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स्थायी तत्व नहीं है मन

स्थिरता के साथ मानव-मन का कोई संबंध नहीं है. चंचलता का दूसरा नाम तो मन की सक्रियता है. चंचलता के बिना मन का कोई अस्तित्व ही नहीं है. इसीलिए मन के संबंध में कहा गया है- जो कुछ मनन किया जा रहा है, वही मन है. यह मनन-काल से पहले भी नहीं होता और बाद […]

स्थिरता के साथ मानव-मन का कोई संबंध नहीं है. चंचलता का दूसरा नाम तो मन की सक्रियता है. चंचलता के बिना मन का कोई अस्तित्व ही नहीं है. इसीलिए मन के संबंध में कहा गया है- जो कुछ मनन किया जा रहा है, वही मन है. यह मनन-काल से पहले भी नहीं होता और बाद में भी नहीं होता. जिस समय उत्पन्न होता है, उसी समय यह मन है. हमारे मन का संचालन चित्त करता है. चित्त भी चेतना का ही एक स्तर है.
स्थूल शरीर के साथ काम करने वाली चेतना चित्त है और मस्तिष्क के साथ काम करनेवाले चित्त का उपकरण मन है. जब तक मन है, चंचलता का भी अस्तित्व है. मन को उत्पन्न मत करो, चंचलता की उत्पत्ति नहीं होगी. लेकिन जब कभी मन सक्रिय होता है, तब स्मृतियां अधिक होती हैं, कल्पनाएं अधिक होती हैं और चिंतन अधिक होता है. स्मृति, कल्पना और चिंतन की अधिकता ही अशांति पैदा करती है. अशांति को कम करने का उपाय है- चंचलता की कमी. चेतना के इस स्तर पर नियंत्रण का सारा भार मन पर ही हो, तब तो बड़ी अव्यवस्था हो सकती है.
क्योंकि स्मृति, कल्पना और चिंतन में ही तो मन का अस्तित्व है. जो स्थिति मन के अस्तित्व को बनाये रखती है, उसे वह कम क्यों करेगा? और कैसे करेगा? जहां तक मन का अपना वश चलता है, वह स्मृति, कल्पना और चिंतन को बढ़ाता है. इसलिए नियंत्रण का काम मन नहीं कर सकता. मन स्थायी तत्व है ही नहीं. वह एक प्रकार का प्रवाह है. उत्पन्न होना और विलीन होना उसकी नियति है.
आचार्य तुलसी

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