सप्ताह में एक बार समय निकाल कर किसी एकांत स्थान में चार कागज लेकर बैठ जाओ. पहले कागज पर अपने सामथ्र्यो, अपने गुणों को लिखो. दूसरे कागज पर अपनी कमजोरियों को लिखो. तीसरे कागज पर अपनी महत्वाकांक्षाओं, अभिलाषाओं और अपेक्षाओं को लिखो. चौथे कागज पर अपनी आवश्यकताओं को लिखो. ये तुम्हारे जीवन की वास्तविक आवश्यकताएं होनी चाहिए, कामनाएं नहीं. इस सूची को कालांतर में बढ़ाते जाओ.
यह काम एक दिन में पूरा नहीं होगा. तुम अपने सामथ्र्यो, कमजोरियों, महत्वाकांक्षाओं व आवश्यकताओं का विश्लेषण करो. इसमें समय जरूर लगेगा, लेकिन धीरे-धीरे तुम अपने स्वभाव और चरित्र के बारे में बहुत कुछ जानने लगोगे. तुम अपने सामथ्र्यो के प्रति सजग बनोगे और जीवन की ऐसी परिस्थितियों में, जहां तुम्हारी कमजोरियां उजागर होती हैं, वहां तुम उन कमजोरियों के प्रतिपक्ष सामथ्र्यो का प्रयोग कर उन परिस्थितियों का बेहतर ढंग से सामना कर पाओगे.
यह ज्ञानयोग का व्यावहारिक अभ्यास है. ज्ञानयोग मात्र यह प्रश्न करना नहीं है कि मैं कौन हूं, बल्कि अपनी त्रुटियों को पहचान कर उन्हें सुधारने का प्रयास है, अपने सामथ्र्यो को पहचान कर उन्हें विकसित करने का प्रयत्न है. जब तुम इस प्रकार सूची बना लेते हो, तो एक सप्ताह के लिए किसी एक सामर्थ्य और किसी एक कमजोरी को चुन लो.
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती