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Magadha Empire 7 : आधुनिक बिहार जिसे प्राचीन समय में मगध कहा जाता था, उसका इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. मगध पर शासन करने वाले राजवंशों में हर्यक वंश के बाद जिस वंश की सबसे ज्यादा चर्चा होती है, वह है मौर्य वंश. मौर्य वंश की स्थापना आचार्य चाणक्य के दिशा निर्देश पर चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी. मौर्य वंश की स्थापना की कहानी बहुत ही दिलचस्प है, चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध पर शासन कर रहे नंद वंश के राजा धनानंद को परास्त कर मौर्य वंश की स्थापना की थी.
मौर्य वंश से पहले मगध पर था नंद वंश का शासन
मौर्य वंश के शासन से पहले मगध पर नंद वंश का शासन था. इस वंश के शासकों ने लगभग 343 ईसा पूर्व से 321 ईसा पूर्व तक मगध पर शासन किया. नंद वंश की स्थापना महापद्मनंद ने शिशुनाग वंश के अंतिम राजा महानंदी की हत्या करने के बाद की थी. महापद्मनंद ने मगध के साम्राज्य का काफी विस्तार किया और इसे लगभग पूरे उत्तर भारत में फैला दिया. महापद्मनंद ने कलिंग पर भी विजय पा ली थी. नंद वंश का शासनकाल काफी सीमित रहा था, इसलिए इसकी वंशावली को लेकर भी काफी विवाद है. बौद्ध साहित्य महाबोधिवंश में यह जिक्र है कि नंदवंश में आठ राजा हुए और धनानंद उनका अंतिम शासक था. रोमिला थापर आरसी मजूमदार और डीडी कौसांबी जैसे इतिहासकारों ने नंद वंश के शासकों को क्षत्रिय नहीं माना है. इनका मानना है कि संभवत: नंद वंश के शासक शूद्र या नीची जाति के थे. लेकिन ये सभी इतिहासकार यह मानते हैं कि नंद वंश के शासकों ने पूरे उत्तर भारत और दक्षिण के हिस्सों को एक केंद्रीय शक्ति के अधीन कर दिया था. नंदों का साम्राज्य काफी समृद्ध भी था. आरसी मजूमदार और ग्रीक इतिहासकार जस्टिन ने नंद शासकों को क्रूर शासक भी बताया है. नंद वंश का अंतिम शासक धनानंद काफी आततायी था और उसे प्रजा की कोई चिंता नहीं थी वह बस अपनी समृद्धि और विलासिता में मग्न रहता था.
धनानंद एक अत्याचारी शासक था

नंदवंश का अंतिम शासक धनानंद बहुत ही विलासी और भ्रष्ट था. उसके शासनकाल में जनता परेशान थी और उसके अपने मंत्री और महामंत्री भी उससे परेशान थे. उसपर राजकोष को खाली करने और जनता पर अत्याचार करने का आरोप भी लगा था. उसके अत्याचारों से जब मगध की जनता बहुत परेशान हो गई तो पाटलिपुत्र के एक शिक्षण चणक वे राजा धनानंद का विरोध करते हुए उसके खिलाफ लोगों को जागरूक करना शुरू किया, धनानंद ने उसकी हत्या करवा दी. अपने महामंत्री शकटार को भी उसने गिरफ्तार कर लिया था, क्योंकि वे जनता के हित की बात करते थे. भारत पर विदेशी शासकों का हमला हो रहा था, लेकिन धनानंद अपने भोग-विलास में मग्न था. जबकि उसके पहले के शासकों ने राज्य का विस्तार किया था. धनानंद के शासनकाल में मगध अराजक स्थिति से गुजर रहा था और राजा को किसी की भी चिंता नहीं थी.
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धनानंद से चाणक्य ने लगाई थी गुहार
तक्षशिला के आचार्य विष्णुगुप्त जिन्हें चाणक्य ने नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने धनानंद से यह गुहार लगाई थी कि वे अपनी विशाल सेना को लेकर विदेशी आक्रमणकारी सिकंदर से देश की रक्षा करें. यूनान के शासक सिकंदर ने 326 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया था. उस वक्त आचार्य विष्णुगुप्त जिनकी तक्षशिला में ख्याति थी, उन्होंने मगध की राजधानी पाटलिपुत्र का रुख किया और मगध के राजा धनानंद से मदद मांगी थी और यह कहा था कि वे भारत को बचाने के लिए सभी जनपदों को एक करें और अपने नेतृत्व में भारत को विदेशी आक्रांताओं से बचा लें. लेकिन धनानंद जो सत्ता के मद में विलासी हो गया था, उसने विष्णुगुप्त का अपमान करके उन्हें अपने राजमहल से निकाल दिया था. इस अपमान से पीड़ित होकर चाणक्य ने नंद वंश को समाप्त करने की प्रतिज्ञा ली थी और यह काम उसने पूरा किया थी. आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य की सहायता से नंद वंश के शासन का अंत कर मौर्य वंश की स्थापना की और पूरे भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधा. मौर्य वंश के शासनकाल में भारत एक केंद्रीय सत्ता के अधीन था. आचार्य चाणक्य का मगध की धरती से बहुत ही खास नाता था, जिसकी जानकारी मगध साम्राज्य की कहानी के अगली कड़ी में दी जाएगी.
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नंद वंश के अंतिम शासक का नाम क्या था?
नंद वंश के अंतिम शासक का नाम धनानंद था.
मौर्य वंश की स्थापना किसने की थी?
मौर्य वंश की स्थापना आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त की मदद से की थी.