एक बार भगवान चैतन्य बनारस में हरे कृष्ण महामंत्र के कीर्तन का प्रवर्तन कर रहे थे, तो हजारों लोग उनका अनुसरण कर रहे थे. तत्कालीन बनारस के अत्यंत प्रभावशाली व विद्वान प्रकाशानंद सरस्वती उनको भावुक कह कर उनका उपहास करते थे.
कभी-कभी भक्तों की आलोचना दार्शनिक यह सोच कर करते हैं कि भक्तगण अंधकार में हैं और दार्शनिक दृष्टि से भोले-भाले भावुक हैं, किंतु यह तथ्य नहीं है. ऐसे अनेक विद्वान पुरुष हैं, जिन्होंने भक्ति का दर्शन प्रस्तुत किया है. किंतु यदि कोई भक्त उनके इस साहित्य का या अपने गुरु का लाभ न भी उठाये और वह अपनी भक्ति में एकनिष्ठ रहे, तो उसके अंतर से कृष्ण स्वयं उसकी सहायता करते हैं. अत: कृष्णभावनामृत में रत एकनिष्ठ भक्त ज्ञानरहित नहीं हो सकता. इसके लिए इतनी ही योग्यता चाहिए कि वह पूर्ण कृष्णभावनामृत में रह कर भक्ति करे.
आधुनिक दार्शनिकों का विचार है कि बिना विवेक के शुद्ध ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता. उनके लिए भगवान का उत्तर है- जो लोग शुद्धभक्ति में रत हैं, भले ही वे पर्याप्त शिक्षित न हों तथा वैदिक नियमों से पूर्णतया अवगत न हों, किंतु भगवान उनकी सहायता करते ही हैं.
भगवान अर्जुन को बताते हैं कि मात्र चिंतन से परम सत्य भगवान को समझ पाना असंभव है, क्योंकि भगवान इतने महान हैं कि कोरे मानसिक प्रयास से उन्हें नहीं जाना जा सकता.
स्वामी प्रभुपाद