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शिव का वरदान है 12 ज्योतिर्लिंग
1) श्री सोमनाथ : गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित यह ज्योतिर्लिग ऐतिहासिक महत्व रखता है. यहां रेल और बस से जा सकते हैं. रेल वेरावल तक जाती है. सोमनाथ के वर्तमान मंदिर का उद्घाटन देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा किया गया था. सौराष्ट्र देशे विशवेùतिरम्ये, ज्योतिर्मय चंद्रकलावतंसम्। भक्तिप्रदानाय कृतावतारम्तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।। […]
1) श्री सोमनाथ : गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित यह ज्योतिर्लिग ऐतिहासिक महत्व रखता है. यहां रेल और बस से जा सकते हैं. रेल वेरावल तक जाती है. सोमनाथ के वर्तमान मंदिर का उद्घाटन देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा किया गया था.
सौराष्ट्र देशे विशवेùतिरम्ये, ज्योतिर्मय चंद्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृतावतारम्तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।
(2) श्री मल्लिकाजरुन : यह ज्योतिर्लिग आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में श्रीशैल पर्वत पर स्थित है. इस पर्वत को दक्षिण का कैलास भी कहते हैं. बिनूगोडा-मकरपुर रोड तक रेल से जा सकते हैं. यह स्थान कृष्णा नदी के तट पर है.
श्री शैलश्रृंगे विवधिप्रसंगे, शेषाद्रीश्रृंगेùपि सदावसंततम्।
तमजरुनं मल्लिकाजरुनं पूर्वमेकम्, नमामि संसारसमुद्रसेतुम्।।
(3) श्री महाकालेश्वर : मध्यप्रदेश के उज्जैन में यह ज्योतिर्लिग स्थित है. नागदा, भोपाल एवं इंदौर से यहां तक रेल है. ये तीनों स्थान देश के सभी महानगरों से रेल से जुड़े हुए हैं. ये शिप्रा नदी के तट पर है.
अवंतिकाया विहितावतारम् मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थम्, वंदे महाकाल महासुरेशम्।।
(4) श्री ओंकारेश्वर : यह ज्योतिर्लिग भी मध्यप्रदेश में नर्मदा किनारे स्थित है. इंदौर-खंडवा रेलमार्ग पर ओंकारेश्वर रोड स्टेशन है. यहां से ओंकारेश्वर 12 किमी है. यहां पर विंध्य पर्वत ने शिवजी की आराधना की थी.
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रसमागे सज्जनतारणाय।
सदैव मांधातृपुरे वसंतम् ओंकारमीशं शिवमेकमीडे।।
(5) श्री केदारनाथ : भगवान शिव यह यह अवतार उत्तराखंड के हिमालय में लगभग 12 हजार फुट की ऊंचाई पर है. ऋषिकेश तक रेल से जा सकते हैं. इसके बाद गौरीकुंड तक बस से जाना पड़ता है, फिर पहाड़ी मार्ग से पैदल या टट्टू पर. हिमालय को शिवजी की क्रीड़ास्थली माना गया है.
हिमाद्रीपाश्व्रे च समुल्लसंतम् सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रै:।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै:, केदारसंज्ञं शिवमीशमीडे।
(6) श्री भीमाशंकर : महाराष्ट्र की सह्याद्री पर्वतमाला में भीमा नदी के तट पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है. नासिक से यह स्थान 180 किलोमीटर पड़ता है. यहां पर भगवान शिव ने भीमासुर राक्षस का वध किया था. पुणो के पास तलेगांव से भी यहां जा सकते हैं.
यो डाकिनीशाकिनिकासमाजै: निषेव्यमाण:
पिशतिशनेश्च।
सदैव भीमेशपद्प्रसिद्धम्, तं शंकरं भक्तहितं नमामि।
(7) श्री विश्वनाथ : यह ज्योतिर्लिंग उत्तरप्रदेश के वाराणसी में है. यह स्थान रेल से देश के लगभग सभी भागों से जुड़ा है. इसे बनारस या काशी भी कहते हैं. यह गंगा के तट पर है. कहते हैं- वाराणसी की सीमा में जो व्यक्ति अपने प्राण त्यागता है, वह इस संसार के जंजाल से मुक्त हो जाता है, क्योंकि भगवान विश्वनाथ स्वयं उसे मरते समय तारक मंत्र सुनाते हैं.
सानंदमानंदवने वसंतमानंदकंदं हतपापवृंदम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथम्, श्री विश्वनाथं शरणं प्रपद्ये।।
(8) श्री त्र्यम्बकेश्वर : यह ज्योतिर्लिग महाराष्ट्र के नासिक से 25 किमी दूर गोदावरी नदी के तट पर है. यह स्थान महर्षि गौतम और उनकी पत्नी गौतमी से जुड़ा है.
सह्याद्रीशीर्षे विमले वसंतम्,
गोदावरीतीरपवित्रदेशे।
यद्यर्शनात् पातकपाशु नाशम्, प्रयाति त्र्यम्बकमीशमीडे।
(9) श्री वैद्यनाथ : यह ज्योतिर्लिग झारखंड के देवघर में स्थित है. कहते हैं- रावण ने घोर तपस्या कर शिव से एक लिंग प्राप्त किया जिसे वह लंका में स्थापित करना चाहता था, परंतु ईश्वर लीला से वह लिंग वैद्यनाथ में ही स्थापित हो गया।
पूवरेत्तरे पारलिकाभिधाने, सदाशिवं तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मम्, श्री वैद्यनाथं सततं नमामि।।
(10) श्री नागेश्वर : महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में हिंगोली नामक स्थान से 27 किमी दूर यह ज्योतिर्लिंग है. यहां दारूक वन में निवास करने वाले दारूक राक्षस का नाश सुप्रिय नामक वैश्य ने भगवान शिव द्वारा दिए गए पाशुपतास्त्र से किया था.
याम्ये सदंगे नगरेùतिरम्ये, विभूषिताडं विविधैश्च भोगै:।
सद्भक्ति मुक्ति प्रदमीशमेकम्, श्री नागनाथं शरणं प्रपद्यै।।
(11) श्री रामेश्वरम् : इस ज्योतिर्लिंग का संबंध भगवान राम से है. राम वानर सेना सहित लंका आक्रमण हेतु देश के दक्षिणी छोर पर आ पहुंचे. यहां पर श्रीराम ने बालू का शिवलिंग बनाकर शिव की आराधना की और रावण पर विजय हेतु शिव से वरदान मांगा. रामेश्वरम् तमिलनाडु में स्थित है. यहां बस और रेल दोनों से जा सकते हैं.
श्री ताम्रपर्णीजलराशियोगे, निबध्य सेतु निधि बिल्वपत्रै:।
श्रीरामचंद्रेण समर्पितं तम्, रामेश्वराख्यं सततं नमामि।।
(12) श्री घृष्णोश्वर : महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में दौलताबाद के पास विश्वप्रसिद्ध अजंता-एलोरा की गुफाएं हैं. यहीं पर ज्योतिर्लिंग स्थित है. कहते हैं- घृष्णोश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से वंशवृद्धि होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इलापुरे रम्यशिवालये स्मिन, समुल्लसंतम त्रिजगद्वरेण्यम्।
वंदेमहोदारतरस्वभावम्, सदाशिवं तं घृषणोश्वराख्यम्।।
देवघर
श्रावणी-शिव-शांति
वर्ष के प्रत्येक मास का महत्व है जिनका संबंध प्राणियों को किसी न किसी रूप में सहायता पहुंचाना है. यह धरातल के सभी भागों को प्रभावित करता है. सकारात्मक रूप से और कभी कभी नकारात्मक भी.
श्रवण अगर सकारात्मक है-अपनी प्रवृत्तियों के साथ अर्थात आकाश, बादलों से भरा-भरा, रिमङिाम वर्षा, नदी, तालाब, कुएं, ताल-तलैया में पर्याप्त जल, वर्षाजनित जीव-जंतु तो इसका प्रत्यक्ष संबंध शिव एवं शांति से रहता है. सुखाड़, हरियाली का अभाव, आकाश साफ-साफ श्रवण की मर्यादा से विपरित है.
यदि जल ही जीवन है तो श्रवण विशेष कर भारतवर्ष के संदर्भ में उसका आधार है. शिव श्रवण में अत्यधिक खुश रहते हैं, दिखते हैं.
शिव की पूजा में जल का प्रवेश अर्थात जलापर्ण सबसे उत्तम माना जाता है और फिर गंगा जल है तो मानो शिव मिल गये. यही कारण है कि लोग गंगाजल से जलार्पण करना शुभ मानते हैं, भले ही उन्हें मीलों चलना पड़े. व्रती एवं भक्त इससे च्युत नहीं होते. यह मात्र संयोग नहीं है कि अधिकांश ज्योतिर्लिग नदियों या फिर समुद्र के किनारे अवस्थित है. यथा-
केदारनाथ- मंदाकिनी नदी
विश्वनाथ- गंगा नदी
महाकाल- शिप्रा
ओंकारेश्वर – नर्मदा
त्र्यम्बकेश्वर – गोदावरी
भीमाशंकर – भीमा नदी
घृणोश्वर – ताप्ती की शाखा
सोमनाथ – समुद्र की नजदीकता के साथ
रामेश्वर – हिंद महासागर
मल्लिकाजरुन – कृष्णा नदी के पास पहाड़ पर
बैद्यनाथ- गंगा नदी से 105 किलोमीटर दूरी
जब तीर्थ भक्त जाह्न्वी गंगा से जल भर कर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिग के लिए चलते हैं तो पूरा मार्ग ही शिवमय हो जाता है अर्थात भगवान जगह-जगह बैठे, खड़े भक्तों को आशीष प्रदान कर रहे हैं.
इसका इति बैद्यनाथ मंदिर में होता है. भक्तों की दृढ़ इच्छा शक्ति उन्हें घंटों और कभी-कभी दिनों तक इंतजार करने की प्रेरणा एवं शक्ति प्रदान करता है. यह एक प्रमाण है शिव के एवं श्रवण मास के प्रति लोगों की आस्था एवं समर्पण का. शिव के प्रकृति के बारे में
कहा गया है-कल्याण प्रकृति सर्वलोप्रजापति।
तपस्वी तारको धीमान प्रधान प्रभुरव्यय: ।।
यह मात्र संयोग नहीं है कि ऋग्वेद, वरुण, इंद्र, सूर्य, अगिA, आकाश इत्यादि को आह्वान करने की प्रेरणा देता है. जब इंद्र एवं वरुण की आराधना लेती है तो वह जल को द्योतक होता है मनुष्य की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक अस्तित्व इसी जल पर आश्रित है.
शिव तो साक्षी है श्रवण के महत्व को जताने के लिए जीवों के विकास एवं प्रजनन प्रक्रिया के लिए. जहां एक ओर शिव निष्ठा के, समर्पण की प्रेरणा देते हैं. वहीं विश्व एवं ब्रह्मांड चलायमान रहे- श्रवण को अग्रणी बताते हैं-विशेष कर भारत के संदर्भ में.
शिव की प्रवृति है-कल्याण, समर्थ, भक्तिभाव, शांतभाव, शुभचिंतक, वेगशाली, उद्धारक एवं निर्मल बुद्धि.
यथा गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में
निर्मलजन जो मोहि पावा।
मोह, कपट, छल, छिद्र न भावा।।
यही तो शांति है और इसका संदेश भी. शांति तो शिव के अपार गुणों में अग्रणी गुण है तभी तो यजुर्वेद शांति प्राप्ति के लिए वंदना करता है-हे प्रभो। यह सौरमंडल और अंतरिक्ष सुख, शांतिदायक हो, भूमंडल सुख-शांतिदायक हों, विश्व के दिव्य पदार्थ और ब्रrा सुख-शांति हो.
– योगेंद्र झा
सेवानिवृत्त कल्याण आयुक्त
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