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Manoj Kumar : बॉलीवुड के भारत कुमार यानी मनोज कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे. उनका शुक्रवार को अहले सुबह 3:30 बजे मुंबई के कोकिलाबेन धीरुबाई अंबानी अस्पताल में निधन हो गया. मनोज कुमार का असली नाम हरिकिशन गोस्वामी था. अविभाजित भारत के एबटाबाद में उनका जन्म हुआ था, बंटवारे के बाद उनका परिवार दिल्ली आ गया था. 1957 में उन्होंने फैशन फिल्म से भारतीय सिनेमा में कदम रखा और पहचान मिली 1962 के फिल्म हरियाली और रास्ता से. भगत सिंह के जीवन पर बनी फिल्म शहीद से उन्होंने देशभक्ति की फिल्मों की शुरुआत की.
दिलीप कुमार की शबनम मूवी देखकर रखा था मनोज कुमार नाम
लेकिन जब 12 साल की उम्र में उन्होंने दिलीप कुमार की फिल्म शबनम देखी थी, तो उन्हें वह फिल्म इतनी पसंद आई थी कि उन्होंने यह तय कर लिया था कि अगर वे कभी फिल्मों में काम करेंगे, तो उनका नाम मनोज कुमार होगा. दरअसल शबनम फिल्म में दिलीप कुमार का नाम मनोज कुमार है. मनोज कुमार एक ऐसे एक्टर और डायरेक्टर थे, जिन्होंने अपने फिल्मों के जरिए बॉलीवुड को मजबूत किया. भारतीय सिनेमा को राष्ट्रवाद की देन उनकी ही थी.
मनोज कुमार और उनकी फिल्मों का राष्ट्रवाद

मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों के जरिए भारतीय सिनेमा में राष्ट्रवाद यानी देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण बनाया. उनकी लगभग सभी फिल्मों में यह भावना स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है. उनकी फिल्मों का राष्ट्रवाद एक आदर्श स्थिति को बयां करता है. वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज उनके बारे में बात करते हुए कहते हैं कि मनोज कुमार की फिल्मों में जो राष्ट्रवाद नजर आता है वह किसी एक पक्ष से प्रेरित नहीं है. वह समावेशी है. उन्होंने प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के कहने पर उपकार जैसी फिल्म जरूर बनाई, लेकिन उस फिल्म को देखिए उसमें पूरे देश की बात है, किसी एक पक्ष या संस्कृति की नहीं है. राष्ट्रवाद भारतीय सिनेमा को उनकी देन है. वे एक बेहतरीन लेखक, एक्टर और डायरेक्टर थे. आज उनके जैसी शख्सियत का मिलना मुश्किल है, जो खुद ही लिखता हो, एक्ट करता हो और डायरेक्ट भी करता हो. मनोज कुमार की एक बड़ी देन यह भी है कि उन्होंने शिरडी के साईं बाबा को स्थापित किया, उनकी फिल्म से पहले देश में उनकी स्वीकार्यता उतनी नहीं थी, जितनी उनकी फिल्म के बाद हुई.
देखें मनोज कुमार के देशभक्ति गीत
घोस्ट राइटिंग करते थे मनोज कुमार
मनोज कुमार को जो नहीं जानते हैं, उन्हें यह जानना चाहिए कि मनोज कुमार एक बेहतरीन लेखक थे. उन्होंने फिल्मों में स्थापित होने से पहले कई लोगों के लिए घोस्ट राइटिंग की और उसी से उनका खर्चा उसी से चलता था. प्रभात खबर से बात करते हुए अजय ब्रह्मात्मज बताते हैं कि इस बारे में कम लोग जानते हैं, लेकिन यह सच है कि वे एक बेहतरीन लेखक थे और शुरुआती दिनों में उन्होंने अपने लेखन को ही आजीविका का साधन बनाया था. नई पीढ़ी को उनकी फिल्में देखनी चाहिए, जैसे-शहीद, उपकार, पूरब-पश्चिम, शोर, क्रांति और रोटी-कपड़ा और मकान. उन्हें काफी कुछ सीखने को मिलेगा. मैं तो यह भी चाहता हूं कि कोई सरकारी चैनल जैसे की दूरदर्शन उनकी फिल्मों का प्रसारण करे, ताकि नई पीढ़ी उन्हें जान सके. साथ ही यूट्यूब पर भी नई पीढ़ी उनकी फिल्में देख सकती है.
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