जब आपका दिल, दिमाग की चालाकियों से नहीं भरा होता, तब प्रेम से भरा होता है. अकेला प्रेम ही है जो निवर्तमान दुनिया के पागलपन, उसकी भ्रष्टता को खत्म कर सकता है. प्रेम के सिवा, कोई भी संकल्पना, सिद्धांत, वाद दुनिया को नहीं बदल सकते. आप तभी प्रेम कर सकते हैं, जब आप आधिपत्य करने की कोशिश नहीं करते, लालची नहीं होते. जब आप में लोगों के प्रति आदर होता है, करुणा होती है, हार्दिक स्नेह उमड़ता है, तब आप प्रेम में होते हैं.
जब आप अपनी पत्नि, प्रेमिका, अपने बच्चों, अपने पड़ोसी, अपने बदकिस्मत सेवकों के बारे में सद्भावपूर्ण ख्यालों में होते हैं, तब आप प्रेम में होते हैं.
प्रेम ऐसी चीज नहीं जिसके बारे में सोचा-विचारा जाये, कृत्रिम रूप से उसे उगाया जाये, प्रेम ऐसी चीज नहीं जिसका अभ्यास करके सीखा जाये. प्रेम, भाईचारा आदि सीखना दिमागी बाते हैं, प्रेम कतई नहीं. जब प्रेम, भाईचारा, विश्वबंधुत्व, दया, करुणा और समर्पण सीखना पूर्णतः रुक जाता है, बनावटीपन ठहर जाता है, तब असली प्रेम प्रकट होता है. प्रेम की सुगंध ही उसका परिचय होता है.
बिना प्रेम के आप कुछ भी करें, समाज सुधार करें, भूखों को खिलायें, आप और अधिक पाखंड में पड़ेंगे.
– जे कृष्णमूर्ति