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जन्म दिवस विशेष : बीपी मंडल एक जमींदार जिसने लिखी सामाजिक न्याय की पटकथा

BP Mandal : बीपी मंडल का जन्म 25 अगस्त 1918 को बनारस में हुआ, हालांकि उनका पैतृक गांव बिहार के मधेपुरा जिले का मुरहो था. उनके पिता, रास बिहारी लाल मंडल, मुरहो राज के जमींदार, स्वतंत्रता सेनानी और बिहार कांग्रेस के संस्थापक सदस्य थे, जिनका निधन उनके जन्म के अगले दिन ही हो गया.

शशिभूषण, पत्रकार-

BP Mandal : भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सामाजिक न्याय को मजबूत आधार देने वाले नेताओं में बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल) का नाम अग्रणी है. जमींदार पृष्ठभूमि से आने के बावजूद वे वंचित तबकों की आवाज बने और उनके सशक्तिकरण के लिए संघर्षरत रहे. उनकी अध्यक्षता में गठित मंडल आयोग की 1980 की रिपोर्ट ने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए आरक्षण की नींव रखी, जिसने भारतीय समाज और राजनीति को नया स्वरूप दिया.आज उनकी 107वीं जयंती हैं.

जातिवादी व्यवस्था के खिलाफ किया आंदोलन

बीपी मंडल का जन्म 25 अगस्त 1918 को बनारस में हुआ, हालांकि उनका पैतृक गांव बिहार के मधेपुरा जिले का मुरहो था. उनके पिता, रास बिहारी लाल मंडल, मुरहो राज के जमींदार, स्वतंत्रता सेनानी और बिहार कांग्रेस के संस्थापक सदस्य थे, जिनका निधन उनके जन्म के अगले दिन ही हो गया. उनकी मां सीतारानी मंडल थीं. मंडल का बचपन मुरहो में बीता. उन्होंने दरभंगा के राज हाई स्कूल में पढ़ाई की, जहां उन्होंने जातिगत भेदभाव का सामना किया. अगड़ी जातियों के विद्यार्थियों को प्राथमिकता देने की व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने आंदोलन किया, जिससे हॉस्टल में समान व्यवस्था लागू हुई. यह अनुभव उनकी सामाजिक न्याय की लड़ाई की नींव बना. बाद में, उन्होंने पटना कॉलेज से अंग्रेजी ऑनर्स से स्नातक तक की डिग्री हासिल की. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1945 से 1951 तक दंडाधिकारी के रूप में काम किया.

मधेपुरा से बिहार विधानसभा के लिए चुने गए

मंडल का राजनीतिक जीवन 1952 में शुरू हुआ, जब वे कांग्रेस के टिकट पर मधेपुरा से बिहार विधानसभा के लिए चुने गए. 1957 में उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार भूपेंद्र नारायण मंडल ने हरा दिया, लेकिन 1962 में वे फिर विधायक बने और केबी सहाय की सरकार में मंत्री रहे. 1965 में राजनीतिक मतभेदों के कारण उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और डॉ राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) में शामिल हो गए. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ज्वाइन करने के बाद उन्होंने पूरे बिहार में पार्टी के लिए बहुत मेहनत की और 1967 के बिहार विधानसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी 69 सीट जितने में कामयाब हुई. बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी.

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इधर वे मधेपुरा से लोकसभा सांसद चुने गए और संयुक्त विधायक दल सरकार (संविद सरकार) में स्वास्थ्य मंत्री बने, लेकिन लोहिया के नियमों के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. 1968 में, उन्होंने संसोपा के बागी गुट का नेतृत्व किया और शोषित दल बनाया. फिर एक रणनीति के तहत सतीश प्रसाद सिंह को पांच दिन का मुख्यमंत्री बनवाया. इसके बाद, वे 1 फरवरी 1968 को बिहार के सातवें मुख्यमंत्री बने, हालांकि उनका कार्यकाल केवल 30 दिन का था. उनके मंत्रिमंडल में 85% मंत्री पिछड़ी जातियों से थे. मंडल 1967-1970 और 1977-1979 तक लोकसभा सांसद रहे. वो विधान परिषद के भी सदस्य रहे.

द्वितीय पिछड़ा वर्ग के अध्यक्ष बने

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पू्र्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के साथ वीपी मंडल

1 जनवरी 1979 को जनता पार्टी की सरकार ने ‘द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ का गठन किया, जिसके अध्यक्ष बीपी मंडल बने. आयोग ने देशभर में सर्वेक्षण कर सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक मानकों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की. 1931 की जनगणना और विभिन्न संकेतकों के आधार पर आयोग ने अनुमान लगाया कि भारत की 52% आबादी ओबीसी से संबंधित है.सामाजिक पिछड़ेपन के लिए चार, शैक्षिक पिछड़ेपन के लिए तीन और आर्थिक पिछड़ेपन के लिए चार संकेतक निर्धारित किए गए. 22 अंकों की प्रणाली में 11 या अधिक अंक वाली जातियों को ओबीसी माना गया. आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसकी सिफारिशों के तहत 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह की सरकार ने सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण लागू किया. सुप्रीम कोर्ट ने शुरू में इस पर स्टे लगा दिया, लेकिन 1993 में संविधान पीठ ने आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया.

मंडल आयोग की सिफारिशों का असर शिक्षा और रोजगार में दिखा

मंडल आयोग की सिफारिशों का प्रभाव शिक्षा और रोजगार में स्पष्ट दिखा. जेएनयू के अध्ययनों के अनुसार, 2006-2021 के बीच केंद्रीय विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों (जैसे-आईआईटी और आईआईएम) में ओबीसी छात्रों की भागीदारी 30-40% बढ़ी. उदाहरण के लिए, दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू में ओबीसी छात्रों का नामांकन 2006 में 15% से बढ़कर 2021 तक 35% हो गया.लेकिन केंद्र सरकार की नौकरियों में अभी भी ओबीसी का प्रतिनिधित्व संतोषजनक नहीं है. हालांकि 1990 की अपेक्षा ओबीसी का इस क्षेत्र में प्रतिनिधित्व बढ़ा.लेकिन अपेक्षा से बेहद कम है. यह बढ़त केंद्र सरकार के नौकरी के सभी वर्गो में 27 प्रतिशत से कम है. ग्रेड ‘ए’ में तो संख्या अभी भी बेहद निराशाजनक है.इस पर गंभीर विचार – विमर्श की जरूरत है.

उन कारणों को खोजने की जरूरत है जो ओबीसी वर्ग को केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण के बावजूद नहीं आने दे रहा है. अध्ययन बता रहा है कि आईआईटी, आईआईएम, दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय आदि में ओबीसी विद्यार्थियों की संख्या में जबर्दस्त उछाल आया है.मतलब इस वर्ग में उच्च शिक्षित, दक्ष और योग्य युवाओं की संख्या काफी है.लेकिन यह आंकड़ा केंद्र की नौकरियों में उस अनुपात में नहीं दिख रहा है.ऐसे में यह कहा जाए कि बीपी मंडल ने सामाजिक न्याय की पटकथा तो लिख दी, लेकिन अभी फिल्म पूरी तरह हिट होनी बाकी है. बीपी मंडल का निधन 13 अप्रैल 1982 को पटना में हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है.उनके सम्मान में 2001 में डाक टिकट और 2016 में मधेपुरा में एक इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किया गया.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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