20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

लेटेस्ट वीडियो

महिलाओं को कभी कमतर न समझें

Women in Panchayati Raj : पिछले साल संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय न्यूयार्क में त्रिपुरा की सरपंच सुप्रिया दास दत्ता, आंध्र प्रदेश की हेमाकुमारी, और राजस्थान की नीरू यादव ने भाग लिया था. ओडिशा के गंजम जिले की एक महिला सरपंच आरती देवी एमबीए हैं और इनवेस्टमेंट बैंकर रही हैं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

Women in Panchayati Raj : पिछले दिनों छत्तीसगढ़ से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया. वहां के कबीरधाम जिले के पारसवाड़ा गांव में पंचायत में चुनी गयी छह महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पतियों ने शपथ ली. यह इस तरह का पहला उदाहरण नहीं है. लेकिन पतियों के शपथ लेने का वीडियो वायरल होने पर यह मामला सामने आया और अधिकारियों ने कार्रवाई करने का निर्देश दिया. तमाम समाजसेवी संस्थाओं ने इस घटना की निंदा की और दोषियों पर कठोर कार्रवाई की मांग की. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्र सरकार ऐसे प्रधानपतियों और सरपंचपतियों के खिलाफ कदम उठाने जा रहा है. अपने देश में बहुत-सी महिला सरपंचों ने बहुत अच्छा काम किया है. लड़कियों की शिक्षा से लेकर गांव की साफ-सफाई, स्त्रियों के रोजगार के साधन, उनके स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर इन महिलाओं ने ध्यान दिया है. गांव में बिजली पहुंचाने तथा गलियों, सड़क का निर्माण और नालियों की उचित व्यवस्था की है.


अपने यहां पंचायती राज में चुनी जाने वाली महिलाओं की संख्या चौदह लाख के आसपास है. ये पंचायती राज लागू करने वाली तमाम संस्थाओं से जुड़ी रहती हैं. लगभग सारे चुने जाने वाले सरपंचों में महिलाएं 40 प्रतिशत हैं. पिछले साल संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय न्यूयार्क में त्रिपुरा की सरपंच सुप्रिया दास दत्ता, आंध्र प्रदेश की हेमाकुमारी, और राजस्थान की नीरू यादव ने भाग लिया था. ओडिशा के गंजम जिले की एक महिला सरपंच आरती देवी एमबीए हैं और इनवेस्टमेंट बैंकर रही हैं. उन्हें अमेरिका के लीडरशिप समिट प्रोग्राम में बुलाया गया था, जहां उन्होंने सरकार की तमाम नीतियों में पारदर्शिता लाने की बात कही थी. उन्हें 2014 में राजीव गांधी लीडरशिप अवार्ड के लिए नामित भी किया गया था. आरती का जोर इस बात पर रहा है कि तमाम सरकारी योजनाओं के फॉर्म पर औरतें अंगूठा लगाने के बजाय खुद हस्ताक्षर करें. इसके लिए उन्होंने स्त्रियों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया. सरकारों से जो राशन और मिट्टी का तेल सस्ते दामों पर मिलता है, वह लोगों को ठीक से मिल सके, इसकी व्यवस्था की. उन्होंने ओडिशा की लोककलाओं को जीवित करने की दिशा में भी काम किया है.

गुजरात के व्यारा गांव में मीना बहन 65 साल में पहली बार सरपंच बनी हैं. उनका कहना है कि यहां तो औरतों को समाज की पूंछ कहा जाता है. बहुत-सी औरतें भी हमें पसंद नहीं करतीं, लेकिन धीरे-धीरे स्थिति बदल रही है. उन्होंने अपने क्षेत्र में सड़क का निर्माण कराया है, जिससे कि गर्भवती महिलाएं आसानी से अस्पताल तक जा सकें.
राजस्थान के सोडा गांव की छवि राजावत की कहानी भी ऐसी ही है. उन्होंने अपने गांव में सौर ऊर्जा और पानी की व्यवस्था की है, बैंक खुलवाया है. वह न्यूयार्क में हुई बैठक में गरीबी पर बोल भी चुकी हैं. छवि जींस पहनती हैं और एमबीए हैं. राजस्थान के ही एक गांव की सरपंच राधा रानी ने बच्चों को स्कूल भेजने का अभियान चलाया और माता-पिता को तैयार किया कि वे अपनी लड़कियों की शिक्षा बीच में न रोकें.


सुषमा भादू हरियाणा के गांव की सरपंच हैं. उन्होंने घूंघट के खिलाफ अभियान चलाया और लैंगिक भेदभाव मिटाने के लिए काम किया. इस काम में उन्हें ससुराल वालों का समर्थन भी उन्हें खूब मिला. उनके प्रयासों से स्कूलों में बच्चियों के ड्रॉप आउट की दर घटी है. ये स्त्रियां इस बात का उदाहरण हैं कि महिलाएं भी अच्छा काम करती हैं. फिर भी पंचायतों में अरसे से यह हो रहा है कि जो महिलाएं प्रधान या सरपंच चुनी जाती हैं, उनमें से कइयों के पति उनके स्थान पर सारा काम-काज चलाते देखे जाते हैं. इन्हें प्रधानपति या सरपंचपति कहा जाता है.


इस संदर्भ में मशहूर लेखिका स्वर्गीय रमणिका गुप्ता का एक लेख याद आता है. उन्होंने बताया था कि कैसे जब कोई स्त्री सरपंच चुनी जाती है, तो उसका पति ही खुद को सरपंच समझने लगता है. गले में बहुत सारी मालाएं डालकर, मूंछों पर ताव देते हुए घोड़े पर सवार होकर जुलूस निकालता है. कई बार उनके हाथ में तलवार भी होती है. ये पत्नी के स्थान पर खुद को सरपंच घोषित कर देते हैं. ऐसे उन्होंने अनेक उदाहरण दिये थे कि पति और दूसरे पुरुष मिलकर सरपंच स्त्री की भूमिका को नगण्य कर देते हैं. कई बार तो स्त्री को घर से बाहर ही नहीं निकलने दिया जाता.


दूरदर्शन ने कुछ साल पहले ‘कॉरपोरेट सरपंच’ नाम का एक लंबा धारावाहिक प्रसारित किया था. इसमें शहर में रहने वाली एक लड़की अपनी कंपनी के काम से गांव जाती है. वह उसका पैतृक गांव ही है. वहां के हालात देखकर वह गांव की स्थिति सुधारने का बीड़ा उठाती है और तमाम परेशानियां झेलते हुए अंत में सरपंच बन जाती है. इसे राजस्थान की छवि राजावत की कहानी से प्रेरित समझा गया था. गांधी जी ने पंचायत राज का सपना देखा था. बाद में इसमें स्त्रियों को भी शामिल किया गया. पहले उन्हें 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया और बाद में जिसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया. आशा है कि छत्तीसगढ़ की घटना से सबक लेकर महिलाओं के स्थान पर उनके पतियों द्वारा जिम्मेदारी लेने की गलत परिपाटी बंद होगी.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel