Table of Contents
Pashupati Paras : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक राजनीतिक हलचल चुनावी मैदान में हुई है, जिसके रचियता राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नेता पशुपति पारस हैं. पशुपति पारस ने सोमवार को यह ऐलान किया कि वे एनडीए से अलग हो रहे हैं. पशुपति पारस ने एनडीए गठबंधन से अलग होने का निर्णय क्यों किया और इसका बिहार चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
2024 के लोकसभा चुनाव के वक्त ही तैयार हो गई थी भूमिका
2024 के लोकसभा चुनाव के वक्त ही यह तय हो गया था कि पशुपति पारस ज्यादा दिनों तक बीजेपी या एनडीए के साथ नहीं रहेंगे. इसकी वजह यह थी कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में पशुपति पारस की पार्टी को एक भी टिकट नहीं दिया, जबकि चिराग पासवान की पार्टी को पांच टिकट दिए थे. इस वजह से पार्टी में नाराजगी थी और उन्हें ऐसा लग रहा था कि एनडीए ने उनको सम्मान नहीं मिला है. अब जबकि बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं और पार्टी को लेकर बीजेपी और एनडीए गठबंधन का रवैया बदला नहीं है. इन हालात में पार्टी ने एनडीए से टूट चुके संबंध को तोड़े जाने की घोषणा कर दी है.
एनडीए ने पशुपति पारस और उनकी पार्टी का अपमान किया : श्रवण अग्रवाल
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल का कहना है कि एनडीए से अलग होने का जो फैसला पशुपति पारस ने अभी लिया है उसे लोकसभा चुनाव के वक्त ही ले लिया जाना चाहिए था. एनडीए गठबंधन में लगातार पशुपति पारस और उनकी पार्टी का अपमान हुआ, जबकि पशुपति पारस और उनकी पार्टी ने पूरी निष्ठा से एनडीए का साथ दिया. लेकिन हम कितने दिनों तक अपमान सह सकते हैं, एक राजनीतिक दल साधु की तरह व्यवहार को नहीं कर सकती है. यही वजह है कि पशुपति पारस ने एनडीए से नाता तोड़ा है. लोकसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान को तरजीह दी गई, जबकि उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए के विरुद्ध प्रचार किया था, हम एनडीए के साथ खड़े थे, लेकिन हमें दरकिनार किया गया और अपमान किया गया. अगले छह महीनों में विधानसभा चुनाव होना है, कितना अपमान सहेंगे. चुनाव पांच साल में एक बार होता है, यह महापर्व है इसलिए हमने एनडीए से अलग होने का फैसला किया है. पार्टी का कहना है कि जब लोकजनशक्ति का बंटवारा हुआ और हमारे पास पांच सांसद थे, तो बीजेपी ने हमें तवज्जो दिया और पशुपति पारस को मंत्री पद भी मिला, लेकिन अब बीजेपी हमारे साथ यूज एंड थ्रो का व्यवहार कर रही है.
पासवान वोट हमारे पास, विधानसभा चुनाव में सबको पता चल जाएगा
रामविलास पासवान की पार्टी लोकजनशक्ति पार्टी में टूट उनके निधन के बाद हो गई थी. जून 2021 में पार्टी का विभाजन हो गया और लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी अस्तित्व में आई. लोकसभा चुनाव के वक्त एनडीए यानी बीजेपी ने चिराग पासवान गुट पर भरोसा किया और उन्हें अभी भी यही उम्मीद है कि दलित वोट चिराग पासवान के पास है इसलिए वे उन्हें तरजीह भी दे रहे हैं. राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नेता श्रवण अग्रवाल कहते हैं कि बिहार बीजेपी के नेता, जिनमें अध्यक्ष और प्रभारी शामिल हैं, उन्होंने बीजेपी के शीर्ष नेताओं को यह गलत जानकारी दी है कि बिहार में दलितों के वोट पर चिराग पासवान का दबदबा है. बिहार का दलित यह मानता है कि चिराग पासवान उनके नेता नहीं हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में यह स्पष्ट भी हो जाएगा. तारापुर और कुशेश्वर स्थान का जो उपचुनाव हुआ था उसमें यह पता भी चल गया था कि सच क्या है.
पशुपति पारस के फैसले में दम नहीं, बिहार विधान चुनाव पर नहीं होगा असर
एनडीए गठबंधन से अलग होने का जो फैसला पशुपति पारस ने लिया है उसका बिहार विधानसभा चुनाव पर कितना प्रभाव पड़ेगा और पशुपति पारस ने यह निर्णय क्यों किया है, इसपर बात करते हुए प्रभात खबर के राजनीतिक संपादक मिथिलेश कुमार ने कहा कि पशुपति पारस ने एनडीए को छोड़ने की घोषणा भले ही सोमवार को की हो, लेकिन सच्चाई यह है कि एनडीए और पशुपति पारस के बीच दूरी बढ़ गई थी. जहां तक बात बिहार विधानसभा चुनाव पर इस फैसले के प्रभाव की है, तो मुझे नहीं लगता है कि पशुपति पारस की पार्टी कोई बड़ा प्रभाव कायम कर पाएगी. हां, यह बात जरूर है कि अगर पशुपति पारस इंडिया गठबंधन के साथ गए, तो राजद को इसका फायदा मिलेगा क्योंकि यह विधानसभा चुनाव है और 250-500 वोट का भी बहुत महत्व है. इस लिहाज से देखें, तो पशुपति पारस का निर्णय चुनावी दंगल में भुनाने वाला प्रतीत होता है, क्योंकि पार्टी ने अभी यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी, वह अभी 243 सीटों पर चुनाव की तैयारी कर रही है, यानी पार्टी सभी विधानसभा क्षेत्र में जाएगी और अपनी ताकत को आजमाएगी और फिर चुनाव की घोषणा के बाद उस ताकत को भुनाएगी. पशुपति पारस ने अभी यह स्पष्ट नहीं किया है कि अब वे एनडीए के साथ नहीं आएंगे, बल्कि उन्होंने यह कहा है कि जहां सम्मान मिलेगा वे वहां जाएंगे. इस लिहाज से चुनाव में 10-15 सीट की डिमांड वे करेंगे, अभी की स्थिति में यह प्रतीत होता है.
Also Read : 277 लोगों की हत्या का आरोपी ब्रह्मेश्वर मुखिया राक्षस था या मसीहा, उसके आतंक की पूरी कहानी
बेलछी गांव में हुआ था बिहार का पहला नरसंहार, 11 दलित की हत्या कर आग में झोंक दिया गया था
पंबन ब्रिज और रामसेतु का है रामेश्वरम से खास नाता, क्यों सरकार ने बनाई थी रामसेतु को तोड़ने की योजना
विभिन्न विषयों पर एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए क्लिक करें