मानसिक स्वास्थ्य की साधना का एक और सूत्र है- परिणामों की स्वीकृति. हम प्रवृत्ति करते हैं, किंतु उसके परिणामों को स्वीकार नहीं करते और इसलिए मन में असंतोष और अशांति पैदा होती है.
कृत के परिणामों से जहां अपने-आपको बचाने की मनोवृत्ति होती है, वहां मानसिक स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाता है. रोग का एक कीटाणु उसमें घुस जाता है. परिणामा को स्वीकार करने के लिए मन बहुत शक्तिशाली चाहिए.
जो मन शक्तिहीन होता है, वह कभी परिणामों को स्वीकार नहीं कर सकता. हम अच्छे या बुरे-सभी प्रकार के परिणामों को स्वीकारना चाहिए. जिस व्यक्ति में परिणामों को स्वीकार करने का साहस नहीं होता, वह परिणामों को दूसरे के माथे मढ़ देता है.
स्वयं बच निकलना चाहता है. यदि परिणाम अच्छा है, तो उसका श्रेय स्वयं लेना चाहेगा और यदि बुरा है, तो उसका अश्रेय दूसरे पर उड़ेल देगा. यह साहसहीनता है. इससे मन मलिन होता है, बीमार होता है.
साहस होगा, तभी कोई व्यक्ति सत्य के प्रति समर्पण करेगा. सत्य की व्याख्या बहुत ही जटिल है. किसे सत्य माना जाये? हमें इसमें उलझना नहीं चाहिए. सत्य का अर्थ है-सार्वभौम नियम. मृत्यु एक सार्वभौम नियम है, यह एक बड़ी सच्चई है.
कोई भी इसे टाल नहीं सकता. इस दुनिया में र्तीथकर, भगवान, अर्हत्, मसीहा आदि-आदि अनेक व्यक्ति हुए हैं, किंतु वे भी इस शाश्वत नियम को नहीं टाल पाये.
आचार्य महाप्रज्ञ