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Bhaiyyaji Joshi : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व सरकार्यवाह और वरिष्ठ सदस्य भैयाजी जोशी के मराठी भाषा को लेकर दिए गए बयान से बड़ा बवाल मच गया है. दरअसल उन्होंने मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान यह कहा कि मुंबई की एक भाषा नहीं है और यह जरूरी नहीं है कि मुंबई में रहने वाले को मराठी सीखना ही पड़े. भैयाजी जोशी के इस बयान के बाद विपक्ष बीजेपी पर हमलावर हो गया है और इसे मराठी भाषा और मराठी अस्मिता का अपमान बता रहा है. विधानसभा में भी इस मसले को लेकर विपक्ष, सत्तापक्ष पर हमलावर रहा.
विवाद बढ़ने के बाद भैयाजी जोशी ने सफाई दी और कहा कि मेरे बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है. मेरी मातृभाषा मराठी है, लेकिन मैं सभी भाषाओं का सम्मान करता हूं. उन्होंने कहा कि भारत में इतनी भाषाएं बोली जाती हैं और मुंबई उसका एक उदाहरण है, इसके अलावा मैं कुछ कहना नहीं चाहता. विधानसभा में मुख्यमंत्री फड़नवीस ने भी कहा कि महाराष्ट्र की भाषा मराठी है और यहां रहने वाले लोगों को मराठी सीखनी चाहिए.

मराठी और मराठा अस्मिता का इतिहास
मराठी भाषा और मराठा अस्मिता का इतिहास काफी पुराना है. मराठा अस्मिता महाराष्ट्र की भाषा, संस्कृति और वहां के सामाजिक पहचान से जुड़ा है. मराठा अस्मिता की अलग पहचान के लिए 12वीं शताब्दी में संत ज्ञानेश्वर और तुकाराम जैसे संतों ने मराठी भाषा में लेखन करके मराठा अस्मिता को एक अलग पहचान दी और इसे सशक्त भी किया. लेकिन छत्रपति शिवाजी ने सबसे अधिक मराठा अस्मिता की पहचान को बुलंद किया और पूरे जोर-शोर से इसके लिए आवाज उठाई.
छत्रपति शिवाजी ने मराठा अस्मिता को स्थापित किया
छत्रपति शिवाजी ने मराठा अस्मिता का मुद्दा अपने समाज के लोगों को संगठित करने के लिए किया. उन्होंने मराठा अस्मिता को एक मजबूत राजनीतिक, सैन्य और सांस्कृतिक पहचान दी. इसके लिए उन्होंने एक स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना की और मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा दिया. उन्होंने मराठा अस्मिता को लोगों के स्वाभिमान से जोड़ दिया, जिसकी वजह से मराठा अस्मिता का खूब प्रचार हुआ और लोगों ने खुद को इससे जुड़ा हुआ महसूस किया. यह एक तरह से आंदोलन बन गया और महाराष्ट्र की पहचान बन गया. वही मराठा अस्मिता आज भी महाराष्ट्र में कायम है. शिवाजी ने रायगढ़ में 1674 में छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक किया और मराठा स्वराज्य की स्थापना की, यह मराठा अस्मिता का प्रतीक बना. मराठी भाषा को प्रचारित करने के लिए उन्होंने इसे राजकाज की भाषा बना दिया था.
बाल गंगाधर तिलक ने गणपति महोत्सव की शुरुआत की
आजादी की लड़ाई में बाल गंगाधर तिलक ने मराठा अस्मिता को स्वराज का हथियार बनाया. उन्होंने घरों में मनाए जाने वाले गणपति महोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव में बदला और शिवाजी के मराठा अस्मिता को पुर्नजागृत किया. शिवाजी दिवस मनाए जाने की शुरुआत भी उन्होंने की और उनकी छवि को स्वराज और स्वतंत्रता के नायक के रूप में स्थापित किया.
सामाजिक आंदोलन भी बना मराठा अस्मिता
19वी और 20वीं शताब्दी में ज्योतिबा फुले और डॉ बाबा साहेब अंबेडकर ने मराठी अस्मिता को सामाजिक आंदोलन का रूप दिया और समाज सुधार पर काम हुआ. आजादी के बाद मराठा अस्मिता का मुद्दा और बढ़ा. 1960 में जब महाराष्ट्र अलग राज्य का गठन हुआ तो इसने मराठा अस्मिता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. 1966 में बाल ठाकरे ने मराठा मानुष के हक की बात करके शिवसेना का गठन किया और उसके बाद से मराठा अस्मिता पर खूब राजनीति भी हुई.
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