण्य अपने भाई कृष्ण को दान कर दिया. उस पुण्य के प्रभाव से कृष्ण नरक से मुक्त हो गया. अंत में दोनों भाइयों को भगवान विष्णु के परम धाम की प्राप्ति हुई.
आंवला नवमी का महत्व
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी यानी अक्षय नवमी का व्रत करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन वस्त्र, रत्न, सोना, अन्न और कूष्माण्ड (कद्दू) का दान करना बहुत शुभ माना गया है. नारद मुनि ने भी कहा है कि जो व्यक्ति इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है. इसलिए इस दिन आंवला पूजा का विशेष महत्व है.
क्यों की जाती है आंवले के पेड़ की पूजा?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण कर रही थीं. उन्हें अपने पति भगवान विष्णु और भगवान शिव, दोनों की एक साथ पूजा करने की इच्छा हुई. वे सोचने लगीं कि ऐसा कौन-सा स्थान या वृक्ष है, जहाँ दोनों देवता एक साथ निवास करते हैं. तभी उन्हें ज्ञात हुआ कि आंवले का वृक्ष ऐसा पवित्र वृक्ष है, जिसके तने और शाखाओं में भगवान विष्णु का वास है और पत्तों व फलों में भगवान शिव निवास करते हैं. इसलिए माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की और कहा कि जो भी भक्त इस वृक्ष की पूजा करेगा, उसे धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होगी. तब से हर साल कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाने लगा.
आंवला नवमी की पूजा विधि
- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें.
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें.
- फिर आंवले के पेड़ के पास जाएं, उसके तने पर जल चढ़ाएं और रोली, चावल, फूल और दीपक अर्पित करें.
- फिर पेड़ के चारों ओर सात बार परिक्रमा करें और भगवान विष्णु से सुख-समृद्धि और आरोग्य की प्रार्थना करें.
- इसके बाद ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन और दान दें.
आंवला नवमी का व्रत न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्रकृति और पेड़ों के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है. आंवला पेड़ को आयुर्वेद में भी बहुत गुणकारी माना गया है. इसकी पूजा से जीवन में सकारात्मकता, स्वास्थ्य और समृद्धि आती है. इसलिए इस दिन अगर हम सच्चे मन से भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और आंवले के पेड़ की पूजा करें, तो हमारा जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर जाता है. यही कारण है कि इस दिन को “अक्षय नवमी” कहा जाता है – यानी वह दिन, जब किया गया पुण्य कभी नष्ट नहीं होता.

