दधाना करपद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतुमिय ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।
जो दोनों करकमलों में अक्षमाला और कमण्डलू धारण करती हैं, वे सर्वश्रेष्ठा ब्रह्मचारिणी दुर्गादेवी मुझपर प्रसन्न हों.
जगतजननी महाशक्ति दुर्गा-2
वेद द्विविध लक्षणों द्वारा ब्रह्मा का निरूपण करता है. सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म यह ब्रह्म का स्वरूप लक्षण है. यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते आदि ब्रह्म का तटस्थ लक्षण है. अर्थात वेद के अनुसार जिससे अनंत ब्रह्मंड की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय हो उसे ब्रह्म समझना चाहिए. महाशक्ति स्वरूपिणी दुर्गा भी ब्रह्म रूप ही है. देवीभागवत की भगवती, विष्णु पुराण के विष्णु, शिवपुराण के शिव, श्रीमद्भागवत के श्रीकृष्ण, रामायण के मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम- इन पांचों में वेदोक्त ब्रह्म का लक्षण होने के कारण ये ब्रह्म ही हैं.
जिस प्रकार एक ही पदार्थ नाम-रूप के से भेद से अनेक प्रतीत होता है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी इसी बात को रामचरित मानस में प्रकट किया है-जथा अनेक वेष धरि नृत्य करइ नट कोइ।
गोस्वामीजी ने अपनी किशोरी जी को ब्रह्मरूप सिद्ध किया है..
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोअहं रामवल्लभाम।।
श्रीमद्भागवत में भी उसी ब्रह्म को हरि, विरचिं, शंकर के नामों से अभिहित किया है- स्थित्यादये हरि विरंचि हरेते संज्ञा:। नृसिंह-तापनीय उपनिषद में भी कहा गया है-एषा नारसिंही सर्विमदं सृजति, सर्वमिदं रक्षति,सर्वमिदं संहरित। अर्थात अनंत ब्रह्मंड जननी राजराजेश्वरी षोड़शी, महाषोड़शी, महात्रिपुरसुंदरी भगवती ही अनंत ब्रह्मंडों का सृजन, पालन तथा संहरण करती है. स्कंदपुराण में भी भगवतीका ब्रह्मस्वरूप स्वीकार किया गया है..
परा तु सच्चिदानन्दरूपिणी जगदम्बिका।
सर्वाधिष्ठानरूपा स्याज्जगदभान्तिश्र्चिदात्मनि।।
अर्थात सच्चिदान्दरूपा जगदंबा ही समस्त विश्व की अधिष्टानभूता है. उसी भगवती से जगत की भ्रांति होती है.
देवीभागवत में भी भगवती को सगुण-निर्गुण उभय रूप से स्वीकार किया गया है.अन्यत्र भी भगवती को-
सा च ब्रह्मस्वरूपा च नित्या सा च सनातनी।
यथात्मा च तथा शक्तिर्यथासौ दाहिका स्थिता।।
उसी शक्ति को विभिन्न दृष्टियों से विद्वानों ने स्वीकार किया है-अर्थात कोई इसे तप कहते हैं, कोई तम, जड़, ज्ञान, माया, प्रधान, प्रकृति, शक्ति, अजा, विमर्श,अविद्या कहते हैं.
(क्रमश:) प्रस्तुति-डॉ.एनके बेरा