लोकगीतों की बिना छठ का त्योहार अधूरा है. सामूहिकता और पावनता इस लोकपर्व के प्रमुख तत्व हैं. छठ गीतों का गायन महिलाएं सामूहिक रूप से करती हैं और गीतों के माध्यम से ही छठ पर्व से जुड़ी आस्था और इसकी पवित्रता का बखान करती हैं. यह कहना है बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका नीतू कुमारी नवगीत का. छठ और इसके लोकगीतों की चर्चा करते हुए वह कहती हैं कि इनमें एक विशेष प्रकार की पवित्रता और सामूहिकता होती है. प्रकृति के हर अंग में संगीत है.
छठ प्रकृति से जुड़ा हुआ त्योहार है इसलिए छठ गीतों की जगह फूहड़ गीतों को नहीं दी जानी चाहिए. हमें अपने-अपने दिल में छठ गीतों के पारंपरिक रूप को ही सहेज कर रखना चाहिए. उन्होंने बताया कि गंगा के तीरे करब छठ के बरतिया हो … उनका नया छठ गीत है जिसे लोग पसंद कर रहे हैं. छठ गीतों को लेकर उनके चार गीत रिलीज हुए हैं. इन गीतों में छठ और लोकजीवन की आस्था को महसूस किया जा सकता है.
छठ गीत…
नीतू कुमारी नवगीत
लोकगायिका व लेिखका
हे गंगा मईया
सुनल अरजिया हमार, हे गंगा मईया
अईली हम तोहरे दुआर, हे गंगा मईया
न दीह सोना-चांदी
न दीह हीरा-मोती
मोहे दिहे अचरा के प्यार, हे गंगा मईया
सुन ल…
माटी के पानी दीह
मानुज के अमृत
दीह
खुश रखिअ सब संसार, हे गंगा मईया
सुन ल. . . .
सुबे-शाम रोटी दीह
पढ़-लिखल बेटी दह
बेटवा हो सरवन कुमार, हे गंगा मईया
सुन ल अरजिया हमार, हे गंगा मईया
पटना सहरिया हो…
गंगा के तीरे करब छठ के बरतिया हो
चला चला चला बालम पटना सहरिया हो
मउनी मंगा दा बालम
सुपली दिला दा बालम
चाही एगो बांस के डगरिया हो
गंगा के तीरे करब छठ के बरतिया हो
चला चला चला बालम पटना सहरिया हो
नरियल मंगा दा बालम
केलवा दिला दा बालम
छठी घाटे पे हम पहनब नयका सरिया हो
गंगा के तीरे करब छठ के बरतिया हो
चला चला चला बालम पटना सहरिया हो
माटी मंगा दा बालम ,
गेहूंवा पिसा दा बालम
तु हूं पहिन ल बालम नयका पगरिया हो
गंगा के तीरे करब छठ के बरतिया हो
चला चला चला बालम पटना सहरिया हो